गुरुवार, 19 जनवरी 2012

पुराने खत




पुराने खतों की गर्मी से, जब दिल पिघलने लगता है,
सामने वो आते नहीं, पर दिल बहकने लगता है,

कहीं दबे पन्नो से सिसकियाँ आती हैं,
मेरी आँखों से आंसूं बन बह जाती हैं,

खतों में उनके चेहरे जो खिलखिलाने लगे,
मेरे लबों में तराने यूँ ही आने लगे,

उनकी एक- एक बातें दुहाई देती हैं,
मेरी साँसे बरबस ही अंगड़ाई लेती हैं,

फटे पन्नो से मिट गए थे जो जज्बात,
उभर रहे हैं, वो, फिर से, बरसों बाद,

आंसुओं से हुए पन्ने यूं गीले,
बादलों में छुपे हों यूँ कपडे नीले,

सिसकियों का सोर सुन कोई आता है,
हाँथ रख सिर में, धीरे से सहलाता है,

सिर उठाया तो लगा ऐसे,
बिजली कौंधी हो अम्बर में, अभी जैसे,    
                                                                       
सामने उनको पाकर लगा ऐसे,                             
यादों की बाढ़ में मैं बहा जैसे,

उनके दामन से खुशबू यूँ आती है,
मुझ बेहोश को और बेहोश कर जाती है,

- सुधीर कुमार शुक्ल " तेजस्वी"

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