गुरुवार, 30 अप्रैल 2015

दुःशासन की सभा का एक दृश्य !




दुःशासन अपनी टोपी सँभालते हुए कुर्सी में बैठा था।  उसके भक्त सोशल मीडिया में पांडवो को गाली देने में व्यस्त हैं।  

अभी ज्यादा तेज हवा भी नहीं चली थी कि जयद्रथ का कुर्ता उड़ने लगा। फटी पतलून और उससे जांघिये का सुराख भी दिखने लगा।  वह क्या ? यहाँ तो एल. एल. बी. की डिग्री दिख रही है, जो जांघिये के भीतर छुपी हुई थी ।  कही स्कोर्पियो, तो कही लालबत्ती की गाडी छुपी हुई है। संजय (मीडिया)  उन सुराखों की माइक्रोस्कोपिक स्टडी में लगा हुआ है।   पाण्डवों  के शोर करने पर भागता, घबराता जयद्रथ, दुःशासन के पास गया।  भैया ! भैया !  मेरी डिग्री असली है। ये संजय कैमरा लेके पीछे पड़ा हुआ है। दुःशासन बड़े कड़े शब्दों में संजय को फटकार लगता है: मीडिया को अपनी टीआरपी के लिए खबरों की चीयर फाड़ नहीं करनी चाहिए।  वरना उन्हें पता है मैंने द्रोपदी के साथ क्या किया था !  और मैं स्वयंभू न्यायाधीश जयद्रथ को सफाई के लिए ३ महीनो का समय देता हूँ।  अजी बात ये है की ये अपना पिल्ला है, दूसरों में और अपनों में कुछ तो फर्क बनता है न जी।  गलत तो नहीं कह रहा ही।  

पीछे दुःशासन की सेना जो नशे  में धुत्त है चिल्लाती है!  पांच साल !… दुःशासन राज ! … पांच साल !… दुःशासन राज ! … 

दुःशासन - जिन्होंने अभी जयकार नहीं बोला उन्हें सबको  पिछवाड़े में लात मार कर पार्टी से बहार निकालो।  

अरे दुःशासन जी आप ये क्या बोल गए आप तो दूसरों के कपडे उतारते टाइम जरा भी संकोच नहीं करते थे, बाकायदा वीडियो फुटेज भी बनवाते थे।  अब अपने कच्छे का एक सुराख़ तक नहीं झेल पा  रहे।  पांडवों को तो २४ घंटे के अंदर घर से बाहर का रास्ता दिखा  दिया, और इस जयद्रथ को बचा रहे हो। पर क्यों न बचाओ, कुनीति से ही सही अभिमन्यु वध में इसने साथ तो बहुत दिया था।  

उधर सुपर्णखा, अंचल में स्कार्पियो छुपाये सहमी हुई कड़ी है।  

दुःशासन- अब इसे क्या हुआ ? ये क्यों दुबकी खड़ी  है।  

सुपर्णखा - भाई मैं … मैं … मैं …  गलती से स्कोर्पियो !!! पता नहीं था संजय वहां  भी पहुँच जायेगा। मैं तो दुर्मुख के साथ डांस में व्यस्त थी।  तभी मीडिया ……    आपसे नहीं बताया, क्योंकि आप तो जल्दी ही चीर  हरण करने लगते हैं।  

दुःशासन-  अरे पगली तू तो अपने गुट  की है, कहे तो अपनी चमची है, मैं चीर  हरण तो दूसरे गुटवालों का करता हूँ। मैं अपने चमचों का बाल तक बंका नहीं होने देता।  इतना तो मैंने राजनीति में सीख ही लिया है।    गलत तो नहीं कह रहा हूँ जी ? 

पीछे दुःशासन की सेना  चिल्लाती है!  पांच साल !… दुःशासन राज ! … पांच साल !… दुःशासन राज ! … 

दुःशासन-  हाँ, पिल्लो ! एक बात ध्यान रखना कोई भी अपने ऊपर ऊँगली उठाये, सवाल करे, उसे खदेड़ - खदेड़ कर मारना।  इतना गाली देना की सपने में भी अपनी माँ-बहन की चिंता हो।  समझे !  बाकी मैं, तुम्हारा बाप, बैठा हूँ इधर पांच साल कुछ नहीं होने दूंगा।  उसके बाद का पता नहीं।  गलत तो नही कह रहा हूँ जी ? 

तभी अचानक धरती हिलने लगती है, और प्राइम टाइम में नेपाल भूकम्प की खबरें चलने लगती हैं।  

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015

दि ग्रेट इंडियन पोलिटिकल ड्रामा !




कुरुक्षेत्र धर्मक्षेत्र  जंतरमंतर में पांडवों और कौरवों की सेनाये तैय्यार खड़ी थी।  अर्जुन केजरीवाल मंच पर चढ़ा अपनी सेना को सम्बोधित (लफबाजी) कर रहा था।  तभी सेनापति सिसौदिया का फ़ोन आया, भाई "बर्बरीक"  को बुलाया है, शंखनाद से पहले वीर की बलि देने का नाटक करना है। किसानो पर अपनी फसल जो काटनी है।   अर्जुन केजरीवाल,  कृष्ण आशुतोेष और भीनसेन खेतान से सलाह कर ग्रीन सिग्नल दे देता है।  उधर टेलीफ़ोन लाइन का क्रॉस कनेक्शन होने से कौरवों की सेना को भी ये बात पता चलती है, दुर्योधन उपाध्याय को भी अपनी राजनीति  सेकने का अच्छा मौका नजर आता है।  शकुनि गांधी को तो पुराना  बैर चुकाना था वो भी कौरवों और पांडवों दोनों को ख़त्म करदेना चाहता था।  उसकी दिल्ली जो छिन  गई थी।  

बर्बरीक जोकि कौरवों के शासन से बहुत परेशान है और उसकी खेती भी राजा इन्द्र और पवन देव ने मिलकर चौपट कर दी है।   हाथ में झाड़ू (कवच) लिए, सर में साफा (कुण्डल) बाधे प्रवेश करता है।  और पास के पेड़ में चढ़ जाता  है, सेनापति सिसोदिया की स्क्रिप्ट के मुताबिक़ वह फ़ासी लगाने का दिखावा करता है, एक हाथ में झाड़ू लिए कौरवों  को ललकारता है।  पांडव सेना में जोश भर जाता है, इस दृश्य को देख कर सभी उत्त्साहित है।  तभी कृष्ण के इशारे पर बर्बरीक को एक धक्का दिया जाता  है।  वो पेड़ से लटक जाता है, उसकी क़तर आँखे मदद के लिए चारो और देखती है।  पर हो हल्ले और जश्न में सब खो जाता है।   संजय भी आँखों देखा हाल सुनाने में मशगूल है अपनी टीआरपी क्यों कम करे।  कौरव के साथ मिलकर शकुनि की सेना पांडवों पर हमला बोल देती है।  बर्बरीक की आँखें निकल आती है। और जनता की आँखे अभी भी नहीं खुलती।  बर्बरीक के जेब से एक पत्र गिरता है जिसमे रैली में दिया जाने वाला भाषण लिखा है जिसे वो अपने घर वालो को टीवी पर देखने के लिए बोल आया था।  बर्बरीक के घरवालों को उसकी पेड़ पर लटकी हुई लाश दिखती है।  पोलिस जांच से ये नहीं पता चल पा रहा की वो बर्बरीक था या कर्ण।  

सभी महारथी मनोरंजन शाला के लिए प्रस्थान करते हैं।   

अर्जुन घटना के दो दिन बाद माफ़ी माग लेता है। 

कौरव और शकुनि ब्रदर्स खिचड़ी पकाने में व्यस्त !

इंटरवल के  बाद फिर से द्यूत क्रीड़ा आरम्भ होती है !