शनिवार, 3 जून 2017

क्या गौ-रक्षा भावनात्मक मुद्दा है ?

(कृपया अंततक पढ़े और अगर सहमत हों तो शेयर भी करें)


आज कल गौ-हत्या और गौ-रक्षा की बहस फिर तेज हो गई है। केरल में हुई सरेआम गाय के बछड़े की हत्या की घटना से बहुत सारे लोग आंदोलित हो रहे हैं। कुछलोग गाय को भारतीय संस्कृति से जोड़ कर उसके संरक्षण की बात करते हैं तो अन्य भोजन के अधिकार की बात कर गौ हत्या का समर्थन करते हैं। इन दोनों के बीच में एक आधुनिक पढ़ा-लिखा तपका है, जो गौ हत्या का समर्थन तो नहीं करता परन्तु इसे धार्मिक भावनाओ से जोड़ने का विरोध करता है। उसका तर्क है कि, इससे धार्मिक भावनाये भड़केंगी और अशांति फैलेगी।
इससे पहले कि हम इस बहस में पड़ें हमे ईमानदारी से देखना होगा कि क्या गाय अधिकतर भारतीयों की भावनाओ से जुडी हुई है या नहीं। मेरे अनुसार गौ - संरक्षण एक भावनात्मक मुद्दा है, जिसकी जड़ें पूरी तरह से बहुतायत भारतीय समाज में पैठी हुई हैं। इसको नकारना शुतुरमुर्ग की तरह आँखें बंद करने जैसी मूर्खता होगी। अब हम देखते हैं कैसे गाय भारतीय समाज के बड़े वर्ग की भावनाओ का प्रतिनिधित्व करती है। सनातन धर्म, जिसे आजकल हिन्दू धर्म भी बोलते हैं, में गाय को हजारों साल से सर्वश्रेठ, पूजनीय, उच्तम स्थान प्राप्त है। बच्चे के जन्म से लेकर मृत्यु तक हर एक पुनीत कार्य में गाय सम्मान पूर्वक सम्मलित है, चाहे वो गौ- दुग्ध हो, दही हो, मूत्र या फिर गोबर हो, इन सभी पदार्थों का उपयोग हर-एक धार्मिक अनुष्ठान में होता है। सनातन धर्म में गाय की श्रेष्ठता इस बात से साबित होती है कि, किसी भी अनुष्ठान के पूर्व यजमान को "पञ्च गव्य" पिला कर पवित्र किया जाता है, जिसके मुख्य घटक गौ मूत्र, गोबर, दुग्ध, दही, और घी होते हैं। सनातन धर्म में गौ-दान श्रेष्ठतम दान माना गया है। यह भी मान्यता है कि मृत्यु के समय गाय की-पूछ पकड़ने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। कई लोग सबेरे उठ कर गाय का चरण स्पर्श करते है। मैं इन सभी बातों के वैज्ञानिक तर्क पर बहस को नहीं लेजाना चाहता, वह एक अलग विषय है। परन्तु एक बात तो निश्चित है की जिस समाज में गाय को इतना सम्मान प्राप्त है वो भी हज़ारों वर्षों से, वहां ये बोलना कि गाय भावनात्मक मुद्दा नहीं है, मूर्खता होगी। जरा सोचिये ! आप जिसे इतना सम्मान करते हो, पूजते हो, अचानक उसकी बर्बरता पूर्ण हत्या की खबर मिले तो इंसान तो आंदोलित होगा ही। अतः हमे इस बात को स्वीकार करना होगा की गाय बहुतायत भारतीय के लिए भावनात्मक मुद्दा है, और फिर हमें इसका समाधान निकलना होगा।
अब रही भोजन के अधिकार वाली बात। भोजन का नैसर्गिक सिद्धांत ये कहता है, कि आप किसी से उसका भोजन नहीं छीन सकते। यहाँ हमे यह देखना होगा कि यह सिद्धांत यहाँ लागू होता है कि नहीं। क्या उनलोगों का गाय ही एक मात्र भोजन है या फिर और विकल्प उपलब्ध हैं। इसका उत्तर बहुत सरल है, ऐसे बहुत सारे विकल्प उपलब्ध हैं, जिससे उन लोगों को भोजन मिल सकता है। गाय का मांस भूख का मुद्दा नहीं है बल्कि शौक का मुद्दा है। या उससे बढाकर गौ - हत्या जानबूझकर बहुसंख्यक समाज को भड़काने की कोशिश है।
गाय जिसे बहुसंखयक भारतीयों के जीवन सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त है, तबतक किसी का भोजन नहीं होसकती जबतक कि धरती पर भोजन का कोई अन्य विकल्प उपलब्ध है। और अगर भोजन के अन्य विकल्प पूरी तरह से समाप्त हो गए तो हमे यह भी नहीं भूलना चाहिए कि हम उस परम्परा का प्रतिनिधितव करते हैं जिसमे एक राजा "शिवि" ने शरणागत कबूतर के प्राणो की रक्षा और बाज के भोजन के अधिकार के बीच न्याय करने के लिए अपने शरीर को भोजन के रूप में अर्पित कर दिया था।
अब हमे यह चुनना है कि क्या हम जानबूझ कर बहुसंख्यक समाज की भावनाओ को आहत कर अपने समाज को अराजकता की ओर ले जायेंगे या फिर खुद आगे आकर धार्मिक सद्भाव का परिचय देकर शांति का मार्ग प्रशस्त करंगे।
नोट - प्रिय मित्रों, कमेंट और शेयर करते समय #dontkillcow जरूर लिखें। इससे मुहीम को ज्यादा लोगों तक पहुँचाने में मदद मिलेगी।
आभार

डॉ. सुधीर कुमार शुक्ल " तेजस्वी"

शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2016

एक आंसू उस दिए के नाम जो बुझ गया !


इस दिवाली हम दिए जलाएं, जरूर जलाएं 
और ज्यादा दिए जलाएं,

पर आंसू के साथ, उस दिए के नाम,
जो आहुति बनगया, हमारे दिए के लिए,

एक आंसू उस दिए के नाम, जो बुझ गया,
सरहदों पर जलगाया, मशाल बनकर,

एक आंसू  उस घर के नाम, 
जिसका दिया बुझ गया, हमेशा के लिए,

जिसका दिया बुझगया कि, करोड़ों दिए जलते रहे,
एक आंसू उस दिए के नाम भी,

एक आंसू उस वादे के नाम, जो कभी पूरा नहीं होगा,
जो पिता  ने किया था अपनी बेटी से जल्दी घर आने का,

एक बेटे ने किया था माँ  से जो वादा,
एक आंसू उस वादे के नाम, उस माँ के नाम,

एक आंसू उस पत्नी के नाम,
जिसकी हर दिवाली काली होगी, ताकि हमारी रोशन रहे,

एक आंसू उस पिता के नाम,
जिसके बुढ़ापे की लाठी टूट गयी,

एक आंसू उस घर के नाम,
जिसके आँगन का  दिया औरो के दिए पर क़ुर्बान होगया,

एक आंसू उस अधूरे मिलन के नाम,
एक आंसू  राह जोहती सूने आँखों के नाम,

एक आंसू सरहद पर शोले खाने वाले,
हर एक दिए के नाम,

एक आंसू सियाचिन पर गलकर,
न बुझने वाले, न झुकने वाले दिए के नाम, 

आंसू  उस सपूत के नाम, उस वीर के नाम 
जिसने अपनी लहू से दिए जलाये,

एक आंसू भारत माँ की अंचल में,
सर्वस्व न्यवछावर करने वाले उस लाल के नाम,



जय हिन्द !  

शनिवार, 6 अगस्त 2016

खरखराहट !

आधी रात को, होटल के आलीशान कमरे में,
निरंतर खर्राटों के बीच, 
जब सूखे पत्तों की खरखराहट, 
दिल को बेचैन कर देती हो,

वो पत्ते जिन्हें प्रकृति ने न तोड़े हों,
बल्कि पेड़ ने जबरन खुद से अलग किया हो,
बिलकुल पुराने खतों की तरह, 
जिन्हें लोगों से छुपाया और दिल में दफनाया हो,

मीठी से, सोंधी सी, टीस दे जाती है, वो खरखराहट, 
और समय का पहिया जबरन उल्टा घूमने लगता है,
यादों पर छाई धूल, छटने लगती है,
मन कटे हुए पंख के पंछी की तरह तड़पने लगता है,

रविवार, 8 मई 2016

पानी !

कौन कहता है पानी नहीं है,
ज़रा आँखें तो खोलो मेरे यार,
हर तरफ पानी ही पानी है,                      
                   


सागर के नाम में पानी है,
बादल के राग में पानी है,
दूध के साथ में पानी है,
धधकती आग में पानी है,
            फिर तुम क्यों कहते हो पानी नहीं है....

रिश्तों के मान में पानी है,
बेटी की आँख में पानी है,
माँ के अंचल में पानी है,
बच्चे के भाग्य में पानी है,
           फिर तुम क्यों कहते हो पानी नहीं है....

प्यार और विश्वास में पानी है,
दुल्हन के अरमान में पानी है,
बंद घर की चौखट में पानी है,
खपरैल की छत में पानी है,
          फिर तुम क्यों कहते हो पानी नहीं है ....

राम और रहीम में पानी है,
गीता और कुरान में पानी है,
कोयल की कूक में पानी है,
गरीब की चींख में पानी है,
        फिर तुम क्यों कहते हो पानी नहीं है ....

जवान के होश में पानी है,
यौवन के जोश में पानी है,
नशों का खून भी पानी है,
नेताओं के होंठ में पानी है,

ऐ दोस्त देखो ज़रा हर तरफ पानी - ही - पानी है,

सिर्फ एक गिलास ही खाली है.......

यह कविता मूल रूप से "कविता अनवरत"  अयन प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हो चुकी है !


बुधवार, 27 जनवरी 2016

तू चले चल, बस बढे चल !



तू चले चल, बस बढे चल, लौ को कर तीक्ष्ण, 
एक दिए की तरहा, तू जले चल, बस बढ़े चल,

अब हौंसला न टूटे, चाहे कोई भी अब रूठे,
आग को दिल में जला, तू चले चल, बस बढ़े चल,

राह कठिन, है कंटीली, दुर्गम है, पथरीली, 
समय को कर परास्त, तू लड़े चल, बस बढ़े चल,

दिए को बना मशाल, स्वराज को लक्ष्य बना, 
शिखर हो या समंदर, तू चढ़े चल, बस बढ़े चल,

ये आंधी जरा थमी है, अपनों ने जो छली है,
बन कर बबंडर, तू उड़े चल, बस बढ़े चल, 

ये कारवां न रुके, न भटके, सजग हो, सबल हो,
एक नदी की तरहा, तू बहे चल, बस बढे चल, 

                                             -डॉ. सुधीर कुमार शुक्ल "तेजस्वी" 

एक लड़का था दीवाना सा !



एक लड़का था दीवाना सा, एक लड़की पे वो मरता था,
सबसे छुपाके, ग़मखाके, तिल- तिल कर वो घुटता था,

घुट- घुट के, मर- मर के उसकी यादों को वो बुनता था, 
खून से स्याही चुराकर, सपनो में रंग भरता था, 


सुन ना ले आहट कोई, न जाने क्यों वो डरता था,
अपनी धड़कन को भी वो, चोरी- चोरी सुनता था,

रोता था अंदर से, पर, बहार से वो हँसता था,
अपने प्यार को खोकर वो, घुट-घुट कर वो जीता था, 

जब भी मिलता था मुझसे, हंसके पुछा करता था, 
ये प्यार क्यों होता है, आखिर ये होता क्यों है, 

                                         -डॉ. सुधीर कुमार शुक्ल " तेजस्वी" 

शुक्रवार, 27 नवंबर 2015

एक स्नेह पत्र आमिर भाई के नाम !




आमिर भाई सलाम, कई दिनों से टीवी पर खेल देख रहा हूँ असहिष्णुता बनाम सहिष्णुता, लिखना तो नहीं चाहता था पर क्या करूँ एक भारतीय हूँ, अदना ही सही,  खुद को रोक नहीं सका।  अतः आपको स्नेह पात्र लिख रहा हूँ।  आशा हैं किसी के भक्त मुझे किसी और के भक्त का तमगा नहीं चिपकायेंगे। (आजकल भक्ति और भक्तो का मौसम है  हर तरफ इसलिए ऐसा लिखना पड़ा) । 

आमिर भाई ! आप तो प्रवीण तोगड़िया, ओवैसी, साक्षी महाराज, आज़म खान, राज ठाकरे  के  मददगार निकले। भाई आप अच्छे एक्टर हो आपको भारत ने नहीं बनाया, आपने इसे बनाया है, मैं सहमत हूँ।  लोग आपको फॉलो करते हैं, आपकी बात सुनते हैं, इसलिए आपकी कुछ जवाबदारी भी है उसी देश के प्रति जिसे आपने बनाया है।  
पर आपतो बुध्धू निकले।  आशा है आपकी वीआईपी सुरक्षा में कोई कमी नहीं हुई होगी इन कुछ महीनो में, और आप सुरक्षित होंगे। 

मैं अभी ओमान (एक मुस्लिम देश में हूँ ) शिक्षक हूँ, जैसे आप एक अच्छे एक्टर हैं वैसे मैं भी एक अच्छा टीचर हूँ, ऐसा मेरे स्टूडेंट्स मानते हैं, सहकर्मी भी मानते हैं, ये बात अलग है की मैं पॉपुलर नहीं हूँ, मेरी फ्रेंड फॉलोइंग नहीं है, शायद टीवी स्क्रीन में नहीं आता इसलिए। 

दो दिन पहले मेरे कॉलेज के बड़े अधिकारी  ने मुझसे एक विनम्र रिक्वेस्ट की " डॉ शुक्ला ! मैं भी हिन्दू हूँ, रोज पूजा करता हूँ, पर आप अपने माथे पर चन्दन लगते हैं, उचित होगा इसे न लगाएं, होसकता है यहाँ के लोगों की भावनाए आहत हों, और  किसी ने आपको टोक दिया तो आपको बुरा लगेगा " मैंने उनका सुझाव  मान लिया, और उनसे वादा  किया की मेरा चन्दन किसी को नहीं दिखेगा। 

अभी तक मैंने कोई स्टेटमेंट नहीं दिया की ओमान असहिष्णु है, और देता भी तो कोई सुनता नहीं, क्योंकि लाइट, कैमरा एक्शन नहीं है। 

क्या करें यहाँ से छोड़ कर वापस भी नहीं आसकते, रोजी रोटी  का सवाल है, ३ साल पहले एक सरकारी कॉलेज से कॉन्ट्रैक्ट में पढने के लिए ८००० रुपये का ऑफर मिला था।   हाँ , कुछ महीनो पहले तक मैं कोरिया में रिसर्च कर रहा था, देश में रहने की बड़ी लालसा थी, अभी भी है , सो कोरिया की नौकरी छोड़ कर ३ महीना इंडिया में धक्के खाता रहा, कोई नौकरी नहीं मिली।  फिर विदेश आना पड़ा।   अब इतना पढ़ लिखकर अगर मैं अपना परिवार भी न पाल सकूँ तो क्या हो।   मेरे बाप -दादा न तो एक्टर थे, न नेता की अपनी रोजी फिक्स रहती।  सबकुछ खुद ही करना पड़ता है हम जैसे लोअर- मिडिल क्लास के लोगों को। 

आशा है आपकी आने वाली फिल्म अच्छी चलेगी। 

अब ज्यादा क्या लिखूं आपतो खुद समझदार हैं।  

आपका

पढ़ालिखा पर लोअर मिडिल क्लास एनआरआई  दोस्त।  

डॉ. सुधीर कुमार शुक्ल 

शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2015

हैप्पी बर्थडे बुड्ढे ! … सॉरी। …… बापू !



चलो आज फिर गांधी को याद करते हैं,
एक दिन का ड्राई डे रखते हैं,

सालभरकी हिंसा, चोरी-चकारी, झूंठ - फरेबा,
सब एक दिन के लिए बंद करते हैं, 
एक दिन का ड्राई डे रखते हैं,

किसानो के खेत कई  सालों से ड्राई हैं,
एकदिन  उनके बारे में सोचते हैं,
चलो एक दिन का ड्राई डे रखते हैं,

जिसकी आँखे, रो- रो कर ड्राई हो गई है,
उन गरीब, लाचार के बारे में सोचते हैं,
चलो एक दिन का ड्राई डे रखते हैं,

वो महिला, वो बच्चा, जो आज भी पीड़ित है,
उसके सपने के बारे में सोचते हैं,
चलो एक दिन का ड्राई डे रखते हैं, 

उनको जिन्हे हमने हिंसा की आग में जला दिया,
हर उस घर के बारे में सोचते हैं, 
चलो एक दिन का ड्राई डे रखते हैं,

गांधी के हम पर किये एहसानो को सोचते हैं,
जिसे हम रोज मारते हैं,  
चलो उसके जन्म दिन को ड्राई क्लीन करते हैं, 
ऐ बुड्ढे ( गांधी) कहीं तू  ये तो नहीं सोच रहा कि,
हम रोज तो तेरा क़त्ल करते हैं, रोज तेरा ही खून पीते  हैं,
फिर ये ड्राई डे क्यों। 

मामू ! … सॉरी।  …… बापू !  वो तो अपना धंधा है, यानि बिज़नेस हैं,
और धंधे के लिए तो हम अपने बाप को भी बेंच दें,
तू तो सिर्फ इस देश का बाप है,  


तुझे नहीं पता कि देश के हर चौराहे पर तेरा स्टेचू क्यों बनवाया है,  
ताकि उस पर माला टांग सकें,
और रोज तुझे तिलांजलि  …… सॉरी ! श्रद्धांजलि दे सकें,  

तेरी आस्तीन में घुसकर, अपनी रोटी सेंक सकें,
तू इतने काम का है,  इसलिए अभी तक चौराहे पर खड़ा है,
नहीं तो तेरे स्टेचू से मैं अपना लॉन पटवा चुका  होता, 

तेरी बाते कर- कर  के, , झूठी ही सही 
हमने नजाने कितने इलेक्शन जीते होंगे,
और कितने जीतें गे, 

देख तू मरने के बाद भी कितने काम का है 
तो इतना तो बनता है  न मामू !!   सॉरी। …  बापू  !!  एक दिन का ड्राई डे  तो बनता है।  

चल अपना हैप्पी बर्थडे पकड़ और जाने दे,
कल के धंधे का होमवर्क करना है।  


Copyrights of the picture: original photographer 

शुक्रवार, 11 सितंबर 2015

दास प्रथा की एक झलक - बीजेपी द्वारा आयोजित मुंबई दर्शन खासकर बिहारियों लिए।



आज समाचार देखा तो पताचला बिहार चुनाओ  में बीजेपी एक नया  प्रयोग कर रही है।   बिहारियों  को बीजेपी शासित  राज्यों में  ले जाया जाएगा और  वहां  विकास दिखाया जाएगा।  ताकि वापस  बिहार लौट कर लोगों को बीजेपी शासित राज्यों के विकास   के बारे में बता सकें।  और विकास की लालसा में  बीजेपी को वोट करें।  होसकता है एक तरह  जुमला हो पर  है रोचक।  यात्रियों को जिसतरह कतार में लगाकर,  परिचयपत्र छुपाकर ले जाया गया, उन्हें किसी से बात  करने तक  आजादी नहीं थी।  उन्हें  ठीक  नहीं पता की क्यों जा रहे हैं।    ऐसा लगा जैसे दास प्रथा वाले युग में  चल रहे हैं या ग्लैडिएटर फिल्म चल रही है।  जिसमे दासों  भरकर  लेजाया  जारहा है।  उनकी स्वतंत्रता छीन कर ताकि वो राजा (बीजेपी)  की  सेवा कर सकें, उसे  सत्ता ला सकें, उसकी ग़ुलामी करें। अगर आप ये न्यूज़ देखोगे तो आपको भी ऐसा ही लगेगा। इस दास यात्रा से दासों को कुछ मिले या न मिले, मुझे  और कुछ नहीं तो इतिहास से साक्षात्कार तो हो ही गया।  

थैंक यू ! बीजेपी इतिहास सैर कराने  के लिए।  

शुक्रवार, 8 मई 2015

स्वराज गीत !



हो स्वराज,और हो खुशहाली,
जीवन सबका, सफल बने,

बिना द्वेष और भेद भाव के,
सबको- सबका भाग मिले,

हो सुभाष, या भगत -राजगुरु,
सब ने ही ये ठानी  थी, 

हो स्वराज हर-एक जन का,
बापू की ये वाणी थी,

नहीं है उपक्रम, नहीं पराक्रम,
फिर भी मन में ज्योति जगी,

है स्वराज का स्वप्न अधूरा,
बापू की है आन खड़ी,

मन से मन को जोड़ -जोड़ कर,
नयी श्रंखला है गढ़नी,

कण-कण, त्रण -त्रण जोड़-जोड़ कर,
नई ईमारत है गढ़नी,

यह स्वराज अभियान बनेगा,
भारत भाग्य विधाता,

जन- जन को अधिकार मिले,
है,  संकल्प हमारा,

जय हिन्द ! वन्देमातरम !

गुरुवार, 7 मई 2015

जिंदगी यूँ ही खर्च दी !


कुछ तुमने बेंचा, कुछ हमने ।  
ये जिंदगी, कुछ यूँ ही खर्च दी।।    

बड़ा गुमान था, खुद पर हमे।  
नीलामी में कौड़ी, भी न मिल सकी ।। 

ठोकरों से दिया था, जवाब मैंने।  
चाहने वालों ने जब भी, मेरी इल्तज़ा की ।। 

नसीब में बेकदरी थी, मेरे मौला।  
खरीदार को, कद्रदान समझने की, भूल करदी।। 

कितने जतन से सींचा था, बागवान ने। 
राहगीरों ने आके, पूरी बगिया उजाड़ दी ।। 

शुक्रवार, 1 मई 2015

सुगबुगाहट !


पता नहीं कब उनकी सुगबुगाहट,
खर्राटे में बदल गई,
मेरी सिसकियाँ,
नींद पर भारी पड़ गई,

अब तो आँखे भी पथरा गई हैं, 
जागने का इंतज़ार करके,
नेताओं को कुम्भकर्ण क्यों  कहते हैं, 
प्रमेय फिर से सिद्ध हो गई,

गुरुवार, 30 अप्रैल 2015

दुःशासन की सभा का एक दृश्य !




दुःशासन अपनी टोपी सँभालते हुए कुर्सी में बैठा था।  उसके भक्त सोशल मीडिया में पांडवो को गाली देने में व्यस्त हैं।  

अभी ज्यादा तेज हवा भी नहीं चली थी कि जयद्रथ का कुर्ता उड़ने लगा। फटी पतलून और उससे जांघिये का सुराख भी दिखने लगा।  वह क्या ? यहाँ तो एल. एल. बी. की डिग्री दिख रही है, जो जांघिये के भीतर छुपी हुई थी ।  कही स्कोर्पियो, तो कही लालबत्ती की गाडी छुपी हुई है। संजय (मीडिया)  उन सुराखों की माइक्रोस्कोपिक स्टडी में लगा हुआ है।   पाण्डवों  के शोर करने पर भागता, घबराता जयद्रथ, दुःशासन के पास गया।  भैया ! भैया !  मेरी डिग्री असली है। ये संजय कैमरा लेके पीछे पड़ा हुआ है। दुःशासन बड़े कड़े शब्दों में संजय को फटकार लगता है: मीडिया को अपनी टीआरपी के लिए खबरों की चीयर फाड़ नहीं करनी चाहिए।  वरना उन्हें पता है मैंने द्रोपदी के साथ क्या किया था !  और मैं स्वयंभू न्यायाधीश जयद्रथ को सफाई के लिए ३ महीनो का समय देता हूँ।  अजी बात ये है की ये अपना पिल्ला है, दूसरों में और अपनों में कुछ तो फर्क बनता है न जी।  गलत तो नहीं कह रहा ही।  

पीछे दुःशासन की सेना जो नशे  में धुत्त है चिल्लाती है!  पांच साल !… दुःशासन राज ! … पांच साल !… दुःशासन राज ! … 

दुःशासन - जिन्होंने अभी जयकार नहीं बोला उन्हें सबको  पिछवाड़े में लात मार कर पार्टी से बहार निकालो।  

अरे दुःशासन जी आप ये क्या बोल गए आप तो दूसरों के कपडे उतारते टाइम जरा भी संकोच नहीं करते थे, बाकायदा वीडियो फुटेज भी बनवाते थे।  अब अपने कच्छे का एक सुराख़ तक नहीं झेल पा  रहे।  पांडवों को तो २४ घंटे के अंदर घर से बाहर का रास्ता दिखा  दिया, और इस जयद्रथ को बचा रहे हो। पर क्यों न बचाओ, कुनीति से ही सही अभिमन्यु वध में इसने साथ तो बहुत दिया था।  

उधर सुपर्णखा, अंचल में स्कार्पियो छुपाये सहमी हुई कड़ी है।  

दुःशासन- अब इसे क्या हुआ ? ये क्यों दुबकी खड़ी  है।  

सुपर्णखा - भाई मैं … मैं … मैं …  गलती से स्कोर्पियो !!! पता नहीं था संजय वहां  भी पहुँच जायेगा। मैं तो दुर्मुख के साथ डांस में व्यस्त थी।  तभी मीडिया ……    आपसे नहीं बताया, क्योंकि आप तो जल्दी ही चीर  हरण करने लगते हैं।  

दुःशासन-  अरे पगली तू तो अपने गुट  की है, कहे तो अपनी चमची है, मैं चीर  हरण तो दूसरे गुटवालों का करता हूँ। मैं अपने चमचों का बाल तक बंका नहीं होने देता।  इतना तो मैंने राजनीति में सीख ही लिया है।    गलत तो नहीं कह रहा हूँ जी ? 

पीछे दुःशासन की सेना  चिल्लाती है!  पांच साल !… दुःशासन राज ! … पांच साल !… दुःशासन राज ! … 

दुःशासन-  हाँ, पिल्लो ! एक बात ध्यान रखना कोई भी अपने ऊपर ऊँगली उठाये, सवाल करे, उसे खदेड़ - खदेड़ कर मारना।  इतना गाली देना की सपने में भी अपनी माँ-बहन की चिंता हो।  समझे !  बाकी मैं, तुम्हारा बाप, बैठा हूँ इधर पांच साल कुछ नहीं होने दूंगा।  उसके बाद का पता नहीं।  गलत तो नही कह रहा हूँ जी ? 

तभी अचानक धरती हिलने लगती है, और प्राइम टाइम में नेपाल भूकम्प की खबरें चलने लगती हैं।  

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015

दि ग्रेट इंडियन पोलिटिकल ड्रामा !




कुरुक्षेत्र धर्मक्षेत्र  जंतरमंतर में पांडवों और कौरवों की सेनाये तैय्यार खड़ी थी।  अर्जुन केजरीवाल मंच पर चढ़ा अपनी सेना को सम्बोधित (लफबाजी) कर रहा था।  तभी सेनापति सिसौदिया का फ़ोन आया, भाई "बर्बरीक"  को बुलाया है, शंखनाद से पहले वीर की बलि देने का नाटक करना है। किसानो पर अपनी फसल जो काटनी है।   अर्जुन केजरीवाल,  कृष्ण आशुतोेष और भीनसेन खेतान से सलाह कर ग्रीन सिग्नल दे देता है।  उधर टेलीफ़ोन लाइन का क्रॉस कनेक्शन होने से कौरवों की सेना को भी ये बात पता चलती है, दुर्योधन उपाध्याय को भी अपनी राजनीति  सेकने का अच्छा मौका नजर आता है।  शकुनि गांधी को तो पुराना  बैर चुकाना था वो भी कौरवों और पांडवों दोनों को ख़त्म करदेना चाहता था।  उसकी दिल्ली जो छिन  गई थी।  

बर्बरीक जोकि कौरवों के शासन से बहुत परेशान है और उसकी खेती भी राजा इन्द्र और पवन देव ने मिलकर चौपट कर दी है।   हाथ में झाड़ू (कवच) लिए, सर में साफा (कुण्डल) बाधे प्रवेश करता है।  और पास के पेड़ में चढ़ जाता  है, सेनापति सिसोदिया की स्क्रिप्ट के मुताबिक़ वह फ़ासी लगाने का दिखावा करता है, एक हाथ में झाड़ू लिए कौरवों  को ललकारता है।  पांडव सेना में जोश भर जाता है, इस दृश्य को देख कर सभी उत्त्साहित है।  तभी कृष्ण के इशारे पर बर्बरीक को एक धक्का दिया जाता  है।  वो पेड़ से लटक जाता है, उसकी क़तर आँखे मदद के लिए चारो और देखती है।  पर हो हल्ले और जश्न में सब खो जाता है।   संजय भी आँखों देखा हाल सुनाने में मशगूल है अपनी टीआरपी क्यों कम करे।  कौरव के साथ मिलकर शकुनि की सेना पांडवों पर हमला बोल देती है।  बर्बरीक की आँखें निकल आती है। और जनता की आँखे अभी भी नहीं खुलती।  बर्बरीक के जेब से एक पत्र गिरता है जिसमे रैली में दिया जाने वाला भाषण लिखा है जिसे वो अपने घर वालो को टीवी पर देखने के लिए बोल आया था।  बर्बरीक के घरवालों को उसकी पेड़ पर लटकी हुई लाश दिखती है।  पोलिस जांच से ये नहीं पता चल पा रहा की वो बर्बरीक था या कर्ण।  

सभी महारथी मनोरंजन शाला के लिए प्रस्थान करते हैं।   

अर्जुन घटना के दो दिन बाद माफ़ी माग लेता है। 

कौरव और शकुनि ब्रदर्स खिचड़ी पकाने में व्यस्त !

इंटरवल के  बाद फिर से द्यूत क्रीड़ा आरम्भ होती है !

गुरुवार, 12 फ़रवरी 2015

तब तो मुझे अपने भगवन के अस्तित्व पर भी शंका करनी पड़ेगी !


आज समाचार माध्यमों से पता चला, मोदी जी का मंदिर राजकोट में बनाया गया है, उसमे बाकायदे मोदी जी मूर्ती रूप में विराजमान है।  अगर गौर से देंखे तो मंदिर का दृश्य कुछ हनुमान जी के मंदिर से मिलता जुलता है।  यह तस्वीर देखते ही मेरे मन में पहला जो ख्याल आया वो यह था, " कहीं ऐसा तो नहीं की हमारे सभी भगवन झूंठे हों?" ये राम भगवान, भोलेनाथ, मातारानी, बजरंगबली, कहीं इनके भी मंदिर इसी तरह से तो नहीं बनाये गए जिसतरह मोदी का बनाया गया है।  परन्तु मैं तो एक धार्मिक व्यक्ति हूँ, अपने भगवान पर शंका कैसे कर सकता हूँ।  फिर सोचने लगा पर मैं पढ़ा - लिखा भी तो हूँ, इन बातों को तर्क से भी तो सोचना पड़ेगा। सिर्फ अंध भक्ति से काम थोड़ी चलेगा।  

मेरे धार्मिक देश में ऐसे कई उदहारण आये जब लोगों के मंदिर बनाये गए धोनी से लेकर सोनिया और  मोदी तक।  कई व्यक्तियों ने खुद को भगवान घोषित कर दिया, बाबा राम रहीम आदि।  पर मैं जितना भगवान के बारे में पढता हूँ, और उनकी इन आधुनिक देवों से तुलना करता हूँ तो पता हूँ की, पहले वाले भगवान तो ऐसे नहीं थे। इतने सारे अत्याचार, भष्टाचार, अभिमान, अनीति ये सब तो मुझे उनमे नहीं दीखता।  हो सकता है पुराने वाले भगवान सही हो, और नए देव गलत।  परन्तु ऐसा भी तो हो सकता है, की जो किताबें हमलोग भगवान्  के बारे में पढ़ रहे हैं वो भी गलत बताती हों। क्योंकि अभी कोई आधुनिक भक्त आएगा और इन नव- देवों पर कोई किताब लिख देगा।  फिर क्या !!

तो क्या मेरा यानी हमारा धर्म अँधा है जैसा की आलोचक कहते हैं, हालाँकि अबतक मैं ऐसा नहीं मानता था।  परन्तु, इन नव - देवों  की प्राणप्रतिष्ठा से मेरा आत्म विश्वास भी काम होने लगा है, मेरे मन में शंका का एक बीज अंकुरित होने लगा है, कहीं ऐसा तो नहीं की जो हम अपने पुराणो, धार्मिक ग्रंथों में पढ़ते हैं वो सब झूठ है।  सबको झूठा ही महिमामंडित किया गया है।  
क्योंकि अगर धोनी, मोदी, सचिन, रामरहीम आदि सब भगवान हैं तो, मेरा हुनमान भी असली नहीं होगा।  मेरा वो हनुमान जिसकी मैं रोज दोनों पहर पूजा करता हूँ।  मेरा वो हनुमान जिसपर मुझे सबसे ज्यादा भरोसा है।  मेरा वो हनुमान जो धर्मकी प्रतिमूर्ति है।  मेरा वो हनुमान जिसने हमेशा परमार्थ किया।  मेरा वो हनुमान जो ब्रम्हचारी है।  मेरा वो हुनमान जो हर स्त्री का सम्मान करता है। क्या वो भी झूठा है ?  कही ऐसा तो नहीं की से सब काल्पनिक है ?  कहीं ऐसा नहीं के मेरे हनुमान को किसी सनकी - पागल, अंध भक्त ने बनाया है।  असल में मेरा हुनमान ऐसा था भी की नहीं ?

इन सब सवालों का तो जवाब मेरे पास नहीं है, और आपके भी पास नहीं होगा। 

परन्तु समाधान जरूर है, मोदी के पास और हमारे पास भी।   अगर हमे सचमुच अपने भगवान की परवाह है, अपने धर्म से प्यार है, भारत की संस्कृति का सम्मान है, तो हम सबको ऐसे आडम्बरी अंधभक्तों के कारनामो को रोकना होगा।  ऐसे में मोदी जी जो खुद के हिन्दू होने पे गर्व  करते हैं उन्हें इस मंदिर और इसतरह के सभी "नव - देवों" के मंदिरों, या कोई भी ऐसी इमारत जिसमे इन मानवों को देवत्व देने की कोशिश की गई है, को गिराने का आदेश तुरंत देना चाहिए।  और ऐसा क़ानून लाना चाहिए जिससे इन अंधभक्तों के कृत्यों पर रोक लग सके।  और हमारे हिन्दू धर्म की दिव्यता बरक़रार रहे जिसपर हम गर्व करते हैं।  

पर क्या मोदी ऐसा करेंगे ? देखते हैं ! 

और अगर ऐसा नहीं हुआ तो अंदर से ही सही पर मुझे मेरे भगवान पर शंका होती रहेगी।  और पता नहीं वो शक कब सच में रूपांतरित हो जाय।  

मंगलवार, 10 फ़रवरी 2015

मुबारक हो आपको अपनी सरकार !


विजय है ये "आप" की, 
आपके विश्वास की,
हर गरीब- अमीर की, 
निर्भया के आंसू  की,

मौका भी है, ताकत भी,
और दिल्ली का विश्वास भी,
अब दिल्ली को सवारना है,
सबके आंसू पोछना है,

अहंकार को कुचल कर,
अत्याचार का दमन कर,
आम जन की कर सेवा,
महिला का हो सम्मान,

सब हो सुखी, सब हो खुशहाल,
दिल्ली के धन पर , 
गरीब का हो पहला अधिकार,
मुबारक हो आपको अपनी सरकार, 

रविवार, 1 फ़रवरी 2015

सोच कर वोट दो !



आज जो जगे नहीं, आज जो उठे नहीं,
देश की पुकार को, आज जो सुने नहीं,
घडी गुज़र जायेगी, देश रूठ जाएगा, 
लाखों, करोड़ो की आस टूट जायेगी,

लालच मेंआकर, बेंच दिया वोट को जो, 
बच्चों के सपनो पे, ग्रहण लग जाएगा,
भारत का सुनहरा कल, दूर चला जायेगा,
एक "सुनहरा चिराग" असमय बुझ जायेगा, 

बहुत हुआ दंगा, बहुत हुआ जातिवाद, 
बहुत हुई नातेदारी, बहुत हुआ डर का साथ,
करके गुमराह तुम्हे, कुर्सी जकड़ते हैं,
लूटकर तुम्हे ही, तुमसे ही अकड़ते हैं,

तुम नहीं अशक्त, किन्तु तुम तो सशक्त हो, 
अपनी मतदान की, शक्ति को पहचानो,
इसबार बहकावे में आकर,  वोट को फेंक दो,
एक दानदाता की तरह 'पात्र' को ही वोट दो,  


सजग रहो, अडिग रहो, पूर्वाग्रह त्याग दो,
एक बार देश के खातिर, सोच कर वोट दो, 
अपने बच्चों के खातिर, सच्चे को वोट दो.
एक बार तो  "सत्यमेव जयते"  का साथ दो, 

बुधवार, 28 जनवरी 2015

समय का खेल



चाँद की रौशनी में, रात को जलते देखा है, 
सूरज की तपन को भी, शीतल होते देखा है, 

कभी दिये को तूफ़ान से जीतते देखा है,
कश्ती को भॅवर में दम तोड़ते देखा है, 

कभी सिंह तो तिनका चुनते देखा है , 
गधे को सिंघासन में बैठे देखा है, 

बुरे वक्त पे तो  खुदा भी साथ नहीं देता,
कर्मो का बहाना लगा वो भी छोड़ देता है,

ये समय का खेल है, और कुछ नहीं, 
हमने तो, अपनी सांस से घुट के मरते देखा है,

बुधवार, 21 जनवरी 2015

महाबहस- केजरीवाल बनाम किरण !


(पढ़े "केजरीवाल बनाम किरण-महाबहस" का एक दृश्य


रवीश कुमार  (मॉडरेटर) - नमस्कार ! मैं हूँ रवीश कुमार और आप देख रहे हैं स्वतंत्र भारत के इतिहास की सबसे बढ़ी खुली बहस यानी ओपन डिबेट। आज हमारे साथ हैं, आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री श्री अरविन्द केजरीवाल और उनके सामने हैं भारत की प्रथम महिला आईपीएस और बीजेपी की ओर से मुख्यमंत्री पद की उम्मेदवार डॉ किरण बेदी। आप दोनो का और सभी दर्शकों का स्वागत है।   आज का विषय है, "दिल्ली का एजेंडा",   दिल्ली में काफी विकास हुआ भी है और बहुत सारी समस्यांए भी है , हम इन सभी समस्याओ और उनके समाधान के लिए दोनों नेताओं की योजना यानि "ब्लू प्रिंट" समझने का प्रयास करेंगे।  आज के बहस के कुछ नियम हैं जो आप लोगों को बता दूँ। दर्शकों के बीच से कोई शोरशराबा नहीं होगा, सभी, दोनों नेताओ की बात ध्यान से सुनेगे। 

रवीश कुमार - बात करते हैं बिजली की : आपदोनो के पास दिल्ली में बिजली की समस्या से निपटने और उसके दाम को काम करने के लिए क्या योजना है ? पहले अरविन्द। 

अरविन्द - देखिये जी, हम बिजली के दाम ५० % तक काम करदेंगे, जो बिजली कम्पनियों में भ्रष्टाचा व्याप्त है उसकी जांच कराएँगे, और मुझे विश्वास है की, दिल्ली में बिजली के दाम बड़े नहीं है परन्तु बढ़ाये गए है, भ्रष्टाचार और मुनाफाखोरी के लिए।  

रवीश कुमार - किरण जी !

किरण - रवीश मुझे थोड़ा टाइम दो इंट्रोडक्शन के लिए। दोस्तों मैं आपलोगों को अपना ४० साल का अनुभव समर्पित करने आई हूँ।  मेरे पास ४० साल का पुलिस सेवा और २६ साल का सामाजिक सेवा का अनुभव है, पहले  दिल्ली में, चंडीगढ़ में , मिजोरम में, तिहाड़ जेल में …  

रवीश कुमार - (बीच में टोकते हुए) किरण जी ! ये तो ठीक है परन्तु बिजली के बारे में आपका क्या कहना है ?
किरण - बिजली !… बिजली  .... दिल्ली वासियों को बिजली मिलेगी।  हाँ तो दोस्तों मैं कह रही थी की मैं आपको अपना अनुभव समर्पित करने आई हूँ , सिर्फ सेवा के लिए और कुछ नहीं।  सिर्फ सेवा।  

रवीश कुमार - किरण जी आपका टाइम खत्म होता है।  और मुझे कहना पड़ेगा की आपने बिजली के मुद्दे पर कोई सही से  जवाब नहीं दिया।  अब चलते हैं पानी की ओर। पानी अमीर और गरीब दोनों के लिए बहुत जरूरी है।  आपलोगों की दिल्ली में पानी की समस्या को लेकर क्या योजना है ?

अरविन्द - देखिये जी, हम ७०० लीटर तक पानी मुफ्त कर देंगे।  पानी के लिए मीटर लगवाएंगे।  टैंकर माफिया पर लगाम कसेंगे।  सभी टैंकर्स पर जीपीएस लगवाएंगे ताकि उनको ट्रैक किया जा सके।  रेनवाटर हारवेसटिंग को बढ़ावा देने गए।  झुग्गी - झोपड़ियों में पानी का कनेक्शन लगवाएंगे। 

किरण - मेरे पास "३ एम" प्लान है जो पानी की समस्या दूर करदेगा।  

रवीश कुमार - वो ३ एम असल में है क्या ? थोड़ा प्रकाश डालिये।  

किरण - रवीश, देखो मैं अभी "डिलीवरी मोड़" में हूँ, इलेक्शन के बाद "डिबेट मोड" में आउंगी तब सब बता दूँगी।  नाउ यू गो टू the next question

रविश कुमार - स्वस्थ्य ! स्वस्थ्य हर व्यक्ति के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।  आपदोनो की स्वस्थ्य के सम्बन्ध में क्या योजना है?

अरविन्द - देखिये जी , हम बच्चों के लिए १०० % मुफ्त टीका करवाएंगे, ३००००  नए बेड अस्पतालों में लगवाएंगे।  सभी सरकारी अस्पतालों की हालत सुधारेंगे, और उनमे आधुनिक उपकरण की व्यवस्था करेंगे।  अस्पतालों और दवाई कम्पनियों में व्याप्त भ्रस्टाचार कम करेंगे।  जिसका सीधा लाभ जनता को मिलयेगा।  

किरण - हम स्वस्थ्य को लेकर बहुत चिंतित है , हमारे पास "३ एच" प्लान है उससे सब ठीक हो जायेगा।  

रवीश  कुमार - क्या हम जान सकते हैं की वो "३ एच" प्लान आखिर है क्या ?

किरण - मैंने कहा ना की मैं अभी "डिलीवरी ....  "   Now you just shut up !

रवीश कुमार - मुझे फिर बड़े दुःख के साथ कहना पड़ेगा किरण जी, आपने संतोषप्रद उत्तर नहीं दिया।  खैर कोई बात नहीं।  जनता ये भी देख रही है।  अब अगला मुद्दा "शिक्षा "  शिक्षा को लेकर आपलोगों की क्या योजना है।  

अरविन्द - देखिये जी, शिक्षा  और अच्छी शिक्षा तो हमारे लिए बहुत  जरूरी है, ये हमे ऊर्जा देती है , मार्गदर्शन देती है  इससे देश सशक्त होता है।  हम दिल्ली में स्किल डेवलपमेंट पर बढ़ावा देंगे।   हमारा पहले २ साल तक,  १ लाख पर ईयर और उसके बाद ५ लाख  पर ईयर, स्किल्ड बेस्ड ट्रेनिंग का लक्ष्य है।  हम  २० नए कॉलेज खोलेंगे ,  Research को बढवा देने के लिए, universities और colleges में Technological incubators स्थापित करेंगे।  

किरण - रवीश ! ये बहुत महत्वपूर्ण सवाल है, कि हमे ऊर्जा कहाँ से मिलती है, मुझे तो ऊर्जा "एम" सूर्य से मिलती है, वो मेरा सूरज है, और मैं उसका तारा। जिसके प्रकाश से हम सभी ऊर्जावान हो रहे हैं।  एक दिन दिल्ली ही नहीं पूरा भारत, यहाँ तक पूरा संसार उस "एम" नाम के सूरज की ऊर्जा से प्रकाशित हो जायेगा । रवीश ! अब तुम्हे पूछोगे ये "एम" क्या है , इस बार मैं जरूर बताउंगी।  तुम्हे निराश नहीं करूँगी।  एम फॉर "मोदी" … मोदी … मोदी।  मुझे मोदी का चेहरा संसार का सबसे सुन्दर चेहरा लगता है, अन्ना के चेहरे  से भी सुन्दर। 

रवीश कुमार  - हा … हा …हा …हा … किरण जी मुझे अच्छा लगा आप "डिलिवरी मोड"  से  "डिबेट मोड़" में आगयी। अगला मुद्दा है रोजगार।  रोजगार को बढ़ाने के लिए आपलोगों की क्या योजना है ?

अरविन्द - हम अगले ५ सालों में  दिल्ली के अंदर ८ लाख नौकरियाँ देंगे।  हम  business incubators शुरू करेंगे जिससे युवा नौकरी ढूढ़ने की अपेक्षा नौकरी देने वाले बनेंगे।  

किरण - नौकरी देने के लिए मेरे पास "४ जे" प्लान है।  

रविश कुमार- "४ जे" प्लान मतलब ? 

किरण - अभी मैं "डिलिवरी मोड" में हूँ।  

रविश कुमार- परन्तु अभी तो आप "डिबेट मोड़" में आयीं थी?

किरण - ये मेरी मर्ज़ी मैं किस मोड में कब जाऊं, मैं एक स्वतंत्र भारत की महिला हुँ।  मेरे पास ४० साल का "Administrative Experience" है जो मैं दिल्ली को देने आई हूँ।  और रवीश ये मत भूलो की मैं दिल्ली की मुख्यमंत्री हूँ।  ( रवीश - बीच में टोकते हुए … मुख्यमंत्री हूँ !!! ) मतलब लगभग हूँ, means बननेवाली हूँ, और जिसदिन बनगई सबसे पहले twitter में तुम्हे block  करूंगी।  

रवीश कुमार - किरण जी , आपतो गुस्सा हो रही हैं, गुस्सा  मत करिये प्लीज।  हाँ, हमारा अगला मुद्दा है, महिला सुरक्षा।  आज की दिल्ली महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं है आप इसे सुरक्षित बनाने के लिए क्या करेंगे। 

अरविन्द- हम "महिला कमांडो" नियुक्त करेंगे, पूरी दिल्ली में CCTV कैमरे लगवाएंगे, महिला उत्पीड़न मामलों को तय समय में निपटने के लिए फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट बनाएंगे, जिस इलाके में यौन उत्पीड़न जैसी घटनाएं होगी उस इलाक़े के पुलिस और प्रशासनिक अधिकारीयों की जवाबदारी तय की जाएगी।  लोगोंको महिला सुरक्षा के लिए संवेदनशील और जागरूक बनाएंगे।  

किरण - महिला सुरक्षा दिल्ली के अंदर बहुत महत्वपूर्ण विषय है।  हम इसके लिए "३ एस"  फार्मूला अपनाएंगे , "३ एस" मतलब - संस्कार, सुरक्षा और …और …और …और …" शाह' हाँ शाह भाई वो बड़े अच्छे व्यक्ति है।  मैं अति उत्साह में भूल जाती हूँ।  अभी तक उनका एक बार भी नाम नहीं लिया।  Sorry शाह भाई ! 

रविश कुमार - ( बहस को एकतरफा देख बीच में ही खत्म करने का मन बनता है)  अब हम बहस के अंतिम पड़ाव में हैं।  

किरण - बीच में टोकते हुए , रवीश एक मिनट ! एक मिनट ! तुम्हे पता है न मैं कौन हूँ?  Now you just shut up and listen me ! ये घरवापसी, चार बच्चे, जीन्स पे रोक, महान भारतीय पुरातन विज्ञान, गोडसे the grate, हिन्दू राष्ट्र, ये मुद्दे कब आयेगे बहस में ? नाउ आई एम वेरी मच ऑन "डिबेट मोड" 

रवीश कुमार - सॉरी किरण जी, आज की बहस में ये सब मुद्दे नहीं हैं, वैसे भी दिल्ली की जनता के सामने लिए ऐसे मुद्दों में बहस करना आपकी पार्टी के लिए सही  नहीं है।  कहीं "back fire"  न कर जाय। 

किरण - ( मन ही मन -  साला रात भर, साक्षी महाराज, निरंजन ज्योति, प्रवीण तोगड़िया और एक क्या नाम है उसका……  योगी आदित्यनाथ तो मुझे यही रटाते रहे, सोई भी नहीं और सब बेकार, एक बार मुख्यमंत्री बनजाऊं फिर एक - एक को देख लूंगी) ये सही नहीं है , रवीश तुम पक्षपात कर रहे हो जिन मुद्दों पे हम स्ट्रांग हैं उन्हें बहस में शामिल नहीं किया।  एक बात याद रखना मैं बाते कभी भूलती नहीं  हूँ , मौक़ा मिला तो तुम्हे जरूर सबक सिखाउंगी।  

रवीश कुमार - किरण जी ! शांत हो जाइए।  

किरण - नाऊ यू जस्ट शट अप !  let me call my people , Hello ! Hello ! Sunita ! THE BEDI here . You block Ravish Kumar  "टीवी वाला"  from my twitter immediately. Just shut-up and do what I say. Yes, Yes, Great ! रवीश, मैंने कहा था न मैं डिलिवरी में विश्वास करती हूँ, डिबेट में नहीं ?  I have taken action even against you. 

रवीश कुमार - कोई बात नहीं किरण जी, कभी, कभी ऐसा होता है।  नाउ कनक्लूडिंग रिमार्क।  

अरविन्द - देखिये जी, हम दिल्ली की जनता से वादा  करते हैं, हम इस बार आपको निराश  नहीं करेंगे। हमे एक मौका दीजिये पूर्ण बहुतमत के साथ हम, दिल्ली को वर्ल्ड क्लास सिटी बना देंगे।  यहाँ से भ्रष्टाचार कम करेंगे, महगाई काम करेंगे, जनलोकपाल लाएंगे, स्वराज लाएंगे।  ये हमारी लड़ाई नहीं है, आप सभी की लड़ाई है झाड़ू पर बटन दवाइये और आम आदमी को जिताइए।  जय हिन्द !

किरण- देखो साथियों, इस देश में आज मोदी से बढ़कर कोई नेता नहीं है, जब मैं मेरे मोदी की बात टेलीविज़न पे सुनती थी तो भाव विभोर हो जाती थी, मई २०१४ के बाद से मुझे मोदी से प्रेरणा मिली, मोदी सूरज है और हम सब तारें हैं, हमे उससे ऊर्जा मिलती है , मोदी के नाम कर कमल पे वोट दीजिये।  हर,  हर , मोदी !   हर,  हर , मोदी ! 

रवीश - इसी के साथ आज की ये  "महाबहस -केजरीवाल बनाम किरण" समाप्त होती है, मैं ये तो नहीं कह सकता की कौन जीता कौन हारा, वो तो जनता तय करेगी। पर बहस interesting जरूर थी।  है न ! देखते रहिये।  नमस्कार ! 

( पीछे स्क्रीन पर:  शाह और मोदी टीवी के सामने बैठे अपना माथा पीट रहे हैं, और उपाध्याय और मुखी के चेहरे खिल रहे हैं, शाह - मोदी जी, बहस में एक नियम बहुत गलत था, "दर्शक शोरशराब नहीं कर सकते"  मैं देखता हूँ इसको next time ) 

सोमवार, 19 जनवरी 2015

KNOW YOUR KIRAN DIDI !

Kiran Bedi is being indirectly presented as a CM candidate from BJP for Delhi.  Before we vote this brave and outspoken ex-cop we need to know some facts about her, which might not have well known but are correct and somehow reflect Mrs. Bedi’s original capabilities, behavior, character and credibility. I have collected some information from some leading newspapers, judicial proceedings and also known writer and summarized here;  
Kiran Bedi, the original media darling and that she has always been, since she shot to fame for having ordered then Prime Minister Indira Gandhi’s vehicle to be towed away for a parking violation. Those were not the days of 24/7 television, but she became a regular on state-run Doordarshan too.
Everyone loved this gutsy, upright police officer. The media raved about her, and she remained in the news, irrespective of whether she did anything or not. She came across as someone incorruptible. The public image of Kiran Bedi remains as spotless even now. So, when today she talks of corruption, hers is perceived to be an authoritative voice on the issue. But if corruption is to be seen as an abuse of power, Bedi herself would have to stand guilty.

Kiran Bedi’s past is so full of many U-TURNS, CONTROVERSIES, SPATS WITH SENIORS, COURTS, LAWYERS, ABUSE OF POWER, and outbursts against Narendra Modi that an entire issue of Charlie Hebdo could be dedicated to satirizing her career.
Her opinion on Modi, before she inexplicably (or was it part of a political strategy?) changed her mind is well known, courtesy her tweets. Till a few months before Modi became the PM -- a fact that must have inspired Bedi to rearrange her thoughts and realign her political philosophy -- she was continuously attacking him for the Gujarat riots.

SOME FACTS ABOUT MRS BEDI 

1. CONTRAST TO GENERAL PERCEPTION SHE HAS NOT BEEN A MERITORIOUS POLICE OFFICER:

 She NEVER received the Indian Police Medal for MERITORIOUS SERVICE or the President's Police Medal for Distinguished Service. These are routinely awarded after completing a certain number of years of service. It shows that her record is NEITHER meritorious NOR distinguished. (Kiran Bedi must be one of the very few IPS officers in the country who has not been awarded two medals, wrote " Gender's Worked for Bedi "by Pankaj Vohra Hindustan Times dt 30/7/07).

2.      SHE IS A GREAT BHAGODA BY NATURE:

It is true that on 4 separate occasions SHE FAILED TO COMPLETE HER TENURE and at least twice LEFT HER POST WITHOUT PERMISSION which is TANTAMOUNT TO DESERTION OF DUTY. (She didn't complete her tenure as Superintendent of Police in Goa, DIG (Range) in Mizoram, Inspector General (Prisons) Tihar Jail and Inspector General of Police in Chandigarh. The posts that she left without permission were Goa, in 1983, and Mizoram, in 1992. Speaking to the Sunday Observer on the 27th September, 1992, she said of Mizoram: "I LEFT WITHOUT ASKING". Her letter of 25th January,1984 to the Inspector General of Police in Goa, Mr Rajendra Mohan, establishes that she LEFT ON LEAVE THAT HAD NOT BEEN SANCTIONED.

3.       A BAD AND INCAPABLE ADMINSITRATTOR:

(a)       In Delhi she had a CONTROVERSIAL TENURE in the West District. As Traffic DCP, she is remembered as Crane Bedi,but she had to vacate the position on account of her mishandling of the traffic problem.

(b)  She was Inspector General in Chandigarh for 41 days. Then the Adviser to the Administrator wrote to the Home Ministry to ask for her removal on the grounds that her presence in Chandigarh was "NOT IN PUBLIC INTEREST".

4.       SHE IS A TRAITOR TOO:
 It is a fact that as DIG (Range) in Mizoram the GOVERNOR ISSUED A FORMAL NOTE of displeasure against her for LEAKING INFORMATION to the press.

5.    SHE CAN COMPROMISE NATIONAL SECURITY:
It is true that when PRESIDENT VENKATRAMAN VISITED MIZORAM the Governor became aware of HER PLANS TO DISRUPT THE VISIT and informed the INTELLIGENCE BUREAU THAT SHE COULD NOT BE TRUSTED with CLASSIFIED INFORMATION AND SECURITY.

6.       A REBBELAIN UNDER THE  ADMINISTRATIVE MASK:
(a)    She was accused of INSTIGATING JUNIOR POLICE OFFICERS TO DEFY THE ADMINISTRATION because she disagreed with certain suspension orders issued at the time. The press said she was "SOWING SEEDS OF REBELLION".

(b)         Wadhwa Commission, headed by Justice Wadhwa, then a sitting judge of the Delhi High Courtdeclared that BEDI HAD CONNIVED WITH A MUNICIPAL COUNCILOR IN ORGANISING AND TRANSPORTING A MOB TO TIZ HAZARI who then assaulted the lawyers. The report virtually established that Kiran Bedi had hatched a conspiracy with a congress comparator and also USED SOME CRIMINALS SO THAT THEY COULD ATTACK the lawyers demanding her ouster.

(c)    Report of Wadhawa commission was accepted by the HOME MINISTRY and TABLED IN THE PARLIAMENT with an assurance to lawyers that BEDI WILL NEVER BE POSTED IN DELHI IN ANY IMPORTANT POSITION.

7.       A CHRONIC LIAR:
In 1988 she was a CENTRAL FIGURE during the lawyers strike of that year. Even her authorized biography admits that the WADHWA COMMISSION, which investigated the matter, "FOUND FAULT WITH KIRAN". The press has claimed he called her "A CHRONIC LIAR".

8.       CORRUPT TOO :
 She had secured her daughter’s admission to an MBBS course in Delhi’s Lady Hardinge College under THE MIZORAM QUOTA. The purpose of the reservation was to ensure local students get its benefit and BEDI HAD TAKEN ADVANTAGE OF A LOOPHOLE IN THE LAW. When Mizoram became too hot to handle, BEDI ONCE AGAIN LEFT. Incidentally, her daughter also dropped out of the course later.

9.       A  GREAT OPPORTUNIST
(a)       She went for 3 month protest leave when SHE WAS NOT MADE COMMISSIONER of police later she cancelled the leave and resumed office.
(b)      She has been a big critic of Narendra Modi, now praising him like as he is  God just to get chief minister chair.
(In March, Bedi tweeted: "One day NaMo will need to respond with clarity about riots massacre. Despite Courts clearing him so far.") and in April 2012, she has argued that Modi may have passed the SIT exam but was yet to clear the test of ‘prevailing perception of serious incidents’ under his watch).