शुक्रवार, 27 नवंबर 2015

एक स्नेह पत्र आमिर भाई के नाम !




आमिर भाई सलाम, कई दिनों से टीवी पर खेल देख रहा हूँ असहिष्णुता बनाम सहिष्णुता, लिखना तो नहीं चाहता था पर क्या करूँ एक भारतीय हूँ, अदना ही सही,  खुद को रोक नहीं सका।  अतः आपको स्नेह पात्र लिख रहा हूँ।  आशा हैं किसी के भक्त मुझे किसी और के भक्त का तमगा नहीं चिपकायेंगे। (आजकल भक्ति और भक्तो का मौसम है  हर तरफ इसलिए ऐसा लिखना पड़ा) । 

आमिर भाई ! आप तो प्रवीण तोगड़िया, ओवैसी, साक्षी महाराज, आज़म खान, राज ठाकरे  के  मददगार निकले। भाई आप अच्छे एक्टर हो आपको भारत ने नहीं बनाया, आपने इसे बनाया है, मैं सहमत हूँ।  लोग आपको फॉलो करते हैं, आपकी बात सुनते हैं, इसलिए आपकी कुछ जवाबदारी भी है उसी देश के प्रति जिसे आपने बनाया है।  
पर आपतो बुध्धू निकले।  आशा है आपकी वीआईपी सुरक्षा में कोई कमी नहीं हुई होगी इन कुछ महीनो में, और आप सुरक्षित होंगे। 

मैं अभी ओमान (एक मुस्लिम देश में हूँ ) शिक्षक हूँ, जैसे आप एक अच्छे एक्टर हैं वैसे मैं भी एक अच्छा टीचर हूँ, ऐसा मेरे स्टूडेंट्स मानते हैं, सहकर्मी भी मानते हैं, ये बात अलग है की मैं पॉपुलर नहीं हूँ, मेरी फ्रेंड फॉलोइंग नहीं है, शायद टीवी स्क्रीन में नहीं आता इसलिए। 

दो दिन पहले मेरे कॉलेज के बड़े अधिकारी  ने मुझसे एक विनम्र रिक्वेस्ट की " डॉ शुक्ला ! मैं भी हिन्दू हूँ, रोज पूजा करता हूँ, पर आप अपने माथे पर चन्दन लगते हैं, उचित होगा इसे न लगाएं, होसकता है यहाँ के लोगों की भावनाए आहत हों, और  किसी ने आपको टोक दिया तो आपको बुरा लगेगा " मैंने उनका सुझाव  मान लिया, और उनसे वादा  किया की मेरा चन्दन किसी को नहीं दिखेगा। 

अभी तक मैंने कोई स्टेटमेंट नहीं दिया की ओमान असहिष्णु है, और देता भी तो कोई सुनता नहीं, क्योंकि लाइट, कैमरा एक्शन नहीं है। 

क्या करें यहाँ से छोड़ कर वापस भी नहीं आसकते, रोजी रोटी  का सवाल है, ३ साल पहले एक सरकारी कॉलेज से कॉन्ट्रैक्ट में पढने के लिए ८००० रुपये का ऑफर मिला था।   हाँ , कुछ महीनो पहले तक मैं कोरिया में रिसर्च कर रहा था, देश में रहने की बड़ी लालसा थी, अभी भी है , सो कोरिया की नौकरी छोड़ कर ३ महीना इंडिया में धक्के खाता रहा, कोई नौकरी नहीं मिली।  फिर विदेश आना पड़ा।   अब इतना पढ़ लिखकर अगर मैं अपना परिवार भी न पाल सकूँ तो क्या हो।   मेरे बाप -दादा न तो एक्टर थे, न नेता की अपनी रोजी फिक्स रहती।  सबकुछ खुद ही करना पड़ता है हम जैसे लोअर- मिडिल क्लास के लोगों को। 

आशा है आपकी आने वाली फिल्म अच्छी चलेगी। 

अब ज्यादा क्या लिखूं आपतो खुद समझदार हैं।  

आपका

पढ़ालिखा पर लोअर मिडिल क्लास एनआरआई  दोस्त।  

डॉ. सुधीर कुमार शुक्ल