जब बेरंग चेहरों को देखता हूँ,
तो बरबस ही जिंदगी को कोसता हूँ,
हर सांस में जिंदगी को मरते देखता हूँ,
तो बरबस ही जिंदगी को कोसता हूँ,
निश्तेज आँखों में, कटीली राहों में,
सपनो को झुलसते देखता हूँ,
भूखों को तड़पते देखता हूँ,
तो बरबस ही जिन्दगी को कोसता हूँ,
नदी को पानी के लिए तड़पते देखता हूँ,
बादल से अंगारे बरसते देखता हूँ,
समीर को निरीह जब देखता हूँ,
तो बरबस ही जिन्दगी को कोसता हूँ,
ऐसा नहीं है की रोटी या फिर धोती नहीं है,
जब किसी की रोटी, किसी की धोती,
किसी और के बैंक में सड़ते देखता हूँ,
तो बरबस ही जिन्दगी को कोसता हूँ,
प्रकृति और मानव को बदलते देखता हूँ,
किसी की ख़ुशी बेचते देखता हूँ,
किसी के आंसुओं में जलक्रीडा करते देखता हूँ,
तो बरबस ही जिन्दगी को कोसता हूँ,
मशाल तो जलते हैं जलते रहेंगे,
कही पे उजाले कही अँधेरे रहेंगे,
जब तेल की जगह लहू जलते देखता हूँ,
तो बरबस ही जिन्दगी को कोसता हूँ,