सोमवार, 26 मार्च 2012

मालूम न था रास्ते बेवफा निकलेगे





आये थे उनके दर पे ढूढने सुकून,
मालूम न था होश खो बैठेंगे,
एक ख़ुशी की ही इल्तजा थी,
मालूम न था रास्ते बेवफा निकलेगे,

उनके तबस्सुम पे जान छिड़कते चले,
उनके ग़मों को दामन से लपेटते चले,
उम्र भर साथ चलने का वादा था उनसे,
मालूम न था यूँ हौसला खो बैठेगे,

बिना बारिस के ये कैसी है बाढ़ आई,
मेरे लिए कब वो गम की सौगात लाई,
हम तो खड़े थे किनारे पे उनका हाथ थामे,
हाथ तो न छूटा, न जाने कैसे साथ छूटा,

न वो हैं बेवफा न हम ही हैं,
साथ चलने की आरजू भी है,
कुछ कदम भी न चल सके फिर भी,
थक कर चूर हो चुके वो भी,

ये खुदा की है मर्जी या जिन्दगी का फ़साना,
यूँ लोगों का करीब आके दूर जाना, 
ये कैसा है जूनून, कैसा है नजराना,
मेरे रहनुमा अब तो तेरा ही है सहारा,

                                            -डॉ. सुधीर कुमार शुक्ल "तेजस्वी" 

सोमवार, 19 मार्च 2012

गंगा माँ की करुण पुकार



भारत की जीवन रेखा कही जाने वाली अमृत- सलिल दायिनी माँ गंगा की अविरल धारा को बनाये रखने हेतुभारत के प्रसिद्द पर्यावरण विज्ञानी और आई. आई. टी, कानपुर पूर्व प्राध्यापक, डॉ. जी. डी. अग्रवाल जी पिछले कई सालों से आन्दोलन रत हैंइसी कड़ी में वो पिछले ९ दिनों से अन्न-जल त्याग कर आमरण अनशन में बैठे हुए है, उनकी  हालत बहुत गंभीर है और वो अस्पताल में भारती हैं, ये बड़े शर्म की बात है की १ बृध व्यक्ति माँ गंगा की सेवा में जीवन मृत्यु से जूझ रहा है और भारत सरकार जो, आपना चरित्र और अपनी आत्मा दोनों बेच चुकी है, और दिशा हीन हो चुकी है वो उनकी आवाज सुनने को तैयार नहीं है!! इस कविता के माध्यम से मेरी देश के नागरिकों से प्रार्थना है की वो, आपनी आवाज इतनी बुलंद करें की भारत सरकार के कान जो बहरे हो चुके हैं वो खुल जाएँ, और माँ गंगा की धारा यूँ ही अवुरल बहती रहे!!....कृपया इस कविता को अधिक से अधिक शेयर कर माँ के इस जीवन- मृत्यु की लड़ाई में अपना योगदान दें! और यह सिद्ध करदें की हूँ एक सच्चे भारत वंशी हैं,...जय ..जय माँ गंगे!..........जय... जय भारत जीवन दायिनी!! जय... जय..भारत गौरव!!!! ......... 




भारत जन की जीवन दायिनी,
आज व्यथित गंगा जर- जर है, 
हर मानव को तारने वाली,
माग रही माता जीवन है, 

माता से भी ऊपर थी जो,
कितनी निर्मल, पवन थी जो,
कभी थी अविरल जिसकी धारा,
उसका था वो रूप निराला,

है गंगोत्री उसका उद्गम,
ऋषिकेश, हरिद्वार बने तट,
काशी और प्रयाग बने थे,
धर्म धुरी बन अटल खड़े थे,



हम सब की है वो गौरव,
भारत की है जीवन रेखा,
फली जहाँ थी अपनी संस्कृति,
सबको उसने सलिल पिलाया,

हुए थे कितने समर भयंकर,
आये- गए हजारों शासक,
नहीं किसी ने रोकी धारा,
गंगा थी उतनी ही अविरल 

आज उसी को लूट रहे हैं,
क्रूर उसी को काट रहे हैं,
जगह- जगह पर बांध बनाके,
गंगा का दम घोट रहे हैं,

देश के दुश्मन लूट रहे हैं,
माँ का दामन कुलषित करके,
लोलुपता और कुत्सित मन से,
माँ की काया लूट रहे हैं,



एक  विज्ञानी, है अभिमानी,
पर्यावरण का है वो ज्ञानी,
गंगा माँ का निछल प्रहरी,
आज समर में जूझ रहा है,

आज समर है, जर्जर तन है,
रुके कदम है, अविचल मन है,
गंगा माँ की लाज  बचाने,
डटा बृद्ध तन, मन यौवन  है,

कलयुग का वो बना भागीरथ,
माँ की लाज बचाने आया,
माँ के प्राण बचाने खातिर,
जीवन- मृत्यु ये जूझ रहा है,

है पुकार ये माँ गंगा की,
मेरे सभी सपूतो जागो,
आन्दोलन को प्रखर बनाओ,
अपनी माँ के प्राण बचाओ, 

                 - डॉ सुधीर कुमार शुक्ल "तेजस्वी" 

हालीवुड की महिमा





ये है हालीवुड की महिमा !
ये है इस कलयुग की गीता !!
इस युग का कुरान औ बाईबल !
जीवन का दर्शन है ये अब !!

लोग सीखते हैं अब इससे !
कैसे है जीवन को जीना !!
नेता हों या जन साधारण !
सब में है अब इसकी लीला !!

नए विचारों को ये लाता !
पाप: पुण्य है ये समझाता !!
मन में नयी उर्जा भरकर !
दुर्गम काम है ये करवाता !!

कामुकता है नयी संस्कृति !
बेशर्मी है जीवन शैली !!
लोलुपता है धर्म आज अब !
बिकनी है अबतो पहनावा !!

सुन्दर महिलाओं के तन से !
कपड़े गायब ये करवाता !!
पूरे कपड़े जो भी पहने !
बदसूरत है वो कहलाता !!


नंगापन है हमे सिखाता !
बेशर्मी को दी परिभाषा !!
कैसे किसका मर्डर है करना !
नए तरीके है सिखलाता !!

पॉलीगैमी या समलिंगी !
कैसे बनना है समझाता !!
भड़वों का यूँ राजा बनकर !
कैसे है हमको इतराना !!

है ये पंचतंत्र से अद्भुत !
इसके हैं डायलाग प्रसिद्ध !!
है प्रभाव इसका अतुलित !
रहे न कोई अब संतुलित !!

पांच साल के बच्चे से यूँ  !
कन्या मित्र को पाने खातिर !!
बच्चे से गोली चलवाकर !
मॉस मर्डर है ये करवाता !!

नाक कटा के मन बह्लाके !
कैसे करें कैरेक्टर ढीला !!
मात-पिता और बड़ों के सन्मुख !
दें कैसे गर्लफ्रेंड को चूमा !!

कहते थे व्यभिचार जिसे हम !
अब एडवांस है वो कहलाता !!
औरों की बीवी संग सोना !
ये अब है फैशन कहलाता !!

शांति पूर्ण जीवन हो यदि तो !
बोरिंग लाइफ हैं अब कहते !!
हो अशांति और अति तनाव तो !
अडवेंचर है उसको कहते !!

करे जो सेवा मात- पिता की !
उसको उल्लू हैं अब कहते !!
केवल नयी गर्लफ्रेंड को अब !
अपनी फैमिली हैं हम कहते !!

नया प्रिंसिपल लिविन रिलेशन !
औ एक्स्ट्रा-मैरिटल अफेयर !!
हर एक रात में टेस्ट बदलना !
सुखमय जीवन की परभाषा !!

कभी जो काम बड़े थे मुश्किल !
सोच नहीं पाते थे जो हम !!
आज सुलभ हैं वो सब कितने !
हालीवुड ने दिए ये सपने !!

                                - डॉ सुधीर कुमार शुक्ल 'तेजस्वी" 

सोमवार, 12 मार्च 2012

सारी दुनिया है बिकाऊं



सभी लगाते हैं आज बोली !
दिखाके अपनी  सूरत भोली !! 

अगर किसी ने दो बात करदी !
समझलो तुम्हारी लगादी बोली !!

समझ ले इतना ऐ भोले बन्दे !
की सारी दुनिया है ये बिकाऊं !!


कोई नहीं है यहाँ पे अपना !
सभी को प्यारा अपना सपना !!

अपने-अपने काम के खातिर !
तुझे करेंगे यूज ये काफ़िर !!

करेंगे तेरा शिकार ये सब !
अगर जो दाना तू ने खाया !!

तोड़ दे इनका ये जाल प्यारे ! 
निकल जा इनके पाश से प्यारे!!

जलजला



ये जलजला है महाविनाश का,
ये सिलसिला है भ्रष्टाचार का,
मिलावट हर चीज में यहाँ
दिखावट है हर किसी में यहाँ,

यहाँ पे लगती सबकी कीमत,
यहाँ लुटेरे भरे पड़े हैं,
यहाँ है सबकुछ पैसा भाई,
खून के प्यासे घूम रहे हैं,

कोई किसी को यहाँ लूटता,
भरे शहर में नंगा करता, 
कही किसी की अस्मत लुटती,
नहीं किसी प्यास है बुझती,

दूध चाहिए वहां मिलावट,
नोन चाहिए वहां मिलावट,
खून चाहिए वहां मिलावट,
प्यार चाहिए वहां मिलावट,

सभी जगह है भरी मिलावट,
लाज- शर्म में वही मिलावट,
बने शरीफ जो फिरते भाई,
उनके दिल में वही मिलावट,

नहीं सुरक्षित है यहाँ अबला,
बना भेड़िया है नर भाई,
बच्चों के परवरिस के खातिर,
माँ को नहीं समय है भाई,

कैसी है ये आफत आई,
ये है पतन की सीमा भाई,
नहीं जो तुमने आँखें खोली,
एक दिन तुम भी डूब मरोगे,

                              -डॉ. सुधीर कुमार शुक्ल "तेजस्वी" 

रविवार, 11 मार्च 2012

नहा लो तुम



नहा लो तुम यूँ बदन को घिस कर,
लगा लो शैम्पू, या सोप कितने,
नहीं धुलेगा मैल तुम्हारा,
रहेगा मैला मन जब तलक यूँ,

करालो चेहरे को ब्लीच कितना,
सजा लो चेहरा, लगा लो सेहरा,
नहीं  धुलेगी  यूँ तेरी कालिख,
करेगा छल और कपट यूँ ही तू, 

पहन लो कपड़े, हों ब्रांड जितने,
टशन बढ़ालो यूँ चाहे जितनी,
रहेगा तू यूँ निरा भिखारी, 
नहीं है करूणा अगर जिगर में,

तुझे है गुरूर तेरे कद पर,
है दंभ तुझको तेरे हुनर पर,
बजेगा तू जैसे एक डफली,
चरित्र तेरा अगर जो बिगड़ा,

तुझे अगर दिखना है खूबसूरत,
लगा दे झाड़ू तेरे ही मन में,
मिटा दे व्यभिचार तेरे मन का,
न कर कभी अत्याचार फिर से,


धुलेंगे मन के जब दाग तेरे,
चुनेगा रस्ता जो हो सही वो, 
बनेगा तेरा सफ़र सुहाना,
बनेगा फिरसे तू एक मानव,

                      -डॉ. सुधीर कुमार शुक्ल "तेजस्वी" 

शनिवार, 10 मार्च 2012

करतें हैं विष पान आज भी





करतें हैं विष पान आज भी,
हमको अमृत देते हैं,
अडिग खड़े हैं बनकर अंगद,
हमको जीवन देते हैं,

यह वृक्षों की हैं परिभाषा,
पर हित जीवन जीतें हैं,
पत्थर भी जो कोई उछाले,
बदले में फल देते हैं,

पथिक थके तो शीतल छाया दे,
थकान सब हरतें हैं,
चिड़ियों के कलरव से जैसे,
मुरली का सुख देते हैं.

कर आलिंगन धरती का,
उर्वरता और बढ़ाते हैं,
जल समेट कर बाँहों में,
नदियों की गोदी भरते हैं,

बदल से वो प्रेम करें,
औ बारिस अधिक करातें हैं,
शीतल वायु प्रदान करें,
धरती का ताप घटातें हैं,

मानव को वो औषधि देते,
फूलों को देते लाली,
पर्वत को वो देते अम्बर,
झरनों को देते पानी,

कवियों को वो कविता देते,
ऋषियों को देते सिद्धी,
संस्कारों का उद्गम हैं वो,
संस्कृति है उनकी थाती,

नहीं बचेगा अगर वृक्ष तो,
धरती फिर हरी नहीं होगी,
वायु  बनेगी अधिक विषैली,
जीवन - वायु नहीं होगी,

बादल भी न पानी देगा,
नदियाँ भी सूखी होंगी,
धरा हुई जो नग्न कहीं तो,
जीवन आस नहीं होगी,

ऐ धरती के श्रेष्ठ सपूतो,
धरती की लाज बचाना है,
वृक्ष- चीर का कर संरक्षण,
जीवन हमे बचाना है,

                          -    डॉ सुधीर कुमार शुक्ल " तेजस्वी"

गुरुवार, 8 मार्च 2012

होली गीत: डारो न मो पे रंग सावरिया




डारो न मो पे रंग सावरिया......... डारो न मो पे रंग-४ 

अबही तो है मोरी बारी उमरिया-२ 
करो न मोकाह तंग सवारिया, डारो न मोपे रंग-४

रंग परत मोरी चुनरी भीजत- २ 
आवत है मोहे लाज सवारिया, डारो न मोपे रंग-४ 

गाँव- नगर के लोगवा देखत हैं-२ 
सब मिल करिहैं हँसाई सवारिया, डारो न मोपे रंग-४ 

बरबस ही तूने पकड़ी कलाई-२ 
टूटत है मोरा अंग सवारिया, डारो न मोपे रंग-४ 

तुम तो लाला जनम के कपटी-२ 
जानूं मैं तोरो ढंग सवारिया, डारो न मोपे रंग-४ 

राधा के संग नेह लगावो - २ 
करत हो मोको तंग सवारिया, डारो न मोपे रंग-४ 

नेह करो फिर रंग लगाओ-२ 
करो न झूंठो तंग सवारिया, डारो न मोपे रंग-४ 

डारो न मो पे रंग सावरिया......... डारो न मो पे रंग-४ 

                                                     - डॉ. सुधीर कुमार शुक्ल " तेजस्वी" 

बुधवार, 7 मार्च 2012

होरी में मनवा बिहंग मचलत है

होली के पवन पर्व पर आप सभी को मेरी हार्दिक शुभकामनाये....ईश्वर आप सभी का जीवन खुशियों के रंग से सजा दे.....



रंग भरे चहुँ ओर बसंत मचलत है,
गालों में गोरी के गुलाल मचलत हैं,

मोहक सुगंध संग बयार मचलत है,
बागन में पंछी स्वच्छंद बिचरत  हैं,

राधा के संग-संग श्याम मचलत है,
चाँद, संग सूरज भी आज बिचरत है,

रंग और गुलाल, मृदंग मचलत हैं,
नदिया संग सागर बेईमान ढुरकत है,

कलियों संग भौरा मदमस्त मचलत है,
झरनों संग बादल बेईमान मचलत है,

बौराई धरती मतंग मचलत है,
अम्बर संग बनके पतंग मचलत है,

नैनो में खुशियों के रंग मचलत हैं,
मन में एक नूतन उमंग मचलत है,

गोरी के नैनन से रंग बरसत है,  
होरी में मनवा बिहंग मचलत है,

                                   -डॉ. सुधीर कुमार शुक्ल 'तेजस्वी" 

मंगलवार, 6 मार्च 2012

गुलिस्तों के उजड़ जाने से मैं डरता हूँ





छुपाया था जिन्हें जिगर में साँसों की तरह,
सिगार का धुआं बन जायेंगे इल्म न था 
रहते थे जिस जगह, मालिक बनकर 
आशियाने को जला डालेंगे इल्म न था 

पता था कालिख तो लगेगी मगर,
हश्र- ए- इखलास मालूम न था, 
जलने का डर तो परवाने को भी था,
शम्मा इतनी बेरहम होगी मालुम न था,

आँखों में अश्क की तरह सजाया था,
तेज़ाब बन जायेंगे मालूम न था ,
जिन पलकों में बसते थे आठों पहर,
ख्वाब को खाक कर देंगे मालूम न था,

जिगर के टुकड़ों को समेट कर बैठा हूँ 
मासूम पलकों में तेज़ाब सहेज कर बैठा हूँ,
कह दूं ज़माने से किस्सा उनकी बेवफाई का,
उनके बेआबरू होने से मैं डरता हूँ,

अपनी बर्बादी का तो ग़म नहीं यारो,
उनकी बदनामी से मैं डरता हूँ,
गुलों में कांटो का जख्म न जान ले कोई,
गुलिस्तों के उजड़ जाने से मैं डरता हूँ,

                                           - डॉ. सुधीर कुमार शुक्ल " तेजस्वी"