सूरज की रौशनी में तपिश है जैसे,
मेरे प्यार और चाह में गरमी है वैसे,
चाँद की चांदनी में जो शीतलता है,
कुछ और नहीं तेरे चेहरे की कोमलता है,
मुझे इन्तजार है दिन ढलने का तब से,
तुझे अपने दिलमे बसाया है जब से,
सुना है लोगों को दिन की चाहत होती है,
जो रूह प्यार में है रात की कायल होती है,
मैं पिघल कर बह रहा हूँ, नदी की तरह,
तुझसे मिलने की चाह में बंजारे की तरह,
पता नहीं कब वो सैलाब आएगा,
मुझे बहा कर तुझ तक लेजाएगा,
मेरी सांस ने जो न साथ छोंड़ दिया,
तेरी चांदनी में जरूर नहाऊंगा,
तेरी जुल्फों में जब मेरा घर होगा
तभी इस दिन से रात का मिलन होगा,