सोमवार, 31 दिसंबर 2012

अब किसी को ऐसे रुखसत न करना !


मैं तो जीना चाहती थी,
तूने मुझे मार दिया,
मेरी साँसें रुकी नहीं,
तूने उन्हें छीन लिया,

मेरे भी कुछ सपने थे,
छोटे थे पर अपने थे,
उनको सवारना चाहती थी,
माँ के साथ रहना चाहती थी,

मेरी क्या खता थी,
यही की मैं लड़की थी,
मैंने तेरा क्या बिगाड़ा था,
मैं तो एक अजनवी थी,

तूने मेरा ग्रास किया,
मन और दामन को घाव दिया,
पशु भी इतने क्रूर नहीं होते हैं,
वो भी बलात्कार नहीं करते हैं,

तू इतना क्यों गिरगया,
मानव से दानव क्यों बन गया,
तुझसा तो भाई मेरा था,
फिर तू राक्षस क्यों बन गया,

मैंने तो चार्टर विमान नहीं मागा था,
बस जिंदगी का सुकून चाहा था,
तू एक सुरक्षित बस भी न दे सका,
एक सुरक्षित घर भी न दे सका,

ये बिदा की तो घडी नहीं थी,
डोली भी अभी सजी नहीं थी,
माँ से गले भी मिली नहीं थी,
मेरी देहरी भी सजी नहीं थी,

फिर भी मैं जारही हूँ,
मैं तो बहुत दूर जा रही हूँ ,
अब कभी न आ सकूंगी,
माँ से गले न मिल सकूंगी,

बिना बिदा किये जा रही हूँ, 
तुम सबके कारन जा रही हूँ,
जख्मो को सहकर जा रही हूँ,
साँसों को चीर कर जा रही हूँ,

बस एक ख्वाहिस है मेरी,
मेरी बहनों का ख्याल रखना,
सबकी बेटी को अपनी बेटी समझना,
अब किसी को ऐसे न रुखसत करना,

रविवार, 30 दिसंबर 2012

मैं तो रोज मरती हूँ !



मैं तो रोज मरती हूँ, हर पल मरती हूँ 
जन्मसे पहले, माँ की कोख में,
सहमी सी रहती हूँ, हर पल जुल्म सहती हूँ,
लड़की हूँ इस लिए घुट- घुट कर जीती और मरती हूँ  

पिता ने रोज मारा , भाई ने पल, पल,
पति ने तो मारा ही, माँ ने भी न छोड़ा,
घर के एक कोने में, विद्यालय के कमरे में,
बगीचों और गलियों में, दिन भर मैं मरती हूँ,

हुसैन के चित्र में, कवियों के कलम से,
फिल्मों की हवस में, कला के नाम से, 
बसों में, चौराहों में, पत्थर की चौखटों 
अजनवी की नजरमे, मैं ही तो मरती हूँ,


मैं मरती हूँ क्योंकि मैं सहती हूँ,
मैं मरती हूँ क्योंकि मैं जननी हूँ,
मैं मरती हूँ क्योंकि मैं धरती हूँ,
मैं मरती हूँ क्योंकि मैं लड़की हूँ,

मैं तो  सबला थी, अबला बनाया तूने,
मैं तो दुर्गा थी, दामिनी बनाया तूने,
मैंने तुझे जनम दिया, तूने मुझे फांसी,
मैंने तुझे पय दिया, तूने मुझे आंसू 

मैं माँ हूँ, ममता हूँ, कोई वस्तु नहीं,
मुझ से ही तुम हो, मैं सृजक हूँ,
मैं तेरी आत्मा हूँ, सुचिता हूँ,
मैं तेरे ही भीतर का प्राण हूँ, 

तेरा अस्तित्व ही मुझसे हैं, तुझे समझना होगा,
मैं जगत का प्राण हूँ, तुझे समझना होगा,
मुझसे ही ये संसार है, तुझे समझना होगा,
मैं नहीं, तो तू भी नहीं, तुझे समझना होगा, 

जब तेरी कलुषित आंखे, मेरा चीर हरण करती हैं,
तेरी माँ, तेरी आत्मा का भी, बलात्कार करती हैं,
तेरे ईश्वर, तेरे पिता का भी बलात्कार करती हैं,
इस प्रकृति, धरती का भी बलात्कार करती हैं,  


मैं मरती रहूंगी शायद तबतक,
ये सब सहती रहूंगी जबतक,
तेरे अन्दर दुशासन हैं जबतक,
धृतराष्ट्र, भीष्म चुप हैं जबतक,

मार दे सबको, पोछ दे मेरे आंसू,
मेरे सब्र का बांध गर टूट गया,
महाभारत सा सैलाब आएगा,
तुम सबको खंड-खंड कर जायेगा,   

शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012

उठालो तलवार तुमको शपथ माँ की


इन पिशाचों को जलाकर भस्म करदो,
इन दरिंदों को मिटा दो, नष्ट कर दो,
घूरता हैं माँ-बहन की अबरू जो,
नोच लो आँखे, सर को कलम करदो,

हैं नहीं जिनको कदर नारी के मन की,
हैं नहीं जिनको कदर नारी के तन की,
नष्ट करदो उस घमंडी के दैत्य को तुम,
प्रलय ला दो इस धरा पर आज ही तुम,


करे जो शोषण, हमारी माँ- बहन का,
उस दरिन्दे का, जीवन नरक करदो,
उठालो तलवार, तुमको शपथ माँ की,
कोख का ऋण, आजही तुम पूर्ण करदो,  

शनिवार, 3 नवंबर 2012

सिंघवी रिटर्न्स !!




आज कल सीक्वल फिल्मो का जमाना है, जैसे सुपरमैन रिटर्न्स, द मामी रिटर्न्स, आदि। पहले ये फैशन सिर्फ पश्चिमी  देशों में था परन्तु समय के साथ ये भारत में भी काफी पापुलर है, जैसे  भूत रिटर्न्स, 1920 ईविल रिटर्न्स आदि । इसी तरह नेताओं का भी सीक्वल एपिसोड बनता है, जैसे मोनिका लेवेंस्की के बाद " विल क्लिंटन रिटर्न्स", "सरकोजी रिटर्न्स", "बर्लुस्कोनी रिटर्न्स", ऐसे में हमारे देश के नेता कैसे पीछे रहते इन्होने भी फिल्मे बनाई यही नहीं फिल्मो की झड़ी लगा दी,  "एन डी तिवारी रिटर्न्स""कलमाड़ी रिटर्न्स", "राजा रिटर्न्स", "कनिमोड़ी रिटर्न्स" के बाद अभी कल एक नयी राजनितिक फिल्म रिलीज़ हुई है " सिंघवी रिटर्न्स" आप लोगों को इनका पहला पार्ट तो याद होगा। महाशय जी कितनी कुशलता से वकील को जज बना रहे थे और यह पूरी प्रक्रिया विडियो भी उपलब्ध था। हालाँकि कुछ लोगों को इसको देखने का सौभाग्य नहीं मिला होगा, क्योंकी सरकार ने  इस पर रोक लगा दी थी । हम आशा करते हैं की इस अपने दूसरे  भाग में अभिषेक मनुसिघवी जी और भी उम्दा काम करेंगे, और अपनी कुशलता प्रमाणित कर, भारत के लोकतंत्र को और गौरवान्वित करेंगे। यही नही सोनिया जी को भी अपने कारिंदों पर काफी विश्वास है, उसमे  सिंघवी जी जरूर खरे उतरेंगे।  शिंदे जी वैसे भी कहते हैं की देश की जनता को कुछ याद नहीं रहता, ऐसे में फिल्मो के नए भाग लाना और जरूरी हो जाता है। ताकि जनता की याद और ताजा रहे। अब देखते हैं 2014 जनता को ये फिल्मे याद रहती हैं की नहीं।

अब मेरा जय हिन्द बोलने का मन भी नहीं हो रहा ! ( माफ़ करियेगा) 

बाकी आपलोग खुद ही समझदार हैं !!

गुरुवार, 1 नवंबर 2012

कही अरविन्द बिगडैल बन्दर तो नहीं?




कोई कहता हैं ये खुलासों का दौर है, कोई कहता है अराजकता का दौर है, कोई कहता है अरविन्द केजरीवाल अपनी राजनीतिक रोटी सेक रहा है, कुछ स्वयंभू बुन्द्धिजीवी और संसद के ठेकेदार तो यहाँ तक कहते हैं की अरविन्द लोकतंत्र के लिए खतरा है।  पर मैं पूछता हूँ लोकतंत्र है कहाँ? ये तो सरकार और कॉर्पोरेट की युगलबंदी है जिसमे जनता बंदरिया की तरह नाच रही है, और इसी झपताल को ये लोग लोकतंत्र कहते हैं।  मुझे तो लगता है, की पिछले 65 सालों  में सरकार  और  कॉर्पोरेट की जिस तरह युगलबंदी हो रही थी, और जनता एक मजबूर बंदरिया की तरह उनकी ताल पर नाचने को विवश थी, आज इस गोल ( समूह)  में अरविन्द नाम का एक ऐसा बन्दर आगया है, जो उलट कर इन लोगों को चांटे लगाने का सहस किया है।  अब सरकार, विपक्ष और कॉर्पोरेट की ताल बिगडती लग रही है।  गौर तलब है की  पिछले 65 सालों में भारत का जिस तरह विकास हुआ है, और सामान्य जनता की जो हालत है, वो  कॉर्पोरेट और सरकार की युगलबंदी का ही परिणाम है। एक तरफ तो देश की राजधानी में मलयुक्त पानी पीने को मिलता है, बिजली नहीं है,  (आज जब देश की राजधानी की ये हालत है तो सुदूर क्षेत्रों की क्या होगी) और दूसरी तरफ प्राकृतिक संसाधनों की अन्धाधुन्ध लूट हो रही है। कॉर्पोरेट, और सरकार के लोग और अधिक  अमीर होते जा रहें है, और गरीब जनता को दो वक्त की रोटी तक नसीब नहीं है। सरकार वही करती है जिसमे बड़े- बड़े कॉर्पोरेट घरानों का स्वार्थ सिद्ध होता हो, जनता की चिंता किसी को नहीं होती है। बस चुनाव के समय 2-4 दाने दाल के डाल देते हैं और बंदरिया को नचाते रहते हैं। पर आज इस बिगडैल बन्दर की वजह से जो माहौल बना हुआ है, या बन रहा है, उसको और सघन करने की जरूरत है, तभी असली मदारी जनता होगी और, सरकार और कॉर्पोरेट उसकी बंदरिया, जो असल लोकतंत्र में होना चाहिए। 

जय हिन्द!! है भारत जन!!

सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

सलमान खुर्शीद है आज के शासकों का असली चेहरा !




सलमान खुर्शीद को "अब खून से भी खेलेंगे" वाली धमकी का पुरूस्कार मिला और उन्हें अब भारत सरकार का विदेश मंत्री बनाया गया है।  ताजा मंत्रिमंडल विस्तार में भारत सरकार के पूर्व भ्रष्ट मत्री माननीय सलमान खुर्शीद की पदोन्नति कर दी गई है। अब वो भारत सरकार की विदेश नीति तय करंगे। जो व्यक्ति विकलांगो का पैसा  खा सकता है, एक समाज सेवी को जान से मारने की धमकी दे सकता है, कलम की जगह खून से खेलने की धमकी दे सकता है, वो अपने स्वार्थ के लिए देश को भी बेच सकता है।  यदि आप लोगों ने सलमान खुर्शीद का अरविन्द केजरीवाल के प्रस्तावित फर्रुखाबाद यात्रा के विरोध के सन्दर्भ में उनके घर में आयोजित मंत्रणा का विडियो देखा होगा तो आप मुझसे सहमत होंगे। खुर्शीद साहब एक कानून मंत्री होते हुए जिस तरह की बात कर रहे हैं उससे एक गंभीर सम्प्रदैकता की बू आती है। जिस व्यक्ति की जगह जेल में होनी चाहिए आज वो भारत का विदेश मंत्री है। हो सकता है विदेश मंत्री के कार्यकाल में वो भारत हो पकिस्तान को समर्पित करने का प्रयास करें। यदि ऐसे लोग भारत की कमान सम्हालते हैं, तो ये कैसा प्रजातंत्र है? ये कैसा महान देश है? इससे बेहतर तो तानाशाही होती है, यहाँ तक की इस स्वतंत्रता से बेहतर तो परतंत्रता होती है! कम से कम क्षद्म तो नहीं होती!!
अब तो मुझे ये कहना ही पड़ेगा:
अधर्म की जय हो ! धर्म का सत्यानाश हो !!!
असत्यमेव जयते !
भेड़ियों की जय हो ! देश का सर्वनाश हो !
वाह रे महान  भारत का "महा क्षद्म प्रजातंत्र" !!

बुधवार, 24 अक्तूबर 2012

चलो राम बन जाएँ हम सब !


प्रिय मित्रो !!
आओ विजयादशमी के इस पावन पर्व को और पुण्य बनायें। अपने अन्दर और बाहर के रावण को मार कर राम राज्य की स्थापना करें।। जय श्री राम!!

चलो राम बन जाएँ हम सब !
रावण का कर दें संघार !!
जन्म भूमि को पावन करदें !
रहे न दुःख, भय और संताप !!

आज दनुज हैं पनपे फिरसे !
बहुत हो रहा अत्याचार !!
मातृभूमि को निर्मल करदें !
करें प्रतिज्ञा हम सब आज !!

भ्रष्टाचार आज का दानव !
निगल रहा हम सबका भाग !!
शासक लोग बने हैं भक्षक !
प्रजा बनी है उनका ग्रास !!

निज के रावण को सब मारें !
राम बसें जब उर में आय!!
बाहर -भीतर राम राज्य हो !
स्वर्ग बने ये हिन्दुस्तान !!

बने राम अब नर भारत के !
नारी धरें शक्ति अवतार !!
सर्वनाश कर इस रावण का !
राम राज्य का हो विस्तार !!

सोमवार, 22 अक्तूबर 2012

क्या केजरीवाल को शहीद कर देंगे अन्ना ?



अरविन्द केजरीवाल देश में राजनीतिक सुधारो की कोशिश कर रहा है, जब से वो टीम अन्ना से अलग हुआ ऐसा लगता है उसने अन्ना का कुछ छीन लिया हो। पिछले कुछ दिनों से एनी कोहली केजरीवाल के सम्मेलनों में आती है और भला -बुरा कह कर चली जाती है, और बड़ी बात ये है की वो खुद को अन्ना टीम की सदस्य बताती है। इन सभी बातों पर अन्ना  चुप है। अन्ना जी को चाहिए की वो स्पष्ट करें की ये सब माजरा क्या है। यदि सही में अरविन्द में खोट है तो ये बात जनता के सामने आनी चाहिए, और अगर अरविन्द के खिलाफ कोई षण्यंत्र हो रहा है तो वो साफ़ होना चाहिए। आज अरविन्द जिस रस्ते पर चल रहा है उससे ये आशंकाएं ज्यादा हैं की विरोधी और ताकतवर राजनीतिक दल उसे ख़त्म करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। मैं आपको याद दिलाना चाहता हूँ की ऐसी ही कुछ गलती महात्मा गाँधी ने भगत सिंह के मुद्दे पर किया था। जैसे भगत सिंह ने गाँधी से अलग रास्ता अपनाया तो  गाँधी जी को लगा उनका सब लुट गया, हालाँकि दोनों का उद्देश्य एक था "भारत की स्वतंत्रता"। और  उन्होंने ठीक इसी तरह की गतिविधियाँ की थी जो आज अन्ना  कर रहे हैं, और उसका जो परिणाम हुआ वो आप सब को पता है, भगत सिंह को प्राण गवाने पड़े। ठीक वैसे  ही गलती अन्ना कर रहे हैं जिसकी सजा देश को भी भुगतनी पड़ेगी। आज जिस तरह भ्रस्ताचार का युग भारत में चल रहा है, उसमे अगर एक षण्यंत्र के तहत अरविन्द की पहल को नाकाम कर दिया  जाय जिसकी पूरी कोशिश हो रही है, इसकी जबाबदारी अन्ना की भी होगी। और जिस गर्त से निकलने को कोशिश देश कर रहा है, और जनता को कुछ आशाएं बधी हैं वो नाकाम हो जाएँगी। अन्ना को चाहिए की एनी कोहली द्वारा  अन्य लोगों द्वारा केजरीवाल पर लगाये गए आरोपों जो अन्ना टीम से सम्बंधित हैंपर अपना पक्ष रखें, अन्यथा देश अन्ना को कभी माफ़ नहीं करेगा !!

जय हिन्द !! जय भारत जन !!

शनिवार, 20 अक्तूबर 2012

अशोक का शोक या देश का शोक !



वरिष्ठ आइ ए  एस  अधिकारी डॉ अशोक खेमका का जिसतरह हरियाणा सरकार ने उच्च न्यायालय के निर्णय और कानून की धज्जियाँ उड़ाते हुए ट्रान्सफर किया है, उससे राजनीती का एक फूहड़ और डरावना चेहरा सामने आता है, एक ईमानदार अफसर का 19 साल में 43 बार ट्रान्सफर होता है, ये अपने आप में एक बहुत बड़ी कहानी कहता है, डॉ खेमका ने ज्यों ही राबर्ट और डी एल ऍफ़ डील की जांच शुरू की, कंप्यूटर  सर्वैर से डाटा रोक दिया गया और उसी रात को 10 बजे उन्हें ट्रान्सफर आर्डर थमा दिया गया। ये हालत पूरे भारत की है कही, भी कोई ईमानदार व्यक्ति काम नहीं कर सकता, अगर कोशिश भी करेगा तो रस्ते से हटा दिया जायेगा। ये माफिया तंत्र और सरकारों का जाल इतना व्यापक है की एक बार मकड़ी के जाल में फस कर कोई बेचारा कीड़ा बच सकता है, परन्तु इस भ्रस्त तंत्र में कोई इमानदार नहीं रह सकता। आज जितने घोटाले सामने आरहे हैं और देश के बड़े राजनीतिक घराने उन्हें पोषित करते पाए गए हैं, इससे देश के लोक तंत्र पर प्रश्न चिन्ह खड़ा होता है। मुझे ऐसा लगता है की आज देश यदि खड़ा है तो खेमका जी जैसे चंद  अफसरों की वजह से। भारत के जबाबदार नागरिक होने के नाते हमारा ये फर्ज है की ऐसे ईमानदार लोगों के साथ हम अपनी एकजुटता प्रदर्शित करें, ताकि और ईमानदार लोग सरकार के भ्रस्ताचार के खिलाफ आवाज उठाने का सहस कर सकें। उससे भी आंगे जन- जन को जागरूक करना चाहिए ताकि सरकार को घुटने टेकने के लिए मजबूर होना पड़े, और इस भ्रष्टाचार रूपी विषैले नाग से आम जनता की रक्षा हो सके ।  जिस दिन ये आवाज पूरी तरह बंद हो गई उस दिन इस देश को "बनाना रिपब्लिक" बनने  में जरा भी देर नहीं लगेगी।  

गुरुवार, 18 अक्तूबर 2012

नासमझ !!



देश की ताज़ा परिस्थितयों में आज के नेताओं को एक सुझाव और चेतावनी।।।।।।


तेरी नासमझी का ये आलम।
न मैं समझूँ न मेरी ये कलम।।
कैसा है शोर, क्यूँ  है ये मातम।
कैसे बन गया तू इतना निर्मम।।

मिथ्याभिमान की बेड़ियों में।
निज स्वार्थ के इस भेड़िये में।।
कब तक बंधक बना रहेगा।
कब तक यूँ ही जकड़ा रहेगा।।

खोल दे बेड़ियाँ, नहीं टूट जायेगा।
तेरा अभिमान यूँ ही बिखर जायेगा।।
अपनी बंद आखें तो खोल।
अपने अन्दर झांक और टटोल।।

लोगों के भविष्य से ऐसे न खेल।
अपने कर्म से यूँ मुह न मोड़।।
समय की आहट को तो पहचान।
पास आती आफत से हो सावधान।।

देदे उनका दाना, उनका हक।
नहीं तो तू यूँ ही मिट जाएगा।।
अहंकार से भरा तेरा ये सर।
यूँ ही एक दिन कट जायेगा।।

शनिवार, 13 अक्तूबर 2012

बलात्कार रोकने का अचूक उपाय !




बलात्कार की घटनाये जिस तरह पूरे देश में बढ़ रही हैं, और सरकारें और प्रशासन इन्हें रोकने में असफल रहा है, इस पर सरकार की मंशा और कानून की द्रढ़ता पर भी सवाल उठता है, पिछले 1 महीने में सिर्फ हरियाणा में ही 15 से अधिक बलात्कार की घटनाये हुई है, पिछले कुछ दिनों पहले उडीसा में एक मत्री समर्थित लोगों ने पहले बलात्कार किया और फिर हत्या करने की कोशिश की, 4 साल की लड़कियों का तक बलात्कार होता हैं, आज हमारी महिलाएं बिलकुल भी सुरक्षित नहीं है, ये भेड़िये हमेशा ताक में रहते हैं की कब मौका मिले और कब इन्हें अपना शिकार  बनायें। कुछ आंकड़ों पर नजर डाले तो 2011 में 24206 बलात्कार के मामले  दर्ज हुए  जो 1971 के 2043 मामलों  से 873 % अधिक है, हालाँकि एक साल में 2043 का आंकड़ा भी बहुत अधिक है। और बलात्कार का एक भी मामला असहनीय है।   मेरी नजर में बलात्कार सबसे घ्रणित और क्रूर अपराध है, ऐसे लोगों को मानव नहीं कहा जा सकता वो सिर्फ दरिन्दे हैं, और सरकार को ऐसा प्रावधान करना चाहिए की बलात्कार के आरोपों की जांच 6 महीने के अन्दर पूरी हो, जाच पारदर्शी हो, मामले की सुनवाई महिला जज से हो तथा जाच के हर स्तर  में भी महिला अधिकारी और कर्मी की भी हिसेदारी होना चाहिए,  और दोषियों की खासकर जिनके लिए प्रत्यक्ष प्रमाण मौजूद  हैं, उनके लिंग काट देना चाहिए और यही नहीं उनके गुदा में गर्म सरिया डालना चाहिए ताकि उन्हें उस  पीड़ा का एहसास हो जो उस मासूम को होता है जिसका ये बलात्कार करते हैं, कुछ लोग ये कहेंगे की जो सुझाव मैंने दिए वो अमानवीय है, मेरा तर्क है जो अमानवीय कार्य करता है वो मानव है ही नहीं दरिन्दे है, और बलात्कार से अधिक दरिंदगी भरा कोई काम कोई और नहीं है, और दरिंदों को अति कठिन सजा मिलनी चाहिए।।। ताकि हमारी बेटियां, बहने, देवियाँ और माताएं सुरक्षित और सम्मानित रहें ! 

ऐसे मंत्री और अधिकारी जो बलात्कार के मामलों में महिला विरोधी बयान  देते हैं उन्हें बिना जांच किये बर्खास्त कर  जेल में डाल  देना चाहिए। 

मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012

बापू का जन्मोत्सव (व्यंग)




मेरे प्यारे दोस्तों हम हरसाल बापू का जन्म दिन मानते हैं, स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस मानते हैं, और प्रतिमा में फूल चड़ने के बाद सब भूल जाते हैं, हमें अपने जीवन में ये याद नहीं रहता की इन सब पर्वों के मनाने का असल उद्देश्य क्या है, हम इन महान व्यक्तियों द्वारा स्थापित आदर्शों को जरा भी अनुसरित करने का प्रयास नहीं करते उसी पर एक कटाक्ष्य है मेरी ये कविता!!


आओ आज मनायेबापू का जन्मोत्सव फिर एक बार,
सिद्धांतों की बलि चढाएंसंस्कारों का हो बलिदान,

सत्यअहिंसाभोग लगायेंपूरी हो अपनी दरकार,
अनाचार का दीप जलाये, लोभ का बने केक हर बार 

कभी किसी का भला  सोचें ही करें अतिथि सत्कार,
उत्तरदाइत्त्यों से मुह मोडेंभरती रहे जेब हर बार,

बापू को दें श्रद्धांजलिकपटद्वेषघूसखोरी की,
जन्म दिवस पर देन कुछ तोहफाअर्थी उनकी बातों की,

आओ आज मनायेबापू का जन्मोत्सव फिर एक बार...
सिद्धांतों की बलि चढाएंसंस्कारों का हो बलिदान....

शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

जनतंत्र की आड़ में चल रहा है डाकू तंत्र!!



आज जिस तरह देश की जनता महगाई, भ्रस्टाचार, और गरीबी से पीड़ित है, और हमारी सरकार कान में लोहे का सरिया डाल कर बैठी हुई है, उससे यही लगता है की ये जनता की सरकार नहीं डाकुओं की सरकार है, इन छद्म खादी धारकों को जनता का दर्द जराभी महसूश नहीं होता, उल्टा महगाई और घोटालों के नित नए कीर्तिमान स्थापित करने में लगे हैं, चाहे २ जी हो, राष्ट्रमंडल खेल हो, कोयला घोटाला हो, या अभी आने वाला लौह अयस्क घोटाला हो, ये हमारी माँ की कोख को बेच कर स्विस बैंक में पैसे जमा कर रहे हैं, हमारे हिस्से की रोटी छीन कर विदेशों में सड़ने के लिए जमा कर रहे हैं,  ये जनतंत्र के नाम पर ढकोसला है, सिर्फ डाकू तंत्र है, जनतंत्र में जनता का दर्द उसकी आह सुनी जाती है, और यहाँ ये संविधान के ठेकेदार संसद में बैठकर जनता का मखौल उड़ाते हैं, कुश्ती लड़ते हैं, अश्लील फिल्मे देखते हैं, आज एक भी नेता क्या संविधान की भावना में रहकर काम करता है,  आज देश का इनकी नजरमे देश का अमीर नागरिक जो २३ रुपये और २९ रुपये में  ख़ुशी से अपना जीवन निर्वाह कर रहा है,  उस पर इतना और महगाई का बोझ डालना कहा तक लोकतंत्र की परिभाषा में ठीक बैठता है,  मैं हर एक मंत्री को यह चुनौती देता हूँ की अगर वो १०० रुपये रोज में भी अपना जीवन यापन करके दिखाएँ तो मैं जीवन भर अपनी आधी मूछ कटवाकर घूमूँगा और उसकी गुलामी करूंगा और यदि ये इतने में गुजरा नहीं करपाए तो इन्हें इस बात पे शर्म आनी चाहिये की इनकी नजर में गाँव में २३ और शहर में २९ कमाने वाला व्यक्ति यदि गरीब नहीं है, तो ये क्यों नहीं गुजरा कर सकते, और इन्हें भी वही शर्त पूरी करनी चाहिए और इन्हें जनता की गुलामी करनी चाहिए. ये छद्म वेशधारी लोग खादी की आड़ में खादी का भी घोर अपमान कर रहे हैं,  इन खादी छाप डाकुओं को इस बात से कोई शर्म नहीं आता कि एक तरफ तो देश कि प्राक्रतिक सम्पदा जैसे, कोयला, लोहा, तांबा, आदि  को अपने बाप की सम्पति मान कर अपने परिवार वालों को मुफ्त में बाट रहे हैं और  मुद्रा कि घटती साख को रोकने का कोई उपाय नहीं कर रहे हैं, और दूसरे तरफ गरीब जनता का महगाई बढाकर खून चूस रहे हैं, 

इससे भी अधिक यदि कोई इनके खिलाफ कुछ बोलेगा तो उसे देश द्रोह के आरोप में उम्र कैद दिलादेंगे, इन डाकुओं को ये समझ लेना चाहिए कि ये देश नहीं है, ये राष्ट्र नहीं है, ये देश कि जनता की सेवा के लिए नियुक्त ऐसे प्रतिनिधि हैं जो पिछले ६५ साल से भोली जनता को बेबकूफ बना रहे हैं और उनका खून पी रहे हैं. एक खादी छाप डाकू अंगले ६० साल और हमारा खून चूसने का दावा कर रहे थे, एक लोग इतने अहंकारी, इतने क्रूर हो चुके हैं की अगर हमने इन्हें धक्के मार कर कुर्सी से नहीं हटाया तो ये यूँ ही हमारा घर उजड़ते रहेंगे और हमारा लहू पीते रहेंगे.....मैं एक बात अवश्य कह सकता हूँ की हमरे बापू जी, भगत सिंह और नेता जी ने ऐसे देश और नेताओं की कल्पना तक नहीं की होगी, उन्हें ये नहीं पता रहा होगा की जिस के लिए वो अपने प्राण दे रहे हैं उसी देश के तथाकथित कर्णधार जनता का खून पियेंगे....आज जहाँ भी इन लोगोंकी आत्माएं होंगी बहुत रोती होंगी..!!

( नोट: मैंने इसमें दुबले और चिंतित गाँधी जी की फोटो इस लिए लगे है की शायद इन लोगों को शर्म आये) 

जय हिंद!! जय भारत माँ!! जय भारत जन!!

बुधवार, 22 अगस्त 2012

कश्ती को डुबोते देखा है



किनारों से टकराकर,
लहरों को बिखरते देखा है,
रेत में डूब कर यूँ ही, 
उनको मिटते देखा है,

हवा के पागल झोके,
जब मौत बनकर मंडराते हैं,
इस तिनके को क्या कहूं,
बरगद को भी उखाड़ते देखा है,

जीवन की इस नदिया में,
कठिन धार जब आती है,
उस भंवर को मैं क्या कहूं 
कश्ती को ही डुबोते देखा है, 

उनके ईमान को मैं क्या कहूं, 
गैरत का हाल मैं क्या कहूं,
मैंने खून को बनते पानी, 
उस पानी को भी सड़ते देखा है 

जिन्दगी की रफ़्तार में,
सैलाब जब आता है कामयाबी का,
इस जमीन को मैं क्या कहूं, 
दिलों को भी फटते देखा है, 

इस  दुनिया के छलावे में,
अपने और गैरों के भुलावे में,  
इस बदलती जुबान का क्या,
मैंने बाप भी बदलते देखा है,

शुक्रवार, 10 अगस्त 2012

हे गोपाल, हे नटवर





हे गोपाल, हे नटवर, 
राधा के मोहन, 
तुम  हो पधारे आज,
भक्तन सुखकारी,

यशुदा के लाला तुम,
नन्द के कन्हाई,
देवकी के लाडले तुम,
वासुदेव  प्राण प्यारे,

मधुसूदन, नारायण,
श्याम तुम कहलाते,
रणछोर बने तुम,
जगन्नाथ कहलाते,

तुम तो हो परंतप,
तुम हो अविकारी,
धर्म की धुरी हो तुम,
तुम हो अविनाशी,

गोपियों को मान दिया,
माखन चुराके,
सखियों को धन्य किया,
महारास रचा के,

बंसी की मधुर धुन पे,
जग सारा नाचे,
तुमतो हमारे नाथ,
सब को  तुम तारो,

यमुना को तार दिया,
चरण छुआ के,
कालिया को तार दिया,
नाच नचा के,

गोकुल का वही माखन
मथुरा के पेंडे,
ब्रन्दावन के मधुर गीत,
तुमको पुकारें,

आजाओ मेरे नाथ,
मन में विराजो,
इस पापी जन को,
बांसुरी सुना दो,

गुरुवार, 2 अगस्त 2012

युद्द नाद



आग का दरिया जो दिल में है
उसे हिमालय की ओर तो जाने दो,
उनके  सिंघासन  बहुत उचाई पर हैं,
धारा उलटी तो आज बहाने दो,

न रोको आज उबल रहा है जो लावा,
धरा को फाड़ कर उसे बाहर तो आने दो,
सब्र का बान तोड़ दो आज,
बाढ़ आती है आज तो आजाने दो,

कब से इन्तजार है अपने हक का,
अपने हिस्से के दो टुकड़ों, खुशियों का,
साल जाते रहे, दशक भी गुजर गए,
आह को सीने में दबाकर यूँ ही बैठे रहे,

आज बहा दो आंसू की धार दिल से,
सैलाब आता है आज तो आजाने दो,
अपना हक तुम्हे है छीनना अपनोसे,
घबराओ नहीं बस डट कर संग्राम करो,

दिखा दो इन शोषकों को अपनी शक्ती,
अहिंसा की तलवार से ऐसा घाव करो,
अटल रहो अंगद के एक पांव की तरह,
इनके कुकर्मो का सारा हिसाब करो,

कटा दो सर अपना गर जरूरत हो,
भारत - जन पर जीवन कुर्बान करो,
भगत, गाँधी की रूह भी हँस पड़े,
अबकी ऐसा ही कोई युद्द नाद करो, 


जय हिंद! जय भारत-जन!

बुधवार, 1 अगस्त 2012

शंखनाद है संपूर्ण क्रांति का



वहां तुम जलाओ यहाँ हम जलाये,
मिलकर सब दिये मशाल बने,
एक साथ थाम कर इस मशाल को,
सच्चे गणतंत्र का सपना साकार करें, 

सब के दिलों में जो धधकती आग है,
वो बाहर निकल आज हवन कुण्ड बने,
राष्ट्र-यज्ञ मागता है फिर से बलिदान,
इस वेदी में खुद को बलिदान करें,

एक - एक से मिलकर बनता है कारवां,
घर से निकाल कर इसे और सशक्त करें,
मूक दर्शक नहीं बनना है अब हमे,
आओ सब मिलकर युद्ध घोष करें,

शंखनाद है ये संपूर्ण क्रांति का,
आओ हम सब इसके गवाह बने,
भारत- जन के हित के खातिर,
आओ हम भी अपने हिस्से का बलिदान करें,


जय हिंद !! जय भारत!! जय भारतीय गणराज्य !!