शनिवार, 28 दिसंबर 2013

नयी किरण, नयी आशा को बधाई !



बधाई हो बधाई, आप को बधाई,
जनमानस की  जीत को बधाई,

स्वतंत्रता उपरांत, स्वतंत्रता को बधाई,
स्वराज की शुरुआत की बधाई,

जनता के संघर्ष, बलिदान को बधाई,
आम आदमी, के शोषण, सब्र को बधाई,

जनता के क्रोध और आक्रोश को बधाई,
उस उद्धोलित, आंदोलन को बधाई,

संविधान की असली शपथ को बधाई,
जनता के उत्साह और विश्वास को बधाई,

आम आदमी और उसकी सरकार को बधाई,
अरविन्द और अरविन्द -जनो को बधाई,

स्वतंत्रता सेनानी और शहीदों को बधाई,
दिल्ली और भारतवर्ष को बधाई,

भारत के इतिहास, उसकी करवट को बधाई,
नयी किरण, नयी आशा को बधाई,

- डॉ सुधीर कुमार शुक्ल "तेजस्वी" 

शुक्रवार, 13 दिसंबर 2013

मुख्तार को जवाब: भारत माँ के सपूतोंका !

एक निजी टीवी चैंनल पर मुख्तार अब्बास नक़वी द्वारा अप्रवासी भारतियों को आतंकवादी कहे जाने पर, माँ के आक्रोशित सपूतों का जवाब ! 


सुन लो मुख्तार कान खोल के,
तेरे अहंकार को, तोड़ देंगे मरोड़ के,

माटी के सपूतों को, आतंकवादी बोलते हो,
हमें लगता है खोट है तुम्हारे खून में,

या तो तुम हो चुके हो दीवालिया,
या कुछ मिलावट है तुम्हारे बाप में,

तुम दरिंदो के सताए, माँ के सपूत हैं हम ,
अपनी दम पे उड़ने वाले परवाने हैं हम,

अपनी रोजी कमाने आये थे यहाँ,
दिल छोड़ के आये थे हिन्दुस्तान में,

गांधी, सुभाष, रमन भी थे अप्रवासी,
जिनपर नाज है, सारे हिंदुस्तान को,

तुम दरिंदो से अपनी माँ को छुड़ाने,
हम आरहे हैं वापस सीना तान के, 

अभी तो धन ही किया है माँ पर न्योछावर,
पीछे नहीं हटेंगे गर पड़ी जान पे,

माटी के अपमान का बदला लेंगे जरूर, 
जरा आने दे चुनाव इस बार के,


वन्देमातरम !

गुरुवार, 12 दिसंबर 2013

राम लला हम आयेंगे ....तुम्हे झुनझुना पकड़ा जायेगे .... !


झुनझुना का जीवन में महत्व है, बच्चों को बहलाने के लिए अक्सर झुनझुना का उपयोग किया जाता है।  बच्चा रोये, झुनझुना पड़ा दो।   जिद करे झुनझुना पकड़ा दो।  यहाँ तक तो अच्छा है, पर हमारी राजनीति  में भी झुनझुना का प्रयोग बहुत  पहले से होने लगा था।  कमोवेश सभी पार्टियां, आम आदमी को अभी तक सिर्फ झुनझुना ही पकड़ती रही हैं, कभी कुर्सी तक पहुचने के लिए तो कभी, कुर्सी बचाने के लिए।  इस झुनझुने का इतना असर हुआ कि ६५ सालों से भूखी, गरीब जनता, कभी चूँ -चाँ तक नहीं करती, रोने की तो बात ही नहीं है।  कभी इसका झुनझुना पकड़ती  है कभी उसका।  सबसे पहले कांग्रेस ने झुनझुना पकड़ाया, अल्पसंख्यक वर्ग को और पिछड़ी जातियों को, एक की सुरक्षा का, दुसरे को आरक्षण का, दोनों बहुत खुश हुए बदले में कांग्रेस कि कुर्सी सुरक्षित हो गई , ये अलग बात है कि न तो इस झुनझुने से अल्पसंख्यकों का कुछ हुआ, न पिछड़ों का।  अगर ये झुनझुना नहीं होता तो, इस ६५ साल में इनकी हालत सुधर गई होती । फिर आई बीजेपी उसे लगा हमें भी सत्ता कि कुर्सी तक जाना है, अब अल्पसंख्यक और पिछड़ी जातियां तो पहले से कांग्रेस के झुनझुने से खेल रही थी, तो उन्हें हिंदुओं और अगड़ों का साथ चाहिए था।  बीजेपी ने सोचा हम इंसानो से बात क्यों करें सीधे भगवान  से बात करते हैं।  बीजेपी ने कहा। … राम लाला हम आयेंगे … झुनझुना तुम्हे दे जायेंगे (मंदिर वहीं बनाएंगे) ! अब क्या था, भगवान् के भक्त खुश, भक्त की  ख़ुशी में ही भगवन की ख़ुशी थी।  बीजेपी को कुर्सी में बैठाया ….... फिर क्या भगवन झुनझुने से खुश और ये सत्ता से। … अगर इन्हे सही में राम मन्दिर के लिए कुछ करना होता तो ६ सालों के शासन  में कुछ तो करते !…पर नहीं वो उस झुनझुने को बना कर रखना चाहते हैं.… अभी आगे भी तो चुनाव  लड़ना है …  !! फिर या करेंगे !

अब क्या था , बीएसपी ने भी पिछड़ी जाति के लोगों को झुनझुने का पिटारा खोल दिया, और माया जी कुर्सी तक उछाल मारी, गिरने ही वाली थी, कि उनके एक सिपहसलार ने अगड़ों कि तरफ भी एक छोटा सा झुनझुना फेक दिया, और वो कुर्सी कर जैम गई।  ये बात अलग है कि माया जी पार्क में अपनी मूर्तियां लगवाने के अलावा पिछड़ी  जातियों के लिए कुछ नहीं किया।  समाजवादी पार्टी ने तो अल्पसंख्यकों से साथ- साथ, बच्चों को लैपटॉप और साइकल का  झुनझुना दिया और अपने निकम्मे बेटे को सीएम बनाया। अब हालत ये है कि गुंडे सीएम साहब कि छाती में उड़द दर रहे हैं, और वो अपने झुनझुने (कुर्सी) को देखकर खुश है।  लगभग सभी दलों का यही हाल है।     झुनझुने की ये कहानी तो बहुत लम्बी है .... परन्तु आपलोगों को  बोर न करते हुए मैं आगे बढ़ना चाहता हूँ।  अब  आम आदमी पार्टी के इस झुनझुनागिरी को ख़तम करने कि कोशिश कर रही है।  …अब देखते हैं आगे क्या होता है।  अगर देश कि जनता बड़ी हो गई होगी तो, इस झुनझुने का किस्सा यही ख़तम हो जायेगा, और अगर जनता अभी भी बच्ची ही होगी तो इसी तरह झुनझुने से खेलती रहेगी, और ये नेता आम आदमी कि जिंदगी और देश का झुनझुना बनाते रहेंगे। 

वन्देमातरम  !

बुधवार, 11 दिसंबर 2013

मिशन कांगो-बीजेपी: "आप" को भी भ्रष्ट कर के छोड़ेगे !





दिल्ली चुनाव के बाद से सब आम आदमी पार्टी के सलाहकार बन गए हैं, चाहे वो कोंग्रेसी हो या बीजेपी  वाला।  बिना मागे सलाह बांट रहे हैं, "आप सरकार बना लो कुछ करो या न करो , अगर ऐसा नहीं करोगे तो बहुत बड़े धोकेबाज हो"।  स्वघोषित बुद्धिमान मणिशंकर ऐय्यर ने तो आम आदमी पार्टी को "कायर" और "धोकेबाज"तक कह दिया।  बीजेपी ज्यादा सीटों के बाबजूद सरकार बनाने पीछे हट रही है।  और आम आदमी पार्टी पर आरोप लगा रही है कि वो दिल्ली कि जनता के साथ धोका कर रहे हैं।  पिछले ३ दिनों में मुझे भी पता नहीं कितने मेल आये अनजान लोगों के, जो बोल रहे हैं कि अगर आम आदमी पार्टी सरकार नहीं बनाती तो वो धोकेबाज है.…और पता नहीं क्या…क्या । अब समझने वाली बात ये है कि, बसपा को तोड़कर और भ्रष्टोत्तम शीबू, मधुकोड़ा आदि के साथ सरकार  बनाने वाली बीजीपी, सरकार क्यों नहीं बनाना चाहती है, और उसे आम आदमी की  सरकार बने इसकी ज्यादा चिंता क्यों है। इस बात पर मुझे बचपन में मेरे साथ घटी एक  घटना  याद आगई; मेरा एक चचेरा भाई था, हम दोनों हमउम्र थे और बहुत अच्छे दोस्त भी, एक बार हम दोनों किसी रिश्तेदार के यहाँ गए हुए थे, हमारे रिश्तेदार के  बेटों ने जो उम्र में हम  दोनों से बहुत बड़े थे, शरारत में दोनों को कीचड में फेकने कि ठानी, हम दोनों भागते और वो लोग हमे खदेड़ते।    मैं खुद को बचाता और जब कभी मौका मिलता अपने भाई को भी बचाने की कोशिश करता। अंततः उनलोगों ने मेरे भाई को पकड़ कर कीचड में फेक दिया।  अब मैं बचा था, वो लोग मेरे पीछे पड़ गए, मैं भाग रहा था, तभी पीछे से आवाज आई …इसे मत छोड़ना ! …   इसे मत छोड़ना ! …  नहीं तो ये घर जाकर खुद के मुझसे बेहतर बतायेगा ! .... मैंने पीछे मुड़कर देखा तो मेरा भाई उनलोगों से चिल्ला- चिल्ला  कर कह रहा था, और उनका साथ भी दे रहा था, मुझे पकड़ने में।  ....... इस कहानी से ये बात समझ में आती है कि जब आप खुद गंदे हो तो दुसरे को भी गन्दा करना चाहते हो।  आज जो कांगो-बीजेपी आम आदमी पार्टी को सरकार  बनाने के लिए, कई तरह के दबाव, (साम, दम, दंड, भेद) बना रही है।  उसके सिर्फ २ कारन है।  १. अल्पमत की  सरकार अपने वादे नहीं पूरा कर पायेगी।  २. किसी और से समर्थन लेने पर ये उसे जोड़-तोड़ कि राजनीति बताएँगे।  और फिर चिल्ला- चिल्ला कर कहेंगे आम आदमी पार्टी भी हमारी तरह भ्रष्ट और अकर्मण्य है।  इस तरह उसकी छवि ख़राब कर अपने रस्ते का कांटा साफ़ करना च रहे हैं।  

कांगो-बीजेपी इतने बड़े सत्ता लोलुप और देशद्रोही हैं कि कोई अच्छा काम करना चाहता है देश के लिए, तो हर तरह की  सम्भव और असम्भव बाधा उसके रास्ते में डालने का प्रयास करेंगे।

बहरहाल मैं अपनी कहानी का परिणाम तो बताया नहीं: रिश्तेदारों और मेरे भाई के अथक प्रयासों के बाबजूद भी वो लोग मुझे कीचड में फेकने में असफल रहे।  क्योंकि बचपन से ही मैं शरीर से पुष्ट था, दौड़त अच्छा था, और जब पता चला कि मेरा चचेरा भाई उनसे मिलगया है तो मैंने ठान लिया कि अब तो हारना ही नहीं है चाहे कुछ भी हो जाये। अतः जहा चाह, वहाँ  राह !

इसी तरह मुझे आशा ही नहीं पूरा विश्वास हैं ये काँगो-बीजेपी कितना भी प्रयास कर ले "आप" को पथभ्रष्ट नहीं कर पाएंगे।  

वन्देमातरम।   

मंगलवार, 10 दिसंबर 2013

काश अरविन्द, मधु कोड़ा होते !



जब से आम आदमी पार्टी की विजय पताका दिल्ली में फहराई है, चरों तरफ से सरकार बनाने के नए- नए तरीके सुझाये जा रहे हैं।  कोई कहता है, कांग्रेस से समर्थ लो, कोई कहता है, बीजेपी से लो।  मेरे पास भी इसी तरह के एजेंट्स के कई मेल आ  चुके। मैं तो काफी खुश हुआ कि लोग मुझसे भी "आप" समर्थन स्वीकार इसके बारे में सिफारश करते हैं।  तब मुझे अहसास हुआ कि जब नेताओं कि कुर्सी हिलती है तो उन्हें सबमे अपना बाप नजर आता है।   एक पूर्व महिला पुलिस अधिकारी, जोकि आजकल बीजेपी कि कवर एजेंट बन गई है (हालाँकि ये अच्छी नौकरी है)   ने बीजेपी और "आप" को साथ मिलकर सरकार बनाने का सुझाव  दिया।  आप ने उनके सुझाव का स्वागत किया, क्योंकि सुझाव अच्छा था ( सुझाव  देने वाले की नजर में), पर क्या करें अरविन्द जी और पूरी "आप" सरकार न बनाने पर अड़ी हुई है।  अब बहुमत के इतने करीब होकर भी सरकार न बनाना तो मूर्खता ही कही जाएगी।  आप भी इस बात से सहमत होंगे ? पर क्या करें सरकार बनाने के रस्ते में सिर्फ  एक रोड़ा है "अरविन्द, मधु कोड़ा नहीं हैं" अगर होते तो जीभ लपलपाकर कर कुर्सी कि तरफ दौड़ते, और फिर जनता का पूरा धन खा लेते। (उसके बाद क्या होता है आपको पता है )  अगर अरविद: सुखराम, कल्याण सिंह, मायावती, मुलायम, लालू , देवेगौड़ा या फिर फेकू, पप्पू, या लल्लू  आदि कुछ भी होते तो सरकार जरूर बना लेते।  परन्तु दुर्भग्य से ( इन सभी लल्लुओं के ) वो एक आम आदमी हैं, जिसे कुर्सी का कोई लालच नहीं है, वो तो आम आदमी कि लड़ाई लड़ना चाहते है, उसके लिए कुछ करना चाहते हैं, वो अल्पमत सरकार बनाकर या भ्रष्टों से मिलकर देश कि दुर्दशा में कम से कम अपना सहयोग तो  नहीं देना चाहेंगे।  वो जितने वादे आम आदमी से किये हैं उन्हें पूरा करने के लिए पूर्ण बहुमत चाहिए, और दिल्ली की  जनता सब देख रही है, कैसे लल्लू, पप्पू , फेकू और उनके एजेंट "आप" को भी पथभ्रष्ट करने कि कोशिश कर रहे हैं।  इसबार दिल्ली की  जनता ऐसा झाड़ू चलाएगी कि ये अपनी सुध-बुध सब को बैठेंगे।  अगर भरोसा नहीं है तो शीला ताई से पूछ लो।  (अगर ताई, अपने सपनो के बारे में सच बताये तो जरूर अरविन्द झाड़ू लिए उसे खदेड़ रहे होंगे और तभी वो कीचड में फस गई होगी )  दिग्विजय अंकल, पप्पू, लल्लू किसी से भी पूछ लो, कि आम आदमी को ललकारने पर क्या दुर्गति होती है।  दिल्ली तो फेकू को भी दूर दिखने लगी है, इसी लिए उनके अंडर कवर एजेंट सक्रिय हो गए हैं।  

वन्देमातरम।  

सोमवार, 9 दिसंबर 2013

आप की विजय का पहला ये घोष है !





आप की विजय का, पहला ये घोष है,
ख़ास पर आम का, पहला ये वार है,

शाम, दाम, दंड, भेद, सब का एक भेद है,
जनसेवा, राष्ट्रधर्म अद्भुत ये मेल है,

बड़े- बड़े बाहुबली, धन के कुबेर हैं,
झाड़ू कि सींक लगी, पड़े सब ढेर हैं, 

सत्ता का मद था, धन का घमंड बड़ा,
जनता को लूट कर, भरे घर को चोर हैं,

आम आदमी कि आह और ये प्रकोप है,
आम आदमी का चला, वोट का ये जोर है,

राजा और प्रजा का, मिटा आज भेद हैं,
भारत का भाग्य खुला, घर में किलोल है,

जय भारत, जय जनता, यही आज घोष है,
पहली इस विजय है, चारो तरफ शोर है, 


वन्देमातरम ! 

"आप" के उदय के मायने !


कल का दिन (८। १२। २०१३) स्वतंत्रता उपरांत भारतीय प्रजातंत्र के लिए सबसे महत्वपूर्ण दिन था।  कुछ लोग इसे जयप्रकश आंदोलन से कम आंकते हैं, परन्तु मेरे नजर में ये उससे ज्यादा है, क्योंकि जय प्रकाश आंदोलन में कांग्रेस से पीड़ित लगभग सभी पार्टियां साथ आगईं थी और कांग्रेस को सबक सिखाया। परन्तु कल एक ऐसे शिशु ने अपना पराक्रम सिखाया है जिसकी उत्पत्ति दशकों से राजनीति द्वारा उपेच्छित, और पीड़ित आम आदमी की कोख से हुई है।  अब कल के परिणामों के लघु-और दीर्घगामी परिणामों कि बात करें तो, यह भारतीय राजनीति में आमूल परिवर्तन कि शुरुआत है।  अभी तक देश की  दो बड़ी पार्टियां एक -एक समुदाय को झूठा समर्थन देकर,उन्हें लड़ाकर अपनी अपनी राजनीतिक रोटी सकती रही हैं।  एक तरफ कांग्रेस ने मुस्लिम भाइयों/बहनो को हिंदुओ का डर दिखा कर सत्ता तक पहुँचती  रही, दूसरी  तरफ बीजेपी ने हिन्दू भाइयों/बहनो का मुसलमानो का डर दिखाकर उनका मसीहा बनने की कोशिश करती रही। परन्तु वास्तव में इन दोनों को किसी की  कोई परवाह नहीं थी, ये सिर्फ अंग्रेजों कि फूट डालो और शासन करो कि नीति को ही आगे बढाती रहीं हैं ।  इसी तर्ज में कुछ और क्षेत्रितय दलों का उद्भव हुआ जिनमे राष्ट्रीय जनतादल, समाजवादी पार्टी, और बसपा प्रमुख हैं, इन्होंने जाति के आधार पर समाज को आपस में लड़ाना शुरू किया, और इसका उन्हें लाभ भी हुआ।  इस बात ये उत्साहित होकर लगभग सभी दल सिर्फ संप्रदाय और जाति को बात कर, आपस में द्वेष फैला कर  ही अपनी राजनीती करने लगे।  बाकी, आम जनता के और देश के मुद्दे  पीछे होते गए।  यहाँ तक कि राजनीति के पंडित, और समाज शास्त्री  भी इस बिखराव को भारत का अभिन्न अंग बताकर इसका पोषण और संवर्धन करने लगे।  

अब चुनाओं में आम आदमी के भले का कम और जाति और संप्रदाय कि गणित ज्यादा चलने लगा।  देश में कई बार तो लोगों के खून कि होलियाँ खेली गई, लोगों को मरवाया गया, साम्प्रदाइक और जातिगत दंगे फैलायेगए, जो सिर्फ इन राजनीतिक दलों द्वारा प्रायोजित थीं।  सामान्य नागरिक तो असहाय था, उसे राजनीति से अरुचि होगई, उसने अपने आपको खुद तक सीमित कर लिया।  इससे हालत और बदतर हुई, राजनीतिक दल सिर्फ अपनी झोली भरने के बारे में सोचने लगे, उन्हें आम आदमी और देश से कोई सारोकार नहीं रहा, यहाँ तक कि विदेशी ताकतों और पडोसी देशों के सामने देश हित से समझौता किया गया । अब शुरू हुआ घोटालों का दौर, व्यापारिक घरानो  और राजनेताओं का अद्भुत संगम इस देश और आम आदमी को घुन कि तरह खाने लगा। अपनी उच्च आकान्क्षाओ के लिए इन दलों ने समय - समय पर देश कि सम्प्रभुता और अखंडता को भी खतरे में डाला।  लोगों ने राजनीति के बारे सोचना, बात करना बंद कर दिया, कुछ लोग जो सोचते, करना चाहते वो सिर्फ लेखों, कविताओं के माध्यम से ही अपनी भड़ास निकाल पाते, पर खुद को असहाय  पाते।  इस भ्रस्ट व्यवस्था और राजनीति को देश का भविष्य मान कर या तो, निराश हो गए, या फिर खुद को उसी व्यवस्था के अनुरूप ढालने  लगे।  तभी भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के रूप में कुछ साहसी लोग सामने आये और आम आदमी का दबा गुस्सा फूट कर बाहर आगया, आंदोलन को अपार जन समर्थन मिला। लोग घरों  से निकल कर सड़कों में आने लगे, एक आशा दिखी कि कुछ तो बदलेगा, परन्तु ये राजनेता जो इस भ्रष्ट व्यवस्था की  पूँजी खा रहे थे, वो कैसे हार मानते।  अतः उस आंदोलन को चुनौती देने लगे, उसे कुचलने कि कोशिश कि, आशय लोगों पर बल प्रयोग भी हुआ और उसे विस्फ़ोट से उससे उत्पन्न हुई आम आदमी पार्टी।  

आम आदमी पार्टी जैसा कि नाम है, आम लोगों को मिला कर बनी, वो लोग जो इस भ्रष्ट व्यवस्था से पीड़ित थे, असहाय थे, परन्तु विकल्प न होने के कारन शांत थे, गुम थे,  इस पार्टी को हांथों - हाँथ लिया।  चूँकि यह पार्टी जाति और संप्रदाय पर आधारित नहीं थी, इस पर भ्रष्टाचार के लिए कोई गुंजाइश  नहीं थी, अतः आम आदमी का अभूतपूर्व समर्थन मिला।  अब, जब इस पार्टी को पहली और उत्तम सफलता मिली है, परिणामत भारत का राजनीतिक परिदृश्य बदलने कि प्रबल सम्भावना दिखने लगी है।  ये जीत यह स्थापित करती है, कि भारत का आम आदमी भ्रष्ट नहीं है, उसे विवश किया गया है इस भ्रष्टाचार को अपनाने के लिए।  यह जीत यह भी सिद्ध करती है, कि भारत का आम नागरिक इस संप्रदाय और जातिगत द्वेषों से ऊब चुका है, अभी तक विकल्प न होने के कारन मजबूरी में  दोनों बड़ी साम्प्रदाइक पार्टियों में से एक को चुनता आरहा है। परन्तु उसे जैसे ही एक छोटा ही सही पर साफ -सुथरा विकल्प मिला उसने उसका हाथ थमने में जरा भी संकोच नहीं किया।  ये जीत यह भी बताती है कि आम आदमी सबकुछ देखता है, सब समझता है, उसे अब बेबकूफ बना कर आप देश में ज्यादा दिनों तक सत्ता नहीं कर सकते। ये जीत यह भी स्थापित करती है कि हम  भारतीय, खुशहाल, और शांतिपूर्ण जीवन जीना चाहते हैं।  इस नफरत कि राजनीती को हम  पूरी तरह से नकारने के लिए तैयार हैं।  ये जीत अबतक स्थापित इस बात को कि "चुनाव बिना काले धन और बल के नहीं जीते जा सकते हैं" इसे भी नकारती है।  और यह स्थापित करती है कि चुनाव कम पैसों और साफ़-सुथरी राजनीति से जीते जा सकते हैं।  आज देश का समाज जाग रहा है, उसे पता है उसके लिए, देश के लिए क्या अच्छा है, क्या बुरा, और वह अपना मत भी दे रहा है, भाग भी ले रहा है।  यह जीत स्थापित पार्टियों को यह भी सोचने के लिए जरूर विवश करेगी, कि अगर उन्होंने आम आदमी कि परवाह करना अब भी शुरू नहीं किया तो वो नेस्तनाबूद हो जायेगी।  यह जीत भारतीय समाज में खास आदमी कि परिकल्पना को भी कमजोर करेगी।  अंततः ये जीत सही मायनो में सत्ता की बागडोर जनता के हांथों में सौंप कर उसे को शासक होने का एहसास कराएगी।  

आज भारत कि राजनीति करवट बदल रही है, भारत बदलने कि कोशिश कर रहा है, एक रौशनी जो प्राची से दिख रही है, उसके सूरज बनने का समय आरहा है।  आइये हमसब मिलकर, एक जुट होकर इस बदलाव के भागीदार बने।  अपने समाज को खुशहाल, समृद्ध और  देश को महान बनाने में अपना योगदान दें।  

वन्देमातरम ! जय हिन्द ! 

मंगलवार, 26 नवंबर 2013

ऐ मेरे देश के लोगों, ज़रा शर्म करो बेईमानो

मुम्बई में हुए आतंकी हमलों कि पांचवी वर्षगांठ पर देश के शहीदों को श्रद्धान्जली और देश के दलालों को सन्देश ! 




ऐ मेरे देश के लोगों,
ज़रा शर्म करो बेईमानो,
ये नहीं है तुम्हारी बपौती,
इसे तुम न खा के डकारों,

जब झुलस रहा थी गंगा,
जब खिसक रहा था हिमालय,
वो जान कि बाजी लगा कर,
जलते भारत को बचाया, 
तुम लूट रहे थे कोयला,
वो झेल रहे थे गोली,
उसने अपनी जान गवांई,
ताबूत भी न तूने छोड़ी,


ऐ देश के भ्रष्ट नेताओं,
जरा याद करो कुर्वानी,
ये देश नहीं है खजाना,
इसे बेच के तुम न खाओ, 
तुम मत भूलो भारत पर,
कितनो ने है प्राण गवाए,
वो भगत, सुभाष, औ शेखर,
अपना है सब कुछ लुटाये,

वो लक्ष्मी हो, या अहिल्या,
वो संदीप हो, या विक्रम,
मिटटी कि आन बचाने,
वो खेल गए दीवाने,
तुम बैठे थे बंगलों में,
वो खेल रहे शोलों पर,
दुश्मन जब घुस कर आया,
अपनों पर संकट आया,

वो बड़े वीर बलिदानी,
दुश्मन को धूल चटा दी,
हम सबको उसने बचाया,
चाहे अपनी जान गवां दी,
सीने पर खाके गोले,
वो खड़ा रहा अभिमानी,
सीने को ढाल बना दी,
पर देश कि आन बचा ली,

भारत का वीर वो बांका,
माता का कर्ज उतरा,
जब अंत घडी आई तो,
कह गया हमें है चलना,
बचके रहना देश के प्यारो,
कुछ शर्म करो नेताओ,
भारत है माँ तो तुम्हारी 
तुम बेंच इसे ना  खाओ,


तुम भूल न जाओ पल वो,
इस लिए है, बात बताई,
अबतो कुछ शर्म करो तुम,
अपनी माँ को बेच न खाओ,  

जय हिन्द ! जय हिन्द कि सेवा !

सोमवार, 25 नवंबर 2013

अनुरंजन झा कांग्रेस और बीजेपी कि कोख में "आप" नामक लकवा लगने से उत्पन्न हुए !



मित्रो, 

कांग्रेस और बीजेपी की जब से शादी हुई है, इनका प्यार इतना फल- फूल रहा है कि, एक के बाद एक दैत्य पैदा हो रहे हैं।  कभी कांग्रेस गर्भवती होती है, तो  सुखराम, कलमाड़ी और शीला पैदा होते हैं।  तो कभी बीजेपी के गडकरी और येदयुरप्पा जैसे सुपुत्र पैदा होते हैं। कभी- कभी तो ये दोनों मिल कर दूसरी पार्टियों जैसे डी. एम. के,  जे.एम्, एम्, और राष्ट्रीय जनता पार्टी जैसे दूसरी प्रजाति के दैत्यों से नाजायज सम्बन्ध बनाकर, शीबू, लालू, मधु कोड़ाराजा आदि जैसे भ्रष्ट संतानो को जन्म देते हैं। कई दशकों से ये काम-क्रिया  चलती आ रही है , जिसका पोषण बड़े व्यापारिक घराने बहुत बढ़िया तरीके से करते आ रहे है।  मीडिया भी अपनी भांट-गीरी के कर्तव्य को अच्छी तरह से निभाता आरहा है।  इन बरसाती कीड़ों कि संख्या इतनी बढ़ गई कि आम आदमी का हाल उस फासल से भी ज्यादा बुरा हाल था, जो बरसाती कीड़ो का शिकार होती है।  बरसात कि अवधि  भी ६५ साल से ऊपर निकल गई, कई बार जयप्रकाश जैसे कीट नाशक आये परन्तु ये दैत्य कीट उन्हें भी हजम कर डकार तक नहीं मारी।  

दो साल पहले आना हज़ारे और उनके साथियों ने कांग्रेस - बीजेपी के गर्भ में एक लात मारी, गर्भ में दर्द भी हुआ परन्तु गर्भ पात नहीं हो सका।  उसके बाद अरविन्द नमक "चपला" अन्ना से अलग हो कर अपना शक्ति संग्रह करने लगी।  देश के सभी उपेक्षित नागरिक जो इन टिड्डी दलों के लम्बे मौसम से त्राहि- त्राहि कर रहे थे, अपने खून का एक- एक कतरा दान कर "अरविन्द नामक "चपला" को वज्रा बना दिया। उस वज्र का नाम था "आम आदमी पार्टी" और काम था कोंग्रेस- बीजेपी के सह- गर्भ का गर्भपात करना।  पहले तो इस दैत्य दम्पति (कोंग्रेस- बीजेपी) ने अपने मद में चूर होने के कारन "आप" रुपी वज्र की शक्ति को नजर अंदाज़ किया, परन्तु जब इनके कुर्सी के पावं डगमगाने लगे तब ये इस वज्र शक्ति को नष्ट करने कि सोची। कई तरह से अस्त्र -शस्त्र जैसे विदेशी फंडिंग, सम्प्रदायवाद, खुपिया जांच आदि चलाये परन्तु वज्र का तेज तो कम नहीं हो सकता था वो और बढ़ता गया, क्योंकि वो तो आम आदमी के खून- पसीने से बना था।  

अब इस अति आपात काल की स्थिति में कांग्रेस-बीजेपी के समक्ष सहवास कर कोई दुर्दांत दैत्य पैदा करने के अलावा कोई चारा नहीं था, इन्होने सहवास कर "निचकेता" को पैदा किया, परन्तु वो भी प्रभाव  विहीन हो गया।  अबतक "आप" के तेज से उठे बबंडर से इनकी कुर्सी गिरने लगी.  इनसे कुछ नहीं सूझा फिर सहवास किया और " अनुरंजन झा" को गर्भ में धारण ही किया था कि "आप" रुपी वज्र इनकी कोख में जा लगा, और गर्भपात हो गया, वह अपूर्ण दैत्य शिशु "अनुरंजन" अपनी माया फैला कर वज्र का तेज नष्ट  करने कि कोशिश तो बहुत की, परन्तु अपूर्ण गर्भ, वो भी अधर्म का, धर्मं के तेज को कैसे नष्ट कर सकता था । उसका भी वही हाल हुआ जो अधर्मियों का होता है, अभी वेंटिलेटर में हैं परन्तु जैसे ही मानहानि के मुक़दमे का फैसला आएगा बिचारा "नरकवासी" हो जायेगा।  और अब कॉंग्रेस - बीजेपी का गर्भ भी क्षत -विक्षत हो गया है, इसलिए सहवास कर नया दैत्य जन्मदेना  भी असम्भव है।  बेचारे दैत्य दम्पति ....... 

जब तक इस "चपला" से साथ आम आदमी का खून- पसीना जुड़ा हुआ है, इसे दैत्य नाशक "वज्र" पद से कोई हटा नहीं सकता।  

वन्देमातरम ! 

सोमवार, 21 अक्तूबर 2013

"आप" की नजरों ने समझा, साथ के काबिल मुझे !



"आप" की नज़रों ने समझा, साथ के काबिल मुझे।  
कदमो की आहट बदल जा, दिख रही मंजिल मुझे।

हाँ हमे मंजूर है, बदलाव का ये सिलसिला,
कह रही है हर नजर, ऐ अरविन्द शुक्रिया।
हंस के देश की क्रांति में, कर लिया शामिल मुझे।
"आप" की नजरों ने समझा … 

देश की जनता की अब, असली मंजिल स्वराज है।  
मैं क्यों भ्रष्टों से डरूं, मेरे संग जो "आप" हैं।। 
कोई इन दुष्टों से कह दे, मिलेगा अब हक़ मुझे। 
"आप" की नजरों ने समझा …

पड़ गई मुझ पर अभी, क्रांति की परछाईयाँ।  
हर तरफ अब गूंजेगी, स्वराज की शहनाइयाँ।। 
कोई पैसे वालों से कह दे, मिल गया मकसद मुझे। 
"आप" की नजरों ने समझा …

"आप" ही सेवक मेरे, मेरे शासक "आप" हैं।  
आपने समझा दिया, असली राजा  कौन है।।
एक -एक नागरिक में अब, दिख रहा शासक मुझे।  
"आप" की नजरों ने समझा …

मेरे रग - रग  में बहे, देश प्रेम की गंगा।  
आओ हम मिल कर करे, देश पर कुर्बानिया।। 
भारत माँ की चरणों में, दिख रही जन्नत मुझे।  
"आप" की नजरों ने समझा …

वन्देमातरम ! 

मंगलवार, 8 अक्तूबर 2013

सिर्फ कोसते रहने से कुछ नहीं होता



सिर्फ कोसते रहने से कुछ नहीं होता,
अगर दम है तो कुछ करके दिखाओ यारो,

सिस्टम ख़राब है ये तो सब कहते हैं,
साफ़ करना है तो झाडू उठाओ यारो,

घर में बैठ कर बाते बनाना तो आसान है,
जरा सड़कों पर निकल कर देखो यारो,

अब भी नहीं जागे तो सोते ही रहोगे,
सूरज दिख जाएगा जरा आँखे तो खोलो यारो,

राष्ट्र और राजनीति करवटे ले रहे हैं,
जरा तुम भी तो हाथ- पैर हिलाओ यारो, 

"आप" की मशाल जलती है, जलती ही रहेगी,
बस एक दीप तुम भी जलाओ यारो,


जय हिन्द ! 

बुधवार, 11 सितंबर 2013

लाशों का ये खेल !




सत्ता का ये नाच, न जाने कभी थमेगा। 
बन बैठा  जो  काल, ये राजा कभी मिटेगा।।

बदलेगा तो बिलकुल, लेकिन कब बदलेगा।
त्रस्त हुए हैं लोग, राष्ट्र भी व्याकुल है अब।।  

भाई बना है काल, पडोसी दुश्मन है अब।  
कुर्सी का है खेल, मेल जाने कब होगा ।।

लाशों का ये खेल, न जाने कभी रुकेगा। 
सत्ता की ये हवस, न जाने कभी मिटेगी।।

खून बहा जो आज, न जाने कब सूखेगा।
भेड़ियों का ये राज, न जाने कब टूटेगा।।

चलो आज फिर देश जलाएं !


भारत के कई क्षेत्रों में समय - समय पर  होने वाली सम्प्रदैयिक हिंसा और मुज्जफ्फर नगर की तात्कालिक घटना पर  देश के राजनेताओं को समर्पित  एक व्यंग। 




चलो आज फिर देश जलाएं। 
सत्ता के खातिर जनता का खून बहायें।। 
धधक उठे ये राष्ट्र पुनः।
चलो कोई ऐसा जाल बिछाएं।। 

चलो लगायें आग पुनः।
राजनीति पकाएं।।
शव से बने कबाब।  
लहू से आटा गूंथे।।

आंसू की हो मदिरा। 
रुदन संगीत सजाएँ।।
बाला बने प्रशासन।   
उससे हाला बंटवाएँ।. 

न्याय बने पाजेब ।
कानून को नाच नचायें।।
संविधान भी लगे बिलखने। 
कोई ऐसा राग बजाएं।। 

भड़काकर लोगों को।  
उनके घर में आग लगायें।।
हर प्रान्त बने कश्मीर।
मुजफ्फ़र नगर बनाये।। 

सत्ता के गलियारों में।  
कुछ ऐसा जाल बिछाये।। 
कुर्सी का यह खेल। 
चलो फिर देश जलाएँ।।  

चलो आज फिर देश जलाएं। 
सत्ता के खातिर जनता का खून बहायें।। 
धधक उठे ये राष्ट्र पुनः।
चलो कोई ऐसा जाल बिछाएं।। 

सोमवार, 26 अगस्त 2013

बेटी के बाप का डर !




दो दिन पहले मेरी गर्भवती पत्नी का अल्ट्रासाउंड हुआ और डॉक्टर ने ये बताया की मेरे घर में नन्ही परी का आगमन हो रहा है।  मैं और मेरी पत्नी खुश थे, हम लोग अपनी बिटिया के लालन - पालन की योजनाये बनाने लगे।  कई बार मैं और मेरी पत्नी आपस में तर्क भी करते की बेटी को ऐसे बड़ा करना है, वैसे बड़ा करना है।  कुछ समय बाद हम सो गए, रात में अचानक मेरी नीद खुली, न जाने क्या डर सताने लगा अपनी नन्ही पारी की सुरक्षा को लेकर।  चारो तरफ लडकियों के खिलाफ हो रही हिंसा, और उससे जुडी बाते एक-एक करके मेरे मन में आने लगीं।  कभी निर्भया का ख्याल आया,  कभी फलक का, कभी मुंबई के फोटो पत्रकार का।  मैं डर रहा था, मैं अपनी नन्ही परी को कैसे सुरक्षित रखूंगा, कहीं उसके साथ कोई अनहोनी न हो जाये।  तरह -तरह के डरावने ख्याल आने लगे, मैं सोचने लगा क्या मैं अपनी बेटी को सुरक्षित नहीं रख सकता ? क्या मेरे हाथ में कुछ नहीं है? ऐसा क्या है की महान कहे जाने वाले इस देश में आज बेटियां सुरक्षित नहीं है?    कई बार सोचता दक्षिण कोरिया से भारत वापस ही न जाऊं यहाँ ज्यादा सुरक्षा है। फिर सोचता अपनी मातृभूमि कैसे छोड़ दूं।  मैं रात भर सोचता रहा जब सोया तो सपने में भी वही देखा।  मेरी बिटिया को कोई राक्षस छीने  ले जा रहा है, मैं उसे बचने के लिए दौड़ रहा हूँ,  पर  उसतक पहुँच नहीं पा रहा हूँ, रो रहा हूँ, गिड़गिडा रहा हूँ।  अचानक मेरी ही चीख से मेरी नीद खुली आंसू से तकिया भींग चुका  था।  

तबतक मेरी पत्नी की नीद भी खुल चुकी थी, मैं उसे ऐसे समेट कर छुपाने लगा जैसे अपनी बेटी को इस संसार की नज़रों से छुपाना चाहता हूँ।  मेरी आँखों से आंसू की धार रुकने का नाम नहीं ले रही थी।  बेटी की सुरक्षा को लेकर मन व्यथित था।  असहाय था।  

फिर अचानक सोचने लगा, जब आज मैं उस बेटी के लिए इतना चिंतित हूँ, जिसका अभी जनम तक नहीं हुआ, तो उन माँ-बाप के ऊपर क्या बीत रही होगी जिनकी बेटियों के साथ सही में दुर्घटना घटित होती है।  इस सोच मात्र से मेरी रूह कॉप जाती है।  

तो क्या हम अपने देश को कन्याओं के लिए सुरक्षित नहीं बना सकते? क्या हम यूँ ही कन्याओं को कटते पिसते देखते रहेंगे और कुछ नहीं करेंगे? 

क्या हमारी सरकार, हमारा प्रशासन, हमारा समाज इन परियों की रक्षा करने में समर्थ नहीं है? या करना नहीं चाहता?   


इन सब का उत्तर कभी हाँ में तो कभी न में मिला 



फिर कवि के हृदय से ये पंक्तिया फूट पड़ी:


करें सुता को आज सुरक्षित 
एक भी दुहिता ना हो पीड़ित,
सारी बिटियाँ तो हैं तेरी 
फिर काहे का भेद रे पगले,

हर -एक बेटी की चीखों का,
भरो दर्द तुम अपने हिरदय,
गला काट दे  उन दत्यों का,
शपथ है तेरी माँ की पगले,

गर है मानव चेतन तुझमे,
रक्त धार है बहती तुझमे 
बेटी को कर निर्भय पगले,
दैत्य नहीं तू नर है पगले, 

बेटी तो होती है बेटी, 
अपनी हो या और किसी की,
कर हर बेटी का सम्मान,
पशु न बन तू ऐ इंसान, 


हे माँ ! 

सोमवार, 19 अगस्त 2013

इस रक्षाबंधन के पावन पर्व पर एक बहन का राष्ट्र और भाइयों से आह्वान !



हे राष्ट्र मेरे, तू भ्रात मेरा ।
तुझको अखण्ड वर देती हूँ ।।
हूँ भगिनि तेरी, मैं जननी भी ।
निज रक्षा का वर लेती हूँ ।।

ये रक्षा बंधन है पुनीत ।
गरिमा इसमें भर देती हूँ ।।
इस राखी के बदले तुझसे ।
निज रक्षा का प्रण लेती हूँ ।।

हैं भटक गए कुछ बन्धु मेरे ।
उनका आवाहन करती हूँ ।।
तुम हो रक्षक, ना की भक्षक ।
हो मर्यादित, मैं कहती हूँ ।।

मैं हूँ सबला, ना की अबला ।
ममता से, जग को भरती हूँ ।।
गर चुनी नहीं, तूने सही राह ।
चंडी का रूप, भी धरती हूँ ।।

रक्षाबंधन के अवसर पर ।
आज शपथ मैं लेती हूँ ।।
जन्मभूमि, और कन्या की ।
भयमुक्ती का प्रण लेती हूँ ।।

गुरुवार, 1 अगस्त 2013

आपकी दिल्ली




ना  पंजे, ना कमल की बारी,
"झाड़ू" लगेगी अबकी बारी,
       
ना नेता, ना चोर -उचक्के,
लगेंगे अब तो "आप" के छक्के,  
             
ना  जाति, ना  धर्मं के टोटके,
भेजेंगे हम "आप" को चुनके,
            
ना "शीला" की, ना लीला की, 
दिल्ली होगी आप सभी की,
             
होगी सत्ता आपके पास,
नेता सेवक, जनता-राज,

वन्दे मातरम !!

मंगलवार, 30 जुलाई 2013

स्वराज यात्रा - एक खोज स्वदेश की !



लोकमान्य तिलक, महात्मा गाँधी, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुभाषचंद्र बोष आदि स्वतंत्रता सेनानियों के साथ करोड़ों भारतीयों ने एक सपना देखा था।  वह सपना था " स्वराज",   एक ऐसा तंत्र,  ऐसी व्यवस्था जहाँ सब का सम्मान हो, सबका कल्याण हो, सबका उद्धार हो, कोई दुखी न हो, कोई पीड़ित न हो, और दुसरे अर्थों में कोई पीड़क भी न हो, आपस में भाई चारा रहे और सब खुशहाल रहे। स्वतंत्रता संग्राम का उद्देश्य केवल अंग्रेजो को भगाकर राजनीतिक आजादी पाना नहीं था, बल्कि उस आजादी को गाँव, मोहल्ले, घर तक, तथा एक - एक व्यक्ति तक पहुँचाना था।एक ऐसी आजादी जो हर किसी का जन्म से मौलिक अधिकार है. जिसका मूल है :


 सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयः
 सर्वे भद्रणिपश्यन्तु मा कश्चिद्दुःख भाग भवेत् 




मेरे प्यारे भारतवंशियों हमने अंग्रेजों को अवश्य भगा दिया परन्तु अभी तक हमें स्वराज नहीं मिला, बल्कि वह कुछ सत्ता लोभी व्यक्तियों के घर बंधक बना हुआ है, और वो हमारे जन्म सिद्ध अधिकार को बंधक बनाये हुए हैं । जरा सोचिये !  क्या उस व्यक्ति को स्वराज मिला है, जिसकी मृत्यु भूख से हो रही है? क्या उस नारी को स्वराज मिला है जो अभी भी घर में बंधक बनी हुई है? क्या उस कन्या को स्वराज मिला है, जिसके खिलाफ यौन हिंसा होती है? जिसे तेज़ाब से जलाकर मार दिया जाता है? क्या उस व्यक्ति को स्वराज मिला है जो दिन भर मेहनत करके भी अपना पेट तक नहीं भर सकता? क्या उस व्यक्ति को स्वराज मिला है जो इलाज न होने से मर जाता है? क्या उन लोगों को स्वराज मिला है जो या तो शिक्षा नहीं प्राप्त कर पाते या शिक्षित होने के बाबजूद भी दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं? क्या उसे स्वराज मिला जिसकी लिंग, जाति  ,और संप्रदाय के नाम पर बलि चढाई जाती है और बलि देने वाले चैन की बंसी बजाते रहते हैं ?    

नहीं किसी को स्वराज नहीं मिला !! अगर स्वराज मिला होता तो हजारो कन्याओं,  बच्चों का यौन शोषण कर अपराधी खुले में न घूम रहे होते, लोग भूख से न मरते, सैकड़ों परियोंजनाओं के नामपर नेता अपना घर नहीं भरते !  सत्ता - शासकों के शयन ग्रहों से शुरू होकर, व्यापारिक घरानों की बैठक कक्षों तक नहीं सिमट गई होती ! और ईमानदार अधिकारीयों को पीड़ित नहीं किया जाता, उनकी बलि नहीं चढ़ाई जाती ! 



दुर्भाग्य से आज  हमारे देश की हालत उस जंगल जैसी हो गई है जिसमे बड़ा जानवर अपने से छोटे को कभी भी शिकार बना सकता है, कोई रोक टोक नहीं है। मैं तो मानता हूँ कि  यह कहना भी अतिसंयोक्ति नहीं होगी की हालत  उस जंगल से भी बदतर है, क्योंकि कुछ जानवर स्वाभाव से ही उग्र होते हैं, पर वो भी भ्रष्टाचार कर धन नहीं कमाते, बच्चों के भोजन में जहर नहीं मिलते, दवाइयों के नाम पर जहर नहीं बेचते । आप सोच रहे होंगे की इस हालत के जिम्मेदार नेता, बड़े व्यापारिक घराने या नौकर शाह हैं,… आप बिलकुल सही सोच रहे हैं !!…परन्तु ये अधा सच है। पूरा सच तो यह है कि इसमें हमलोग 'सामान्य नागरिक'  भी उतने ही जबाबदेह हैं.…  जिनका काम सिर्फ ऑफिस जाना और अपना निजी परिवार के साथ समय बिताना ही है, ऐसे लोग अपराध होते तो नहीं देख सकते,  इसलिए अपनी आंखे बंद कर लेते है । वोट इस आधार पर करते हैं की प्रत्यासी उनकी जाति , या धर्म का है।  जरा सोचिये क्या ये सही है??? गलत काम का मूकदर्शक बने रहना भी तो अपराध है ! और मेरी नजर में आज देश की,  "जिसे हम प्यार से माँ कहते हैं" जो हालत है,  वो मूकदर्शकों की वजह से ज्यादा है।  क्या इसी केलिए हमारे पुरखों ने हँसते-हँसते बलिदान दिया था? भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुभाषचंद्र बोष आदि ने क्या ऐसे ही भारत के लिए अपना सबकुछ न्याव्छावर किया था? नहीं ! … बिलकुल नहीं…! 



मेरे प्यारे साथियों अगर आपसब ये जानते हैं और मानते भी  हैं तो आइये हम सब मिलकर "पूर्ण स्वराज" का सपना साकार करें। आपस के सभी मतभेद भुलाकर कदम से कदम मिलाएं और अपने देश को खुशहाल बनाने में अपना योगदान दें…!! ताकि हम गर्व से कह सके की "हाँ हम एक महान भारत माँ की संतान हैं" और अपने देश, अपने लोगों का  कल्याण ही हमारे लिए सर्वोपरि है। दोस्तों आज कई दशकों के बाद अरविन्द केजरीवाल जी  के नेत्रेत्व में सारा देश धीरे- धीरे संगठित हो रहा है… स्वराज की और एक कदम बढाने की कोशिश कर रहा है ।  आइये हम सब अपने सभी पूर्वाग्रह भुलाकर, सभी कुंठाएं भुलाकर इस स्वराज की यात्रा में शामिल हों ! 


इस लम्बी यात्रा की एक कड़ी का आयोजन हमारे भारतीय साथी अमेरिका में ३ अगस्त से १८  अगस्त तक कर रहे हैं, आइये हम सब इसमें अपना सहयोग देकर, गौरवान्वित हों !! 

इस "स्वराज यात्रा" के बारे में अधिक जानकारी के लिए देखें http://www.swarajyatra.com/ 


जय हिन्द !! वन्देमातरम !!

बुधवार, 26 जून 2013

मोदी की महिमा !



मोदी तुम हो पूरे ढोंगी,
खाली पूंगी खूब बजाओ,
करो न कुछ पर ढोल बजाओ,
हिन्दू-मुस्लिम को लडवाओ,
फेक इनकाउंटर तुम करवाओ,
अदनी, अम्बानी तुम्हरे चेले,
फ्री में है जमीन दिलवाते,

तुम हो रेम्बो, सुपर मैन तुम,
तुमने दिव्यद्रष्टि है पाई,
उत्तराखंड में बाढ़ जब आई,
तुमने पहिचाने गुजराती,
चुन-चुन कर एक-एक गुजराती,
१५००० की जान बचाई,

हो प्रपंच में महादेव देव तुम,
ढोंगी के हो तुम हरिराई 
तुमहो देवराज कांडों के,
कैसी अद्भुत शक्ति है पाई,
मूढों  की सेना तुम पालो,
पड़े लिखों को भी बहकाओ,
तुमतो मायावी हो फिर भी,
लोकायुक्त से डरो क्यों भाई,  

तुम हो शनि देव के आजा,
बन बैठे भष्मासुर राजा,
बड़े बड़ों की दुर्गति करदी,
तुम्हरी कुदृष्टि पड़ी जब भाई,
R.S.S. को मिटा दिया,
बने चीफ गुजरात के तुम जब,
संजय हों, या हों अडवाणी,
तुमने सबकी बैण्ड बजादी,


तुम्हारी महिमा पापी गावें,
द्वेष इर्षा जो हैं पालें,
तुम्हारी स्तुति जिनने गाई,
नरक गए ज़िंदा ही भाई,
बाबू बजरंगी ने स्तुति गाई,
जेल गए और आफत आई,
माया कोटनानी थी भगतन,
मृत्यु दंड की बारी आई,


जय जय मोदी...जय जय मोदी...
जपते.. जपते... शामत आई !!

शुक्रवार, 21 जून 2013

"सिलिकॉन लोक" के वासी !


शिक्षित,  स्वकेन्द्रित, और देश विमुख, भारत माँ की संतानों को सप्रेम भेट !!




सब मृतवत हैं, सब विस्मित हैं। 
है प्राण नहीं अब बाकी ।। 
भर उदर स्वयं का, सुप्त हृदय।
कहते वो भी हैं भारत वासी ।।

सुनलो मृतवत, द्वि-पद डंगर।
"सिलिकॉन लोक" के वासी ।।
गर रहोगे सोते, खुद में खोके ।
खो दोगे जो भी है बाकी ।।

माँ रही पुकार, समय रन का है।
बना शत्रु उसका ही सूत है।।
उठो सजग हो, लड़ो अभय।
बलिदान करो, अब की बारी।।  


जय हिन्द !! 


सोमवार, 13 मई 2013

माया, मुलायम और नव- मनुवाद



भारत में तथाकथित मनुवाद को जाति व्यवस्था का द्योतक मन जाता है, और ख़ास कर पिछड़ी जातियां  मनु को घृणा की दृष्टि से देखती हैं। उन्हें लगता है या बताया गया है की उनके शोषण का एक मात्र उत्तरदाई मनु है। स्वतंत्रता के पहले से लेकर अबतक कई महापुरुषों ने अपने तरीके से सभी जातियों में समानता लाने का प्रयत्न किया, उदाहरनार्थ राजाराम मोहन राय, स्वामी दयानंद सरस्वती,  गुरु घासीदास, महात्मा ज्योतिराव फुले, महात्मा गाँधी  और डॉ अम्बेडकर इत्यादि ने महत्वपूर्ण योगदान दिए। अभी उस असमानता को मिटाने की तथाकथित लड़ाई चल रही थी की अचानक आज के दलित समाज के दो मसीहों (माया-मुलायम) ने एक नई- पिछड़ी जाति की पहचान की, और वो है " ब्राह्मण"।  कल भारत की जाति व्यवस्था के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण दिन था।  कल भारत से संसदीय चुनावों ले लिहाज से सबसे महत्वपूर्ण राज्य "उत्तर प्रदेश" में दो जगहों पर एक साथ " ब्राह्मण सम्मलेन" आयोजित किये गए। एक समाजवादी पार्टी के द्वारा दूसरा, बहुजन समाज पार्टी के द्वारा। दोनों पार्टियों ने ब्राम्हणों को उनका तथाकथित अधिकार दिलाने के वादे लिए, और इस बात पर भी जोर दिया की उनके अलावा ब्राम्हण समुदाय का कोई हितैसी नहीं है, और यह भी माना की स्वतंत्रता के बाद से ब्राम्हण समाज की उपेक्षा की गई है ।  ये समाचार सुनते ही मुझे एक नारा याद आया लगभग एक दशक पहले बहुजन समाज पार्टी ने दिया था "तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार" अर्थात ब्राम्हणों, वैश्यों और क्षत्रियों को जूते मारो। उस समय ये सुनकर एक ब्राम्हण परिवार से होने के नाते  मुझे बहुत बुरा लगा था।  मुझे ये नहीं पता था की ये सिर्फ सत्ता पाने के लिए किया जा रहा है। इस नारे का बहुत असर हुआ और बहुजन समाज पार्टी एक मजबूत पार्टी के रूप में उभरी, मायाजी को एक-दो बार मुख्यमंत्री की कुर्सी छूने  का अवसर भी मिला, परन्तु सत्ता के पूर्ण सुख से अभी वो वंचित थी, तभी सतीशचंद्र मिश्र जैसे उनसे सेवक ने ब्राम्हणों को मूर्ख बना कर उनका वोट हथियाने की योजना बनाई और माया जी को पांच वर्ष तक सत्ता का सुख भी प्राप्त हुआ। दूसरी तरफ मुलायम जो सत्ता में अपने सुपुत्र को पहुचाने के लिए लालायित थे, और इसके सिर्फ अल्पसंख्यक वोट पर्याप्त नहीं थे, उन्होंने पदोन्नति में आरक्षण के विरोध का ढोंग किया और ब्राम्हणों और अन्य उच्च वर्ग का मत प्राप्त किया। अब दोनों नेताओं की नजर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर है। और उत्तरप्रदेश की ८० संसदीय सीटों में ब्राम्हण मतदाता १६ % हैं जो की कम से कम २५ सीटों पर सीधे तौर पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं। ऐसे में जातीय समानता की बात (आदर्श) किसे याद रहती है। दोनों नेताओं को दलितों और अल्पसंखयकों के बाद ब्राम्हण शोषित नजर आने लगे और दोनों में उनका उद्धार करने की होड़ लग गई है। अब इन लोगों से कौन पूछे की अचानक जूतों की जगह शंख की ध्वनि क्यों गूँज रही है? ब्राम्हणों और अन्य उच्च जातियों को जूते मारने वाले लोगों को उनका सम्मान करने की क्यों पड़ी है ? बाबा आंबेडकर के अनुयाइयों को परशुराम जी की जयंती इतनी महत्वपूर्ण क्यों लगने लगी है? इसका ईमानदार उत्तर वो नहीं दे सकते मैं देता हूँ।

मैं ये मानता हूँ की इस जाति-भेद का जन्मदाता कोई एक  नहीं, बल्कि ऐसे सभी लोग हैं जो विभिन्न वर्गों को आपस में लड़ाकर सत्ता पाना चाहते हैं या सत्ता में बने रहना चाहते हैं, और हम लोग भी हैं जो सब बातें भूल कर सिर्फ जाति और धर्म के आधार पर अपना वोट देते हैं।  ये नेता कभी-किसी काम को ईमानदारी से नहीं करते सिर्फ चुनावी गणित के आधार पर अपना रंग बदलने के अलावा। इनके सांख्यकी विशेषज्ञ ने जैसे ही ये बताया की इस समूह, जाती या संप्रदाय, का प्रभाव उनकी सत्ता पर पड़ सकता है, उसे अपना बाप बनाने का ढोंग करने लगते हैं। और नए समाज में वोट कोई स्वतंत्र और ईमानदार निर्णय नहीं होता बल्कि "वोट बैंक " होता है। अब आप खुद समझ सकते हैं की अगर आप "वोट बैक" हैं तो फिर आप एक सजीव नहीं बल्कि एक वास्तु हैं, और वो भी नेताओं के उपभोग की, जिसे वो जब चाहें, जैसे चाहें  अपनी मर्जी से उपभोग कर सकते हैं। 

इन्हें न पिछड़ों की चिंता है, न अगड़ों की, इन्हें अगर कुछ चिंता है तो अपनी कुर्सी की। न ये आंबेडकर का सम्मान करते न परशुराम का ये सिर्फ सत्ता लोभी है। जिस जातीय असमानता की दीवार मिटाने के तथाकथित  उद्देश्य से इन्होने पार्टी बनायीं, अपनी सत्ता के लिए आज असमानता की और गहरी खाई खोद रहे हैं, और हमें आपस में  लड़ाकर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं। अगर हम सतर्क नहीं रहे और इनके पीछे भेड़ों की तरह चलते रहे तो यह नव-मनुवाद (मुलायम और माया) तथाकथित मनुवाद से ज्यादा खतरनाक होगा और ये सत्ता लोभी हमें आपस में शांति और सौहार्द्य से रहने नहीं देंगे। 

अतः हमें चाहिए की हम अतीत को भुलाकर, जाति और संप्रदाय को सत्ता की सीढियां बनाने वाली और सत्ता पाने के बाद भ्रष्टाचार से आमजनता का शोषण करने वाली इन पार्टियों और नेताओं  के मुह में ऐसा चांटा मारें की ये दुबारा हमें लड़ाने और शोषण करने के बारे में सोच भी न सकें। 

जय हिन्द !!

शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013

हे ! राम आ जाओ

मेरे आराध्य एवं आदर्श मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्री रामचंद्र जी के जन्मदिन पर भावनात्मक काव्यांजलि !!



बाल राम तुम आओ,
नैनन में बस जाओ,

धूल धूसरित तन है,
निर्मल-निश्चल मन है,

ठुमक चाल, तेज भाल।
कौशल्या के तुम लाल।

तुम पर ब्रम्हांड बसे। 
दशरथ के प्राण बसे।।

घुघराले केशों पर।
स्वर्ण मुकुट हो साजे।।

चंचल दो नयन भोले।
जीवन के पास तोड़ें।।

दिवस, माह बीत गए।
साल आयें और जाए।।

मेरी अँखियाँ उदास।
दर्शन की है चाह।।

तोतली-मीठी बोली से।
मुझे को तुम लो पुकार।।

अपने इस दीन की।
सुन लो अब तुम पुकार।।

कर के कुछ बाल हठ। 
कर दो मेरा उद्धार।।

हे ! राम आ जाओ !  मेरे नाथ आजो !!