मानवता के, चीर हरण की,
है ये सच्ची, क्रूर कहानी,
ये
वहसी दानव, दैत्यों की,
निर्दयता की, एक कहानी,
पत्थर भी सुन, काँप उठेगा,
ऐसी निर्मम, घ्रणित कहानी,
बीज पड़ा जब, गर्भ में उसका,
लिंग परीक्षण है, करवाते ,
अगर कही है, वो कन्या तो,
मृत्यु भ्रूंड की, ये करवाते,
कही अगर जो, बच कर आती,
जीवित ही, उसको दफनाते,
कभी कहीं जो, बची बिचारी,
गला घोट कर, उसे मारते,
चाचा हो या, पिता सभी ने,
नन्हे बदन की, बली चढ़ाई,
करे रुदन जो कहीं "फलक" तो,
डसते सर्प सरीखे भाई,
एक नन्ही सी, जान के पीछे,
पड़े हैं कितने,
आताताई,
बड़ी हुई जो, अगर परी तो,
"आयुषी", "सहर गुल" उसे बनाई,
माँ और पिता, सभी ने मिलकर,
खून पिया, और बलि चढ़ाई,
एक कन्या के, पड़े हैं पीछे,
ऐसे नर पिशाच, हैं भाई,
अपनी, अपनी हवास के खातिर,
कन्या का तन, सबने खाया,
नहीं भरा जब पेट, असुर का,
डाल तेजाब है, उसे जलाया,
गई अगर जो, कही पुलिस पे,
उनने मिलकर, फिरसे लूटा,
सब संरक्षक, बने हैं भक्षक,
बिटिया बनी, वस्तु है भाई,
शिक्षक हों या, हों सहकर्मी,
बने सभी हैं, हवस के धर्मी,
मंदिर हो या, हो मधुशाला,
नहीं सुरक्षित है, अब बाला,
गई चिकित्सा के, खातिर तो,
डॉक्टर ने भी, हवस उतारी,
हुई मौत जो, अगर दर्द से,
नहीं लाश को, उसने छोड़ा,
मृत शरीर पर, हवस बुझाकर,
बना, दैत्य से बदतर, अब नर,
इस विकसित, समाज
में देखो,
कैसी है, बर्बरता आई,
बना पिशाच, आज है पालक,
जननी बनी, भक्षिका भाई,
बदनसीब इस कन्या की,
औ निर्ममता की, है ये कहानी,
जहाँ पूजते थे, कन्या को,
देवी प्रतिमा सम,
हम भाई,
प्रथम ग्रास है, अब वो दुहिता,
है सच्ची, पर घ्रणित कहानी,
- सुधीर कुमार शुक्ल
" तेजस्वी"