गुरुवार, 14 जून 2012

तेरी जुल्फों में मेरा घर होगा





सूरज की रौशनी में तपिश है जैसे,
मेरे प्यार और चाह में गरमी है वैसे,
चाँद की चांदनी में जो शीतलता है,
कुछ और नहीं तेरे चेहरे की कोमलता है,

मुझे इन्तजार है दिन ढलने का तब से, 
तुझे अपने दिलमे बसाया है जब से,
सुना है लोगों को दिन की चाहत होती है,
जो रूह प्यार में है रात की कायल होती है,

मैं पिघल कर बह रहा हूँ, नदी की तरह,
तुझसे मिलने की चाह में बंजारे की तरह,
पता नहीं कब वो सैलाब आएगा,
मुझे बहा कर तुझ तक लेजाएगा,

मेरी सांस ने जो न साथ छोंड़ दिया,
तेरी चांदनी में जरूर नहाऊंगा,
तेरी जुल्फों में जब मेरा घर होगा 
तभी इस  दिन से रात का मिलन होगा,

शुक्रवार, 8 जून 2012

उनको अश्कों में पिरोया तो आंसू गवां बैठे





गए थे दिया दिखाने हाँथ जला बैठे,
गए थे रास्ता दिखाने खुद को भुला बैठे,

ये प्यार भी अजब चीज है दोस्तों,
गए थे सुकून खोजने होश गवां बैठे,

सुकून खोने का तो कोई ग़म नहीं है दोस्तों,
चर्चा सारे आम हुआ तो उनको ही गवां बैठे,

इस मुफिलिसी का क्या कहूं मैं यारो,
उनको आँखों में छुपाया तो नजरें गवां बैठे,

मुकद्दर  के आईने में क्या था यारो,
उनको सपनो में छुपाया तो रातें गवां बैठे,

हद तो तब थी उनकी बेरुखी की यारो,
उनको अश्कों में पिरोया, तो आंसू  भी गवां बैठे, 

मंगलवार, 5 जून 2012

एक बृद्ध वृक्ष का आह्वान



मैं हँसता था, मुस्काता था,
यूँ ही रोज बढ़ा जाता था,

जीवन के गाने गता था,
झरनों में मैं इठलाता था,

नहीं मुझे थी कोई जरूरत,
नहीं मुझे थी कोई शिकायत,

तभी एक दिन मानव आया,
मैंने अपने घर बैठाया,

था वो मानव बड़ा लालची,
था वो बड़ा क्रूर, अभागी,

मेरे कोमल तन को कटा,
बालापन में ही था छांटा,

हुआ तरुण तब चली कुल्हाड़ी,
हाथ पैर में आग लगा दी,

मेरे तन को उसने कटा,
लकड़ी मैंने उसको बँटा,

मारा तुने जब-जब पत्थर,
बदले में देता मैं तब फल,

नहीं दिया तुने कभी भी पानी,
फिर क्यूँ करता था मनमानी,

मेरे बच्चों को भी मारा,
उनके तन का लहू निकला,

तुने कितनी की गुस्ताखी,
तन तो क्या, मेरी जड़ भी काटी,

तुने सारी सीमा तोड़ी,
फिर भी मैंने हार न मानी,

कभी अगर तू थक कर आता,
आश्रय दे तेरी थकन बुझाता,

प्राण वायु तुझे मुझसे मिलती,
नदियाँ हैं जल मुझसे लेती,

सयंमित मैं जलवायु को करता,
ऋतुओं का संचालन करता,

तेरा जीवन मुझपे निर्भर,
फिर तू है क्यों इतना निःहृदय,

आज मुझे हैं आँसू आते,
तेरे जीवन पर है संकट,

अगर मिटेगा मेरा जीवन,
नहीं है मानव तेरा जीवन,

आज अभी से तज नादानी,
मानवता है तुझे बचानी,

कर तू वृक्षों का संरक्षण,
दूंगा मैं तुझे अविरल जीवन,

शुक्रवार, 1 जून 2012

कुछ पल ठहर तो ले मुसाफिर





कुछ  पल  ठहर तो ले मुसाफिर,
मुड़ के पीछे देख तो ले,
कर ले हिसाब इस  सफ़र का,
तेरे खजाने में क्या है मुसाफिर,

किसी के जिगर पे कदम तो नहीं,
किसी के जख्म  कुरेंदे  तो नहीं,
इस अंधी दौड़ में, बढ़ने की होड़ में,
किसी को रोका तो नहीं, 

अपने रास्ते को साफ़ करना था तुझे,
औरों को रास्ते से हटाया तो नहीं,
मंजिल पाना तेरा मुक़द्दर था,
किसी को सीढियां बनाई तो नहीं,

देख ले एक -एक निवाला फिर से,
किसी और का हक  खाया तो नहीं,
तेरे इस सुकून के खातिर,
किसी और ने अपना चैन खोया तो नहीं,

गर हर तरफ  है,  नहीं, बिलकुल नहीं,
बढ़ता चल आगे, और उड़ता चल,
अगर सुनाई दे चीख, दिखाई दे आंसू,
रुक जा, देख किसकी चीख है, कैसी टीस है,

बदल दे वो रस्ता, जो कलेजे से गुजरता है,
छोड़ दे वो हसरत, जो किसी को आंसू देती है,
तोड़ दे वो खंज़र, जो किसी का लहू पीता है,
तोड़ दे वो ख्वाब, जो किसी की रोटी छीनता हो,