मंगलवार, 31 जनवरी 2012

मेरा बचपन और मेरा गाँव




जो कभी गए थे, दूर निकर,
घर छूटा, छूटे अपने सब,
हैं बीत गए, कितने दिन अब,
आते हैं याद, सभी पल अब,

जो  हुआ सबेरा, दादी जी की,
खटपट की, आवाज जो आई,
वो दादा जी का, बड़े भोर,
उठना और, बाग़ तरफ जाना, 

वो, सुबह सबेरे, का उठना,
वो, खेतों पर, मोती चुनना,
सब याद, बहुत अब आते हैं,
आँखों में, मोती लाते हैं,

वो माँ का, दूध भरा गिलास,
लेकर मेरे, पीछे आना,
मेरा वो, भाग-भाग कर तब,
नखरे करना, कैसे छुपना,

वो पापा का, झूंठा गुस्सा,
वो माँ के, अंचल में छिपना,
फिर पापा का, वो मुस्काना,
सिर पर उनका, वो सहलाना,

वो दीदी का मेरे खातिर,
अपना हिस्सा भी देदेना,
गोदी में मुझको ले करके, 
बिद्यालय का उनका जाना 

वो बारिस में, मुझको उनका,
अपने कपड़ो से, ढक लेना,
मुझे रुलाकर, उनका वो ,
हँस- हँस कर, पागल सा होना,

फिर मुझे मानाने खातिर
माँ से छुप कर, मुझको गुड देना,
सब याद बहुत अब आता है,
दीदी की याद दिलाता है,

वो मेरा घर, घर पे गैया,
वो गैया को, चारा देना,
बछड़े का, उछल- कूद करना,
वो बगिया में, उसका घुसना, 
पहली बारिश की, बौछारें,
वो सोंधी माटी की, खुशबू,
वो खेतों पर, हल का चलना,
बगुलों का खेतों पर, उड़ना,

जब होती सर्दी में, ठिठुरन,
वो दांतों का, किट -किट करना,
हुई शाम, उलाव जलाकर,
मिलकर वो, सबका बैठना,

गर्मी की ठंडी रातों में,
करवट लेना, तारे गिनना, 
वो चंदामामा के संग-संग,
बातें करना, किस्से गढ़ना,

वो दादी का, मेरे खातिर,
परियों के किस्से, कहना,
पल  याद, अभी भी आते हैं,
दादी की याद दिलाते हैं,

रजनी से मेरी शादी पर,
यूँ, मेरा ऐसे चिढजाना,
वो मन ही मन में खुश होना,
और बाहर से गुस्सा होना,

जब चाचा मुझे चिढाते थे,
तब हँस-हँस कर मेरा रोना,
फिर सिसक-सिसक करके मेरा,
यूँ माँ की गोंदी में सोना,


वो माँ की ममता का अंचल,
वो चाचा का बनना पागल,
वो स्वप्निल सी मीठी यादें,
तनहा मुझको कर जाती हैं, 


वो नदिया का, कल- कल करना,
निर्मल पानी का, वो झरना,
खेल - खेल में, भैया का,
वो पानी में, धक्का देना,

वो बबलू की, जूठी टॉफी,
वो देशी घी, जौ की रोटी,
वो राजू को, मेवे देना,
वो मक्खन - रोटी का लेना,

वो जूठी रोटी का, सौदा,
वो सूखी रोटी का, मेवा
वो याद अभी भी आता है,
मन बचपन में खो जाता है,

कभी गुल्ली-डंडा,आंख मिचौली,
कभी दौड़ की, प्रतियोगिता,
कभी नुक्कड़ में, होता सर्कस,
कभी चाचा का, कुश्ती लड़ना,

वो खेल- खेल में, सोनू का,
चिड़ना और चिडकर, रो देना,
पल याद अभी वो आतें हैं,
मेरे गाँव मुझे, ले जाते हैं, 

वो बाग़ बगीचेहरे पेड़ 
वो लदे फलों से, पेड़ सभी,
उन पर बंदर की, उछल- कूद,
डाली पर, उनकी नौटंकी,

कभी दांत दिखाते आते हैं,
कभी आंख मीच डराते हैं,
कभी कुत्तों से, डर जाते हैं,
लगते वो, कितने अपने हैं,

वो कूक उठी, कोयल काली,
अमराई पर, बौरें आई,
मदमाती सी, खुशबू आई,
जैसे सारी, खुशियाँ लाई,

वो होली, जब- जब आती थी,
बच्चों की टोली, आती थी,
वो राधा काछुप कर आना,
सब रंगों का, फिर मिलजाना,

राधा की गुड़िया की, शादी,
वो ढोल, नगाड़े, बाराती, 
सब मीठी यादें, आती हैं,
मुस्कान नई दे जाती हैं,

जब हुई शाम तो, बैठक पर,
रामू चाचा, का अजाना,
दादा जी से, छुपकर मेरा,
वो छोटी को, चुटकी करना,

वो बचपन की, नटखट बातें,
कैसी-कैसी, छोटी बातें,
जब याद अभी, वो आतीं है,
मुझे बचपन में ले जाती हैं,

हूँ दूर बहुत मैं, सबसे अब,
मेरा गाँव नहीं है, पास मगर,
हर गली- मोहल्ले, की यादें,
मेरी, साँसों में, बसती है,

मेरे, अपनों की, सारी यादें,
हर पल, दिल में रहती हैं,
लौट चलें, अब अपने घर,
रह रह कर, मुझसे कहती हैं,

-सुधीर कुमार शुक्ल " तेजस्वी"

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