बुधवार, 18 अप्रैल 2012

नग्न चित्रपट




आज बंट रहा नग्न चित्र है,

हो सीरियल या फिल्मे हों,
डर्टी-पिक्चर, देसी बोयज़,
हो चाहे कॉमेडी सर्कस,

टीरपी के हवसी भूखे,
ये सोचे बस पैसों की,
नहीं इन्हें है कोई परवा,
बच्चो की या बूढों की,

खुली मानसिकता हैं कहते,
है ये बिलकुल नंगा पन,
मनो रोग से पीड़ित हैं,
ये डाईरेक्टर, प्रोड्यूसर सब,

पांच साल के बच्चो को,
कामुकता का पाठ पढ़ते हैं,
नन्हे शिशु के निर्मल मन पर,
गन्दी आकृति भरते हैं,

बचपन में जो कुंठित मन हो,
व्यभिचारी वो बनता है,
मन में जब है भरी वासना,
बलात्कारी वो बनता है,

सुप्त हुआ प्रसारण मंत्रालय,
नहीं लगता रोक कोई,
"ए" स्तर की फ़िल्में भी,
"प्राइम टाइम" में आती हैं,

इन्हें नहीं है कोई परवा,
बच्चों के संसकारों की,
बिगड़ रहा है कोमल मन,
ऐसे व्यभिचारी छवियों से,

                              -डॉ. सुधीर कुमार शुक्ल " तेजस्वी" 

मंगलवार, 17 अप्रैल 2012

एक थी गदही और नेता जी : हास्य व्यंग




एक गदहा थाथी एक गदही,
दोनों ने थी टोपी पहनी,
टोपी पे लटकी थी कलगी,
कलगी में मक्खी बैठी थी,

मक्खी उड़ी और हुआ शोर,
गदहा तब भगा लगा के जोर,
गदही ने और किया शोर,
बंदर भी पंहुचा, सुना शोर,

बंदर ने तब उछल कूद की,
और कुत्ता भी गुर्राया था
घोड़े ने भी भरी चौकड़ी,
पहुंचे वो जहा बैठा शेर,

राजा ने बुलवाई बैठक,
बिलकुल उसने करी  देर,
भालू बना था वहां संतरी,
गीदड़ था वहां मंत्री नेक,
  

ये कैसी है विपदा आई,
क्यों है ये गदही घबराई,
सबने सोचा कुछ है करना,
गदही के है प्राण बचाना,

गीदड़ ने एक बात सुझाई,
क्यों  करें जमीन खुदाई,
जो भी होगा मिलेगा भाई,
ऐसी है तरकीब लगाई,

तब चूहे को था बुलवाया,
सर्च वारंट दे जमीन खुदवाया,
एक था तहखाना तब मिला,
नेता का जमघट जहा लगा,

तब भालू ने पूछ तांछ की,
नेता जी की हुई पिटाई,
नेता जी ने कुछ  बोला,
तब गीदड़ ने सूअर को भेजा,


नेता जी की बड़ी नाक में 
सूअर ने नाक लगा के खीचा,
निकली मक्खियाँ घबराई,
भूखी थीं और थीं वो सताई,

एक मक्खी ने हिम्मत करके,
बड़े काम की बात बताई,
हैं नेता जी बड़े लालची,
हैं कायर और आतताई,

सब जनता का माल खा गए,
देश हमारा बेच खा गए,
जब  बचा कुछ भी भाई,
मैले पे है नजर गड़ाई,

अब मक्खी भी मरेगी भूखी,
इस पर मक्खी है घबराई,
तब कौए ने किया परीक्षण,
नेता जी से बदबू आई,

मक्खी की ये बातें सुनकर,
सबके कान खड़े हो गए,
भौहे थी सबकी तर्राई,
गीदड़ ने तब पूछ हिलाई,

मक्खी की फ़रियाद सुनी जब,
शेर ने है मधुमक्खी भेजी,
मधुमक्खी ने लालच देकर,
नेता जी पे अंडे दे गई,

नेता जी का किया बंद मुहं,
मक्खी का हक उसे दे गई,
नेता जी पर छत्ता दे कर,
नेता जी को सजा दे गई,
-   डॉ. सुधीर कुमार शुक्ल " तेजस्वी" 

शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

हनुमान स्तुति


मेरी यह रचना मेरे इष्ट देव, संकटमोचन बजरंगबली के पावन चरणों में सादर समर्पित है....मेरे प्रभु हम सब को सद्बुद्धि दें और रक्षा करें ....जय ..जय ..जय हनुमान!



मारुत नंदन जय हनुमान,
शंकर सुवन कपीश महान,

तन सिन्दूर, जनेऊ साज्यो,
बज्र देह रवि तेज तुम्हारो,

मारुत की गति तुमने पाई,
कृपा विशेष राम की पाई, 

अंजनि सुत बल बुद्धि प्रवीणा,
बालापन रवि हनु धरि लीन्हा,

माँ अंजना के प्राण बचायो,
अंगद सुत तारा ने पायो,

सीता खोजन लंक सिधारो,
सुरसा को तुरतहि पहिचान्यो,

हत लंकिनी, मैनाक उबारयो,
बन्यो मसक रावण पुर प्रविश्यो,

अक्षय बध्यो और लंक जरायो,
सीता माँ का शोक निवारयो,

इन्द्रजीत ने शक्ति चलाई,
लक्षमण को तब मूर्छा आई,

कलिनेमि का छल पहिचान्यो,
द्रोणागिरी संजीवनी लायो,

नाग  पांस इन्द्रजीत चलायो,
प्रभु को नाग  पांस  में बांध्यो, 

गरुड़ बुलाई पांस को कट्यों,
भव भय भंजन नाथ हमारो,

अहिरावन ने प्रभु हरि लीन्हा,
बलि देने का प्राण खल कीन्हा,

गयो पताल बाध्यो अहिरावन,
दीन्ह्यो खल को गति अति पावन,

महाभारत का रन जब आयो,
धर्म हेतु प्रभु आप पधारयो,

अर्जुन के ध्वज की रक्षा कर,
धर्म विजय प्रभु आप करायो,

संतन को तुम पालक हो प्रभु,
दुष्ट, दनुज सब तुमसो कांपें,

राम भगति में मगन रहो प्रभु,
ब्रम्हचर्य का व्रत तुम पाल्यो,

जो नर प्रभु में ध्यान लगावे,
सब दुःख तजि सद्गति को पावे,

संकट मोचन वीर महा प्रभु,
मम उर बसि, मोहें प्रभु तारो,

                 - डॉ. सुधीर कुमार शुक्ल 'तेजस्वी" 

बुधवार, 4 अप्रैल 2012

एक दुआ





बरकत दे उनको मेरे खुदा,
मुझे कुछ  सुकून मिले, 
खुशियों पे हक सिर्फ उनका है,
मुझे अश्कों का खिताब दे,


मैं तो खुश हूँ स्याह रातों में,
उन्हें सुबह का आफ़ताब मिले 
कर मेरी दुआ कुबूल मेरे मालिक,
उनको आसमां की उड़ान मिले,

आंसू का एक भी क़तरा हो,
गर उनकी आँखों के नसीब में,
मैं आसिम हूँ वो मेरा तकदीर हो
वो  हर एक क़तरा मुझे नसीब हो,

उनके हूर की दमक न कम हो कभी,
न उनके दमन पे कोई दाग हो,
इनाम में दे दे मुझे कालिख मौला
गर उनके नसीब में कोई दाग हो,

                                    - डॉ. सुधीर कुमार शुक्ल" तेजस्वी"