आज की परिस्थिति के परिप्रेक्ष्य में गणतंत्र की प्रासंगिकता पर एक मार्मिक व्यंग.....
आज हमारा, गणतंत्र दिवस है,
खुश हैं सब, पुलकित मन है,
सबके मन में, प्रश्न चिन्ह है,
कैसा है गणतंत्र, हमारा,
बीत गए हैं, बासठ साल,
बदला है, सारा संसार,
कही तरक्की दिखती है,
कही बह रही आंसूं धार,
सूचना क्रांति, कुलांचे भारती,
ए.राजा की जेबें भरती,
सड़क बनी तो, हुआ घोटाला,
अन्न बटा तो, हुआ घोटाला,
हर परियोजना की, ये नाड़ी,
बिना घोटाले, चले न गाड़ी,
कोई कही पे, नोट खा गया,
कोई किसी का, वोट खा गया,
रहे डकार, सभी नेता जन,
मन बिस्मित है, शोषित है जन,
अपना भारत, जग में न्यारा,
ऐसा है, गणतंत्र हमारा,
कभी किसी ने, की गुस्ताखी,
थोड़ी सी आवाज उठादी,
रुको न खाओ, देश बचाओ,
जनता का हक, तुम न खाओ,
पुलिस से डंडा, ये बजवाते,
फर्जी का, आरोप बनाते,
भरी सड़क में, नंगा करके,
कालिख मलते, जेल भिजाते,
कलमाड़ी, और राजा जैसे,
देश के प्रहरी, बन कर बैठे,
लालू, शिबू से, पुत्र भरे हैं,
सुखराम है, सबके दादा,
घास हैं खाते, डीजल पीते,
नोटों से, ये, बिस्तर सीते,
फूट करो और शासन पाओ,
नहीं बने तो, इन्हें लड़ाओ,
गौतम बुद्ध, राम की धरती,
देखो कैसे, आंहें भारती,
स्वतंत्र राष्ट्र, की है ये कहानी,
है, गणतंत्र की, नयी कहानी,
बने चोर जो, वही है राजा,
सच्चा है जो, धक्के खाता,
नेता बन बैठा है, कसाई,
गणतंत्र की, यह प्रभुताई,
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सुधीर कुमार शुक्ल तेजस्वी
good......keep it up........achhi likhi hai....
जवाब देंहटाएंThanks Ajay....
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