शनिवार, 6 अगस्त 2016

खरखराहट !

आधी रात को, होटल के आलीशान कमरे में,
निरंतर खर्राटों के बीच, 
जब सूखे पत्तों की खरखराहट, 
दिल को बेचैन कर देती हो,

वो पत्ते जिन्हें प्रकृति ने न तोड़े हों,
बल्कि पेड़ ने जबरन खुद से अलग किया हो,
बिलकुल पुराने खतों की तरह, 
जिन्हें लोगों से छुपाया और दिल में दफनाया हो,

मीठी से, सोंधी सी, टीस दे जाती है, वो खरखराहट, 
और समय का पहिया जबरन उल्टा घूमने लगता है,
यादों पर छाई धूल, छटने लगती है,
मन कटे हुए पंख के पंछी की तरह तड़पने लगता है,