शनिवार, 28 दिसंबर 2013

नयी किरण, नयी आशा को बधाई !



बधाई हो बधाई, आप को बधाई,
जनमानस की  जीत को बधाई,

स्वतंत्रता उपरांत, स्वतंत्रता को बधाई,
स्वराज की शुरुआत की बधाई,

जनता के संघर्ष, बलिदान को बधाई,
आम आदमी, के शोषण, सब्र को बधाई,

जनता के क्रोध और आक्रोश को बधाई,
उस उद्धोलित, आंदोलन को बधाई,

संविधान की असली शपथ को बधाई,
जनता के उत्साह और विश्वास को बधाई,

आम आदमी और उसकी सरकार को बधाई,
अरविन्द और अरविन्द -जनो को बधाई,

स्वतंत्रता सेनानी और शहीदों को बधाई,
दिल्ली और भारतवर्ष को बधाई,

भारत के इतिहास, उसकी करवट को बधाई,
नयी किरण, नयी आशा को बधाई,

- डॉ सुधीर कुमार शुक्ल "तेजस्वी" 

शुक्रवार, 13 दिसंबर 2013

मुख्तार को जवाब: भारत माँ के सपूतोंका !

एक निजी टीवी चैंनल पर मुख्तार अब्बास नक़वी द्वारा अप्रवासी भारतियों को आतंकवादी कहे जाने पर, माँ के आक्रोशित सपूतों का जवाब ! 


सुन लो मुख्तार कान खोल के,
तेरे अहंकार को, तोड़ देंगे मरोड़ के,

माटी के सपूतों को, आतंकवादी बोलते हो,
हमें लगता है खोट है तुम्हारे खून में,

या तो तुम हो चुके हो दीवालिया,
या कुछ मिलावट है तुम्हारे बाप में,

तुम दरिंदो के सताए, माँ के सपूत हैं हम ,
अपनी दम पे उड़ने वाले परवाने हैं हम,

अपनी रोजी कमाने आये थे यहाँ,
दिल छोड़ के आये थे हिन्दुस्तान में,

गांधी, सुभाष, रमन भी थे अप्रवासी,
जिनपर नाज है, सारे हिंदुस्तान को,

तुम दरिंदो से अपनी माँ को छुड़ाने,
हम आरहे हैं वापस सीना तान के, 

अभी तो धन ही किया है माँ पर न्योछावर,
पीछे नहीं हटेंगे गर पड़ी जान पे,

माटी के अपमान का बदला लेंगे जरूर, 
जरा आने दे चुनाव इस बार के,


वन्देमातरम !

गुरुवार, 12 दिसंबर 2013

राम लला हम आयेंगे ....तुम्हे झुनझुना पकड़ा जायेगे .... !


झुनझुना का जीवन में महत्व है, बच्चों को बहलाने के लिए अक्सर झुनझुना का उपयोग किया जाता है।  बच्चा रोये, झुनझुना पड़ा दो।   जिद करे झुनझुना पकड़ा दो।  यहाँ तक तो अच्छा है, पर हमारी राजनीति  में भी झुनझुना का प्रयोग बहुत  पहले से होने लगा था।  कमोवेश सभी पार्टियां, आम आदमी को अभी तक सिर्फ झुनझुना ही पकड़ती रही हैं, कभी कुर्सी तक पहुचने के लिए तो कभी, कुर्सी बचाने के लिए।  इस झुनझुने का इतना असर हुआ कि ६५ सालों से भूखी, गरीब जनता, कभी चूँ -चाँ तक नहीं करती, रोने की तो बात ही नहीं है।  कभी इसका झुनझुना पकड़ती  है कभी उसका।  सबसे पहले कांग्रेस ने झुनझुना पकड़ाया, अल्पसंख्यक वर्ग को और पिछड़ी जातियों को, एक की सुरक्षा का, दुसरे को आरक्षण का, दोनों बहुत खुश हुए बदले में कांग्रेस कि कुर्सी सुरक्षित हो गई , ये अलग बात है कि न तो इस झुनझुने से अल्पसंख्यकों का कुछ हुआ, न पिछड़ों का।  अगर ये झुनझुना नहीं होता तो, इस ६५ साल में इनकी हालत सुधर गई होती । फिर आई बीजेपी उसे लगा हमें भी सत्ता कि कुर्सी तक जाना है, अब अल्पसंख्यक और पिछड़ी जातियां तो पहले से कांग्रेस के झुनझुने से खेल रही थी, तो उन्हें हिंदुओं और अगड़ों का साथ चाहिए था।  बीजेपी ने सोचा हम इंसानो से बात क्यों करें सीधे भगवान  से बात करते हैं।  बीजेपी ने कहा। … राम लाला हम आयेंगे … झुनझुना तुम्हे दे जायेंगे (मंदिर वहीं बनाएंगे) ! अब क्या था, भगवान् के भक्त खुश, भक्त की  ख़ुशी में ही भगवन की ख़ुशी थी।  बीजेपी को कुर्सी में बैठाया ….... फिर क्या भगवन झुनझुने से खुश और ये सत्ता से। … अगर इन्हे सही में राम मन्दिर के लिए कुछ करना होता तो ६ सालों के शासन  में कुछ तो करते !…पर नहीं वो उस झुनझुने को बना कर रखना चाहते हैं.… अभी आगे भी तो चुनाव  लड़ना है …  !! फिर या करेंगे !

अब क्या था , बीएसपी ने भी पिछड़ी जाति के लोगों को झुनझुने का पिटारा खोल दिया, और माया जी कुर्सी तक उछाल मारी, गिरने ही वाली थी, कि उनके एक सिपहसलार ने अगड़ों कि तरफ भी एक छोटा सा झुनझुना फेक दिया, और वो कुर्सी कर जैम गई।  ये बात अलग है कि माया जी पार्क में अपनी मूर्तियां लगवाने के अलावा पिछड़ी  जातियों के लिए कुछ नहीं किया।  समाजवादी पार्टी ने तो अल्पसंख्यकों से साथ- साथ, बच्चों को लैपटॉप और साइकल का  झुनझुना दिया और अपने निकम्मे बेटे को सीएम बनाया। अब हालत ये है कि गुंडे सीएम साहब कि छाती में उड़द दर रहे हैं, और वो अपने झुनझुने (कुर्सी) को देखकर खुश है।  लगभग सभी दलों का यही हाल है।     झुनझुने की ये कहानी तो बहुत लम्बी है .... परन्तु आपलोगों को  बोर न करते हुए मैं आगे बढ़ना चाहता हूँ।  अब  आम आदमी पार्टी के इस झुनझुनागिरी को ख़तम करने कि कोशिश कर रही है।  …अब देखते हैं आगे क्या होता है।  अगर देश कि जनता बड़ी हो गई होगी तो, इस झुनझुने का किस्सा यही ख़तम हो जायेगा, और अगर जनता अभी भी बच्ची ही होगी तो इसी तरह झुनझुने से खेलती रहेगी, और ये नेता आम आदमी कि जिंदगी और देश का झुनझुना बनाते रहेंगे। 

वन्देमातरम  !

बुधवार, 11 दिसंबर 2013

मिशन कांगो-बीजेपी: "आप" को भी भ्रष्ट कर के छोड़ेगे !





दिल्ली चुनाव के बाद से सब आम आदमी पार्टी के सलाहकार बन गए हैं, चाहे वो कोंग्रेसी हो या बीजेपी  वाला।  बिना मागे सलाह बांट रहे हैं, "आप सरकार बना लो कुछ करो या न करो , अगर ऐसा नहीं करोगे तो बहुत बड़े धोकेबाज हो"।  स्वघोषित बुद्धिमान मणिशंकर ऐय्यर ने तो आम आदमी पार्टी को "कायर" और "धोकेबाज"तक कह दिया।  बीजेपी ज्यादा सीटों के बाबजूद सरकार बनाने पीछे हट रही है।  और आम आदमी पार्टी पर आरोप लगा रही है कि वो दिल्ली कि जनता के साथ धोका कर रहे हैं।  पिछले ३ दिनों में मुझे भी पता नहीं कितने मेल आये अनजान लोगों के, जो बोल रहे हैं कि अगर आम आदमी पार्टी सरकार नहीं बनाती तो वो धोकेबाज है.…और पता नहीं क्या…क्या । अब समझने वाली बात ये है कि, बसपा को तोड़कर और भ्रष्टोत्तम शीबू, मधुकोड़ा आदि के साथ सरकार  बनाने वाली बीजीपी, सरकार क्यों नहीं बनाना चाहती है, और उसे आम आदमी की  सरकार बने इसकी ज्यादा चिंता क्यों है। इस बात पर मुझे बचपन में मेरे साथ घटी एक  घटना  याद आगई; मेरा एक चचेरा भाई था, हम दोनों हमउम्र थे और बहुत अच्छे दोस्त भी, एक बार हम दोनों किसी रिश्तेदार के यहाँ गए हुए थे, हमारे रिश्तेदार के  बेटों ने जो उम्र में हम  दोनों से बहुत बड़े थे, शरारत में दोनों को कीचड में फेकने कि ठानी, हम दोनों भागते और वो लोग हमे खदेड़ते।    मैं खुद को बचाता और जब कभी मौका मिलता अपने भाई को भी बचाने की कोशिश करता। अंततः उनलोगों ने मेरे भाई को पकड़ कर कीचड में फेक दिया।  अब मैं बचा था, वो लोग मेरे पीछे पड़ गए, मैं भाग रहा था, तभी पीछे से आवाज आई …इसे मत छोड़ना ! …   इसे मत छोड़ना ! …  नहीं तो ये घर जाकर खुद के मुझसे बेहतर बतायेगा ! .... मैंने पीछे मुड़कर देखा तो मेरा भाई उनलोगों से चिल्ला- चिल्ला  कर कह रहा था, और उनका साथ भी दे रहा था, मुझे पकड़ने में।  ....... इस कहानी से ये बात समझ में आती है कि जब आप खुद गंदे हो तो दुसरे को भी गन्दा करना चाहते हो।  आज जो कांगो-बीजेपी आम आदमी पार्टी को सरकार  बनाने के लिए, कई तरह के दबाव, (साम, दम, दंड, भेद) बना रही है।  उसके सिर्फ २ कारन है।  १. अल्पमत की  सरकार अपने वादे नहीं पूरा कर पायेगी।  २. किसी और से समर्थन लेने पर ये उसे जोड़-तोड़ कि राजनीति बताएँगे।  और फिर चिल्ला- चिल्ला कर कहेंगे आम आदमी पार्टी भी हमारी तरह भ्रष्ट और अकर्मण्य है।  इस तरह उसकी छवि ख़राब कर अपने रस्ते का कांटा साफ़ करना च रहे हैं।  

कांगो-बीजेपी इतने बड़े सत्ता लोलुप और देशद्रोही हैं कि कोई अच्छा काम करना चाहता है देश के लिए, तो हर तरह की  सम्भव और असम्भव बाधा उसके रास्ते में डालने का प्रयास करेंगे।

बहरहाल मैं अपनी कहानी का परिणाम तो बताया नहीं: रिश्तेदारों और मेरे भाई के अथक प्रयासों के बाबजूद भी वो लोग मुझे कीचड में फेकने में असफल रहे।  क्योंकि बचपन से ही मैं शरीर से पुष्ट था, दौड़त अच्छा था, और जब पता चला कि मेरा चचेरा भाई उनसे मिलगया है तो मैंने ठान लिया कि अब तो हारना ही नहीं है चाहे कुछ भी हो जाये। अतः जहा चाह, वहाँ  राह !

इसी तरह मुझे आशा ही नहीं पूरा विश्वास हैं ये काँगो-बीजेपी कितना भी प्रयास कर ले "आप" को पथभ्रष्ट नहीं कर पाएंगे।  

वन्देमातरम।   

मंगलवार, 10 दिसंबर 2013

काश अरविन्द, मधु कोड़ा होते !



जब से आम आदमी पार्टी की विजय पताका दिल्ली में फहराई है, चरों तरफ से सरकार बनाने के नए- नए तरीके सुझाये जा रहे हैं।  कोई कहता है, कांग्रेस से समर्थ लो, कोई कहता है, बीजेपी से लो।  मेरे पास भी इसी तरह के एजेंट्स के कई मेल आ  चुके। मैं तो काफी खुश हुआ कि लोग मुझसे भी "आप" समर्थन स्वीकार इसके बारे में सिफारश करते हैं।  तब मुझे अहसास हुआ कि जब नेताओं कि कुर्सी हिलती है तो उन्हें सबमे अपना बाप नजर आता है।   एक पूर्व महिला पुलिस अधिकारी, जोकि आजकल बीजेपी कि कवर एजेंट बन गई है (हालाँकि ये अच्छी नौकरी है)   ने बीजेपी और "आप" को साथ मिलकर सरकार बनाने का सुझाव  दिया।  आप ने उनके सुझाव का स्वागत किया, क्योंकि सुझाव अच्छा था ( सुझाव  देने वाले की नजर में), पर क्या करें अरविन्द जी और पूरी "आप" सरकार न बनाने पर अड़ी हुई है।  अब बहुमत के इतने करीब होकर भी सरकार न बनाना तो मूर्खता ही कही जाएगी।  आप भी इस बात से सहमत होंगे ? पर क्या करें सरकार बनाने के रस्ते में सिर्फ  एक रोड़ा है "अरविन्द, मधु कोड़ा नहीं हैं" अगर होते तो जीभ लपलपाकर कर कुर्सी कि तरफ दौड़ते, और फिर जनता का पूरा धन खा लेते। (उसके बाद क्या होता है आपको पता है )  अगर अरविद: सुखराम, कल्याण सिंह, मायावती, मुलायम, लालू , देवेगौड़ा या फिर फेकू, पप्पू, या लल्लू  आदि कुछ भी होते तो सरकार जरूर बना लेते।  परन्तु दुर्भग्य से ( इन सभी लल्लुओं के ) वो एक आम आदमी हैं, जिसे कुर्सी का कोई लालच नहीं है, वो तो आम आदमी कि लड़ाई लड़ना चाहते है, उसके लिए कुछ करना चाहते हैं, वो अल्पमत सरकार बनाकर या भ्रष्टों से मिलकर देश कि दुर्दशा में कम से कम अपना सहयोग तो  नहीं देना चाहेंगे।  वो जितने वादे आम आदमी से किये हैं उन्हें पूरा करने के लिए पूर्ण बहुमत चाहिए, और दिल्ली की  जनता सब देख रही है, कैसे लल्लू, पप्पू , फेकू और उनके एजेंट "आप" को भी पथभ्रष्ट करने कि कोशिश कर रहे हैं।  इसबार दिल्ली की  जनता ऐसा झाड़ू चलाएगी कि ये अपनी सुध-बुध सब को बैठेंगे।  अगर भरोसा नहीं है तो शीला ताई से पूछ लो।  (अगर ताई, अपने सपनो के बारे में सच बताये तो जरूर अरविन्द झाड़ू लिए उसे खदेड़ रहे होंगे और तभी वो कीचड में फस गई होगी )  दिग्विजय अंकल, पप्पू, लल्लू किसी से भी पूछ लो, कि आम आदमी को ललकारने पर क्या दुर्गति होती है।  दिल्ली तो फेकू को भी दूर दिखने लगी है, इसी लिए उनके अंडर कवर एजेंट सक्रिय हो गए हैं।  

वन्देमातरम।  

सोमवार, 9 दिसंबर 2013

आप की विजय का पहला ये घोष है !





आप की विजय का, पहला ये घोष है,
ख़ास पर आम का, पहला ये वार है,

शाम, दाम, दंड, भेद, सब का एक भेद है,
जनसेवा, राष्ट्रधर्म अद्भुत ये मेल है,

बड़े- बड़े बाहुबली, धन के कुबेर हैं,
झाड़ू कि सींक लगी, पड़े सब ढेर हैं, 

सत्ता का मद था, धन का घमंड बड़ा,
जनता को लूट कर, भरे घर को चोर हैं,

आम आदमी कि आह और ये प्रकोप है,
आम आदमी का चला, वोट का ये जोर है,

राजा और प्रजा का, मिटा आज भेद हैं,
भारत का भाग्य खुला, घर में किलोल है,

जय भारत, जय जनता, यही आज घोष है,
पहली इस विजय है, चारो तरफ शोर है, 


वन्देमातरम ! 

"आप" के उदय के मायने !


कल का दिन (८। १२। २०१३) स्वतंत्रता उपरांत भारतीय प्रजातंत्र के लिए सबसे महत्वपूर्ण दिन था।  कुछ लोग इसे जयप्रकश आंदोलन से कम आंकते हैं, परन्तु मेरे नजर में ये उससे ज्यादा है, क्योंकि जय प्रकाश आंदोलन में कांग्रेस से पीड़ित लगभग सभी पार्टियां साथ आगईं थी और कांग्रेस को सबक सिखाया। परन्तु कल एक ऐसे शिशु ने अपना पराक्रम सिखाया है जिसकी उत्पत्ति दशकों से राजनीति द्वारा उपेच्छित, और पीड़ित आम आदमी की कोख से हुई है।  अब कल के परिणामों के लघु-और दीर्घगामी परिणामों कि बात करें तो, यह भारतीय राजनीति में आमूल परिवर्तन कि शुरुआत है।  अभी तक देश की  दो बड़ी पार्टियां एक -एक समुदाय को झूठा समर्थन देकर,उन्हें लड़ाकर अपनी अपनी राजनीतिक रोटी सकती रही हैं।  एक तरफ कांग्रेस ने मुस्लिम भाइयों/बहनो को हिंदुओ का डर दिखा कर सत्ता तक पहुँचती  रही, दूसरी  तरफ बीजेपी ने हिन्दू भाइयों/बहनो का मुसलमानो का डर दिखाकर उनका मसीहा बनने की कोशिश करती रही। परन्तु वास्तव में इन दोनों को किसी की  कोई परवाह नहीं थी, ये सिर्फ अंग्रेजों कि फूट डालो और शासन करो कि नीति को ही आगे बढाती रहीं हैं ।  इसी तर्ज में कुछ और क्षेत्रितय दलों का उद्भव हुआ जिनमे राष्ट्रीय जनतादल, समाजवादी पार्टी, और बसपा प्रमुख हैं, इन्होंने जाति के आधार पर समाज को आपस में लड़ाना शुरू किया, और इसका उन्हें लाभ भी हुआ।  इस बात ये उत्साहित होकर लगभग सभी दल सिर्फ संप्रदाय और जाति को बात कर, आपस में द्वेष फैला कर  ही अपनी राजनीती करने लगे।  बाकी, आम जनता के और देश के मुद्दे  पीछे होते गए।  यहाँ तक कि राजनीति के पंडित, और समाज शास्त्री  भी इस बिखराव को भारत का अभिन्न अंग बताकर इसका पोषण और संवर्धन करने लगे।  

अब चुनाओं में आम आदमी के भले का कम और जाति और संप्रदाय कि गणित ज्यादा चलने लगा।  देश में कई बार तो लोगों के खून कि होलियाँ खेली गई, लोगों को मरवाया गया, साम्प्रदाइक और जातिगत दंगे फैलायेगए, जो सिर्फ इन राजनीतिक दलों द्वारा प्रायोजित थीं।  सामान्य नागरिक तो असहाय था, उसे राजनीति से अरुचि होगई, उसने अपने आपको खुद तक सीमित कर लिया।  इससे हालत और बदतर हुई, राजनीतिक दल सिर्फ अपनी झोली भरने के बारे में सोचने लगे, उन्हें आम आदमी और देश से कोई सारोकार नहीं रहा, यहाँ तक कि विदेशी ताकतों और पडोसी देशों के सामने देश हित से समझौता किया गया । अब शुरू हुआ घोटालों का दौर, व्यापारिक घरानो  और राजनेताओं का अद्भुत संगम इस देश और आम आदमी को घुन कि तरह खाने लगा। अपनी उच्च आकान्क्षाओ के लिए इन दलों ने समय - समय पर देश कि सम्प्रभुता और अखंडता को भी खतरे में डाला।  लोगों ने राजनीति के बारे सोचना, बात करना बंद कर दिया, कुछ लोग जो सोचते, करना चाहते वो सिर्फ लेखों, कविताओं के माध्यम से ही अपनी भड़ास निकाल पाते, पर खुद को असहाय  पाते।  इस भ्रस्ट व्यवस्था और राजनीति को देश का भविष्य मान कर या तो, निराश हो गए, या फिर खुद को उसी व्यवस्था के अनुरूप ढालने  लगे।  तभी भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के रूप में कुछ साहसी लोग सामने आये और आम आदमी का दबा गुस्सा फूट कर बाहर आगया, आंदोलन को अपार जन समर्थन मिला। लोग घरों  से निकल कर सड़कों में आने लगे, एक आशा दिखी कि कुछ तो बदलेगा, परन्तु ये राजनेता जो इस भ्रष्ट व्यवस्था की  पूँजी खा रहे थे, वो कैसे हार मानते।  अतः उस आंदोलन को चुनौती देने लगे, उसे कुचलने कि कोशिश कि, आशय लोगों पर बल प्रयोग भी हुआ और उसे विस्फ़ोट से उससे उत्पन्न हुई आम आदमी पार्टी।  

आम आदमी पार्टी जैसा कि नाम है, आम लोगों को मिला कर बनी, वो लोग जो इस भ्रष्ट व्यवस्था से पीड़ित थे, असहाय थे, परन्तु विकल्प न होने के कारन शांत थे, गुम थे,  इस पार्टी को हांथों - हाँथ लिया।  चूँकि यह पार्टी जाति और संप्रदाय पर आधारित नहीं थी, इस पर भ्रष्टाचार के लिए कोई गुंजाइश  नहीं थी, अतः आम आदमी का अभूतपूर्व समर्थन मिला।  अब, जब इस पार्टी को पहली और उत्तम सफलता मिली है, परिणामत भारत का राजनीतिक परिदृश्य बदलने कि प्रबल सम्भावना दिखने लगी है।  ये जीत यह स्थापित करती है, कि भारत का आम आदमी भ्रष्ट नहीं है, उसे विवश किया गया है इस भ्रष्टाचार को अपनाने के लिए।  यह जीत यह भी सिद्ध करती है, कि भारत का आम नागरिक इस संप्रदाय और जातिगत द्वेषों से ऊब चुका है, अभी तक विकल्प न होने के कारन मजबूरी में  दोनों बड़ी साम्प्रदाइक पार्टियों में से एक को चुनता आरहा है। परन्तु उसे जैसे ही एक छोटा ही सही पर साफ -सुथरा विकल्प मिला उसने उसका हाथ थमने में जरा भी संकोच नहीं किया।  ये जीत यह भी बताती है कि आम आदमी सबकुछ देखता है, सब समझता है, उसे अब बेबकूफ बना कर आप देश में ज्यादा दिनों तक सत्ता नहीं कर सकते। ये जीत यह भी स्थापित करती है कि हम  भारतीय, खुशहाल, और शांतिपूर्ण जीवन जीना चाहते हैं।  इस नफरत कि राजनीती को हम  पूरी तरह से नकारने के लिए तैयार हैं।  ये जीत अबतक स्थापित इस बात को कि "चुनाव बिना काले धन और बल के नहीं जीते जा सकते हैं" इसे भी नकारती है।  और यह स्थापित करती है कि चुनाव कम पैसों और साफ़-सुथरी राजनीति से जीते जा सकते हैं।  आज देश का समाज जाग रहा है, उसे पता है उसके लिए, देश के लिए क्या अच्छा है, क्या बुरा, और वह अपना मत भी दे रहा है, भाग भी ले रहा है।  यह जीत स्थापित पार्टियों को यह भी सोचने के लिए जरूर विवश करेगी, कि अगर उन्होंने आम आदमी कि परवाह करना अब भी शुरू नहीं किया तो वो नेस्तनाबूद हो जायेगी।  यह जीत भारतीय समाज में खास आदमी कि परिकल्पना को भी कमजोर करेगी।  अंततः ये जीत सही मायनो में सत्ता की बागडोर जनता के हांथों में सौंप कर उसे को शासक होने का एहसास कराएगी।  

आज भारत कि राजनीति करवट बदल रही है, भारत बदलने कि कोशिश कर रहा है, एक रौशनी जो प्राची से दिख रही है, उसके सूरज बनने का समय आरहा है।  आइये हमसब मिलकर, एक जुट होकर इस बदलाव के भागीदार बने।  अपने समाज को खुशहाल, समृद्ध और  देश को महान बनाने में अपना योगदान दें।  

वन्देमातरम ! जय हिन्द !