शनिवार, 8 मार्च 2014

बहुत हो चुका चूल्हा-चौका !



बहुत हो चुका चूल्हा-चौका ,
बहुत हो चुका कलम का साथ,
आज सुशोभित होगा डंडा,
जिस पर करे  तिरंगा राज, 

परिवर्तन कि बही हवा है,
एक झोका मैं बनकर आज,
बहनो के संग मिलकर ऐसे,
बनू बबंडर अब विकराल,

शुष्क पात से उड़े अमानुष,
भ्रष्टाचार पे झंझाबात,
मातृभूमि की करें सफाई,
हाथ में लेकर झाड़ू आम,



चूड़ी-कंगन से हाथ तिरंगा थामेगा !

अंतररष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष में और देश के तात्कालिक राजनीतिक परिदृश्य के परिप्रेक्ष्य में भारत कि नारियों को समर्पित !




तनया हूँ मैं भारत माँ की,
भारत पर अभिमान करूं,
भारत माँ की सेवा खातिर,
जीवन भी कुर्बान करूं,

बने लुटेरे आज खड़े वो,
ममता का संघार करें,
अपनी माँ की संतानो का,
शोषण और अन्याय करें, 

छह दशकों, की बड़ी कहानी,
इनके अत्याचारों की,
आम आदमी तड़प रहा है,
इन काले अंग्रेजों से,

उठो सजग हो, लड़ो शक्ति बन,
इन निर्मम हत्यारों से,
बेच रहे हैं देश हमारा,
ये सब ठेकेदारों को,

चूल्हा-चौका, कलम नहीं अब,
हाथ तिरंगा थामेगा, 
चूड़ी-कंगन से हांथो पर,
क्रान्ति का परचम साजेगा,

कहो मुझे तुम चंडी, दुर्गा,
या फिर, लक्ष्मी बाई भी,
मैं हूँ, प्रकृति, सुता माता की,
माँ हित खातिर आई हूँ,