मंगलवार, 30 जुलाई 2013

स्वराज यात्रा - एक खोज स्वदेश की !



लोकमान्य तिलक, महात्मा गाँधी, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुभाषचंद्र बोष आदि स्वतंत्रता सेनानियों के साथ करोड़ों भारतीयों ने एक सपना देखा था।  वह सपना था " स्वराज",   एक ऐसा तंत्र,  ऐसी व्यवस्था जहाँ सब का सम्मान हो, सबका कल्याण हो, सबका उद्धार हो, कोई दुखी न हो, कोई पीड़ित न हो, और दुसरे अर्थों में कोई पीड़क भी न हो, आपस में भाई चारा रहे और सब खुशहाल रहे। स्वतंत्रता संग्राम का उद्देश्य केवल अंग्रेजो को भगाकर राजनीतिक आजादी पाना नहीं था, बल्कि उस आजादी को गाँव, मोहल्ले, घर तक, तथा एक - एक व्यक्ति तक पहुँचाना था।एक ऐसी आजादी जो हर किसी का जन्म से मौलिक अधिकार है. जिसका मूल है :


 सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयः
 सर्वे भद्रणिपश्यन्तु मा कश्चिद्दुःख भाग भवेत् 




मेरे प्यारे भारतवंशियों हमने अंग्रेजों को अवश्य भगा दिया परन्तु अभी तक हमें स्वराज नहीं मिला, बल्कि वह कुछ सत्ता लोभी व्यक्तियों के घर बंधक बना हुआ है, और वो हमारे जन्म सिद्ध अधिकार को बंधक बनाये हुए हैं । जरा सोचिये !  क्या उस व्यक्ति को स्वराज मिला है, जिसकी मृत्यु भूख से हो रही है? क्या उस नारी को स्वराज मिला है जो अभी भी घर में बंधक बनी हुई है? क्या उस कन्या को स्वराज मिला है, जिसके खिलाफ यौन हिंसा होती है? जिसे तेज़ाब से जलाकर मार दिया जाता है? क्या उस व्यक्ति को स्वराज मिला है जो दिन भर मेहनत करके भी अपना पेट तक नहीं भर सकता? क्या उस व्यक्ति को स्वराज मिला है जो इलाज न होने से मर जाता है? क्या उन लोगों को स्वराज मिला है जो या तो शिक्षा नहीं प्राप्त कर पाते या शिक्षित होने के बाबजूद भी दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं? क्या उसे स्वराज मिला जिसकी लिंग, जाति  ,और संप्रदाय के नाम पर बलि चढाई जाती है और बलि देने वाले चैन की बंसी बजाते रहते हैं ?    

नहीं किसी को स्वराज नहीं मिला !! अगर स्वराज मिला होता तो हजारो कन्याओं,  बच्चों का यौन शोषण कर अपराधी खुले में न घूम रहे होते, लोग भूख से न मरते, सैकड़ों परियोंजनाओं के नामपर नेता अपना घर नहीं भरते !  सत्ता - शासकों के शयन ग्रहों से शुरू होकर, व्यापारिक घरानों की बैठक कक्षों तक नहीं सिमट गई होती ! और ईमानदार अधिकारीयों को पीड़ित नहीं किया जाता, उनकी बलि नहीं चढ़ाई जाती ! 



दुर्भाग्य से आज  हमारे देश की हालत उस जंगल जैसी हो गई है जिसमे बड़ा जानवर अपने से छोटे को कभी भी शिकार बना सकता है, कोई रोक टोक नहीं है। मैं तो मानता हूँ कि  यह कहना भी अतिसंयोक्ति नहीं होगी की हालत  उस जंगल से भी बदतर है, क्योंकि कुछ जानवर स्वाभाव से ही उग्र होते हैं, पर वो भी भ्रष्टाचार कर धन नहीं कमाते, बच्चों के भोजन में जहर नहीं मिलते, दवाइयों के नाम पर जहर नहीं बेचते । आप सोच रहे होंगे की इस हालत के जिम्मेदार नेता, बड़े व्यापारिक घराने या नौकर शाह हैं,… आप बिलकुल सही सोच रहे हैं !!…परन्तु ये अधा सच है। पूरा सच तो यह है कि इसमें हमलोग 'सामान्य नागरिक'  भी उतने ही जबाबदेह हैं.…  जिनका काम सिर्फ ऑफिस जाना और अपना निजी परिवार के साथ समय बिताना ही है, ऐसे लोग अपराध होते तो नहीं देख सकते,  इसलिए अपनी आंखे बंद कर लेते है । वोट इस आधार पर करते हैं की प्रत्यासी उनकी जाति , या धर्म का है।  जरा सोचिये क्या ये सही है??? गलत काम का मूकदर्शक बने रहना भी तो अपराध है ! और मेरी नजर में आज देश की,  "जिसे हम प्यार से माँ कहते हैं" जो हालत है,  वो मूकदर्शकों की वजह से ज्यादा है।  क्या इसी केलिए हमारे पुरखों ने हँसते-हँसते बलिदान दिया था? भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुभाषचंद्र बोष आदि ने क्या ऐसे ही भारत के लिए अपना सबकुछ न्याव्छावर किया था? नहीं ! … बिलकुल नहीं…! 



मेरे प्यारे साथियों अगर आपसब ये जानते हैं और मानते भी  हैं तो आइये हम सब मिलकर "पूर्ण स्वराज" का सपना साकार करें। आपस के सभी मतभेद भुलाकर कदम से कदम मिलाएं और अपने देश को खुशहाल बनाने में अपना योगदान दें…!! ताकि हम गर्व से कह सके की "हाँ हम एक महान भारत माँ की संतान हैं" और अपने देश, अपने लोगों का  कल्याण ही हमारे लिए सर्वोपरि है। दोस्तों आज कई दशकों के बाद अरविन्द केजरीवाल जी  के नेत्रेत्व में सारा देश धीरे- धीरे संगठित हो रहा है… स्वराज की और एक कदम बढाने की कोशिश कर रहा है ।  आइये हम सब अपने सभी पूर्वाग्रह भुलाकर, सभी कुंठाएं भुलाकर इस स्वराज की यात्रा में शामिल हों ! 


इस लम्बी यात्रा की एक कड़ी का आयोजन हमारे भारतीय साथी अमेरिका में ३ अगस्त से १८  अगस्त तक कर रहे हैं, आइये हम सब इसमें अपना सहयोग देकर, गौरवान्वित हों !! 

इस "स्वराज यात्रा" के बारे में अधिक जानकारी के लिए देखें http://www.swarajyatra.com/ 


जय हिन्द !! वन्देमातरम !!