शुक्रवार, 20 जनवरी 2012

मैंने क्यों छेड़ी थी लड़ाई


माननीय अन्ना हजारे जी के द्वारा लोकपाल पारित करवाने के सन्दर्भ में किये गए देश व्यापी आन्दोलन में आये ठहराव, एवं मुंबई में अपेक्षित समर्थन मिलने से हुई वेदना से प्रेरित चंद पंक्तियाँ: मुझे विश्वास है ये आपको एक बार पुनः सोचने के लिए प्रेरित करेंगी.....

अभी उठा था, अभी गिर गया
मैंने ऐसी, ठोकर खाई,
अभी चला था, अभी रुक गया,
कैसी है ये, अजब लड़ाई,

अभी हंसा था, अभी रो गया,
किसकी है, ये याद जो आई,
कितने ही, अफसानो ने जैसे,
दिल में मेरे, आग लगाई,

कभी हुआ था, कही सबेरा,
रुत ने भी, ली थी अंगड़ाई,
शाम हुई, और डूबा सूरज,
मेरी तो, आँखें भर आई,
मुझे पता था, कठिन लक्ष्य है,
छेड़ी थी, फिर भी, ये लड़ाई,
मिला साथ था, बढ़ा जोश था,
लगा था, जैसे मंजिल आई,

तभी अचानक, शोर थम गया,
जनता का था, जोश कम हुआ,
शत्रु प्रबल था, मैं दुर्बल था,
अपनों ने, की थी रुसवाई,

मन में जोश वही था, फिर भी,
मैंने क्यों थी, मात ये खाई,
जिसके लिए किया था, अनसन,
उसने ही थी, पीठ दिखाई,


मेरे मन में थी, एक दुविधा,
इसमें तो थी, सब की सुविधा,
फिर भी मैं, क्यूँ  ऐसे हरा,
मैंने फिर, क्यों ठोकर खाई,

लक्ष्य सही था, जोश वही था,
मैंने फिर, क्यों ठोकर खाई,
बे-इंसाफी की, दुनिया मे,
मैंने थीक्यों आस लगाई,
मैं आवारा, था बंजारा,
फिर भी थी, क्यों प्रीत लगाई,
लोकपाल को, लाने खातिर,
मैंने क्यों, छेड़ी थी लड़ाई,

-    सुधीर कुमार शुक्ल  तेजस्वी

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