बुधवार, 25 जनवरी 2012

खून चूसते हैं ये खटमल



भारत में दावानल जैसे फ़ैल रहे भ्रष्टाचार, जिससे की आम नागरिक व्यथित है, आज यह भ्रष्टाचार, समाज के अभी आयामों में व्याप्त है है, अभी "UNIK ID Card"  (जिसे "आधार" भी कहते हैं, जोकि भारत सरकार की देश व्यापी योजना है, इसके तहत, भारत के सभी नागरिकों को १२ अंकों की पहचान संख्या दी जाएगी, जिसके द्वारा देश के अन्दर बहुतायत कार्य  जैसे, खरीददारी, पासपोर्ट, बैंक खता आदि  सम्पन्न किये जा सकेंगे और इन कार्यों के लिए अन्य किसी कागजात की जरूरत नहीं होगी) आबंटन में बिना सही जाँच किये इसके आबंटन का मामला सामने आया है, जिसमे कुछ नेताओं एवं अधिकारियों के साथ - साथ निजी एजेंसी का भी नाम आया है ( सन्दर्भ : आज तक न्यूज़ चैनल).  आज जब भारत में भ्रष्टाचार इस हद तक पहुँच गया है, की देश की सुरक्षा को ताक में रख कर, राजनेता एवं अधिकारी अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं. प्रस्तुत कविता में आम जनता की वेदना का वर्णन किया गया है, तथा देश की जनता से आह्वान किया गया है की उन्हें अपने देश की रक्षा के लिए आंगे आना होगा....मेरा सभी देशवाशियों से निवेदन है की, इस कविता को पढ़े, देश से भ्रष्टाचार मिटने में अपना सहयोंग दें और इस कविता को अधिक से अधिक शेयर करें, ताकि ये भ्रष्ट नेताओं तथा कर्मचारियों तक पहुंचे और उनके गिरेबान को झकझोर कर रख दे.....वन्दे मातरम!!.....



ये नेता और अधिकारी, हैं सब बिलकुल भ्रष्टाचारी,
बेंच रहे हैं, मात्रिभूमि को, कितने हैं ये व्यभिचारी,

गीदड़ बैठे, राजा बन कर, कैसा कल युग आया है,
राज धर्म की बाते करते, गिरेबान में कालिख है,

भगत सिंह और गाँधी ने हंसकर दी थी क़ुरबानी,
बेच रहे हैं आज राष्ट्र को, कैसे हैं ये अभिमानी,

कही मिले जो पैसा इनको, माँ का सौदा भी करदें ,
खून चूसते हैं, ये खटमल, नर भक्षी हैं अभिमानी,

नहीं शर्म है, जरा इन्हें, नहीं ख्याल कर्तव्यों का,
बेच रहे हैं, अपनी माँ को, सौदा करते दुहिता का,

नहीं बचा है पानी इनमे, बची नहीं है दया कहीं,
बने भेड़िये गुर्राते हैं, कायर हैं ये दुष्ट सभी,

अगर मिला जो बड़ा भेड़िया, पूछ हिलाते हैं ऐसे,
यही है इनका बाप सभीका, है इनका सम्राट यही,

अभी सुनाऊं, बात तुम्हे मैं, इन कायर कुत्तों की,
बनना था यूनिक पहचान पत्र, हैं विकास आधार यही,

वोट बैंक और रिश्वत खातिर, फर्जी वडा करते हैं,
बिना निरीक्षण किये किसी का, परिचय पत्र ये देते हैं.

हो कोई चाहे आताताई, या आतंकवादी हो कोई,
इनको नहीं किसी की परवा, नोट जेब में भरते हैं,

मिली नोट, या बने वोट तो परिचय पत्र ये देते हैं,
राष्ट्र सुरक्षा से सौदा कर, सत्ता सीढ़ी चढ़ते हैं,

मिला आधार जो दहशतगर्द को, मेरे प्यारे देश वासियों,
दूर नहीं है वो  दिन जब हम पराधीन बन बैठेंगे,

जीना तो दूभर होगा और मरना भी, दूभर होगा,
बहू - बेटियों की अस्मिता पर, प्रश्न चिन्ह लग जाएगा,

जागो मेरे देश वासियों, उठो आज कुछ करना है,
इन भ्रष्टाचारी, सफ़ेद  पोशों से आज तुम्हे ही लड़ना है,

उठो आज तुम महाकाल बन, सबक सिखाओ दुष्टों को,
धरा उठा लो, गगन झुका दो, तुमको तांडव करना है,

उठे नहीं जो अगर आज तुम, कल की भोर नहीं होगी,
भारत माँ के तन पर, निर्मल, तिरंग चीर नहीं होगी,

सुधीर कुमार शुक्ल " तेजस्वी"

4 टिप्‍पणियां:

  1. sir aapki kavita ekdum hridaya sparshi lagi. Aasha hai aapka lekhan ka karya isi tarah sucharu roop se chalta rahega. Aapki anya kavitae bhi padhi maine. Maa ki mamta ka varnan aapne jis samvedana k saath kara hai woh ekdum hridaya sparshi laga aur kahin na kahin saare pathako ne use saraya hoga.
    isi tarah likhte rahiye sir .. kya pata ek jaagrukta abhiyaan aapke lekh se hi shuru ho jaae....

    aapka shishya
    Aniket Maithani

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    1. प्रिय अनिकेत!
      उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद, आप लोगों की टिप्पणियों से नयी उर्जा का प्रवाह होता है, आशा करता हूँ आपलोगों का समर्थन आंगे भी मिलता रहेगा, ईश्वर आपको खुश रखे..........धन्यवाद!

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  2. Sudheer ji Vedna, aur Kranti se bhari hui aapki kavita hriday ki peer ko raahat aur yug pariwartan ka paigaam deti hain.

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