शुक्रवार, 8 मई 2015

स्वराज गीत !



हो स्वराज,और हो खुशहाली,
जीवन सबका, सफल बने,

बिना द्वेष और भेद भाव के,
सबको- सबका भाग मिले,

हो सुभाष, या भगत -राजगुरु,
सब ने ही ये ठानी  थी, 

हो स्वराज हर-एक जन का,
बापू की ये वाणी थी,

नहीं है उपक्रम, नहीं पराक्रम,
फिर भी मन में ज्योति जगी,

है स्वराज का स्वप्न अधूरा,
बापू की है आन खड़ी,

मन से मन को जोड़ -जोड़ कर,
नयी श्रंखला है गढ़नी,

कण-कण, त्रण -त्रण जोड़-जोड़ कर,
नई ईमारत है गढ़नी,

यह स्वराज अभियान बनेगा,
भारत भाग्य विधाता,

जन- जन को अधिकार मिले,
है,  संकल्प हमारा,

जय हिन्द ! वन्देमातरम !

गुरुवार, 7 मई 2015

जिंदगी यूँ ही खर्च दी !


कुछ तुमने बेंचा, कुछ हमने ।  
ये जिंदगी, कुछ यूँ ही खर्च दी।।    

बड़ा गुमान था, खुद पर हमे।  
नीलामी में कौड़ी, भी न मिल सकी ।। 

ठोकरों से दिया था, जवाब मैंने।  
चाहने वालों ने जब भी, मेरी इल्तज़ा की ।। 

नसीब में बेकदरी थी, मेरे मौला।  
खरीदार को, कद्रदान समझने की, भूल करदी।। 

कितने जतन से सींचा था, बागवान ने। 
राहगीरों ने आके, पूरी बगिया उजाड़ दी ।। 

शुक्रवार, 1 मई 2015

सुगबुगाहट !


पता नहीं कब उनकी सुगबुगाहट,
खर्राटे में बदल गई,
मेरी सिसकियाँ,
नींद पर भारी पड़ गई,

अब तो आँखे भी पथरा गई हैं, 
जागने का इंतज़ार करके,
नेताओं को कुम्भकर्ण क्यों  कहते हैं, 
प्रमेय फिर से सिद्ध हो गई,