गुरुवार, 19 जनवरी 2012

नुमाइश




कभी खुद को पुकारता हूँ,
कभी तुझको पुकारता हूँ,
तुझे आईने में देखूं कैसे,
ऐ, जिन्दगी मैं तेरी राह निहारता हूँ,

कब से खड़ा हूँ राह पर हाँथ फैलाये,
तुझे देखने की चाह में टकटकी लगाये,
कौड़ियों के दाम में बिकतें हैं जिगर जहाँ,
व्यापारियों की कतार में मैं भी हूँ खड़ा,

संस्कारों का सौदा हो, या दिल की हो नीलामी,
मूल्यों की हो नुमाइश या, रिश्तों की बोली,
लेलो चुन - चुन कर जिसे जो भी चाहिए,
मुझको तो जिन्दगी से सोहरत और दौलत चाहिए,

ममता का दूध हो या, बहना की राखी,
पिता का अभिमान हो, या प्रेयसी की पाती,
किसी का सुख चैन हो, दर्द हो, या आंसू,
बेचने की होड़ लगी, नर हों, या नारी,

पिता का अभिमान बिका, ममता का आँचल,
प्रेयसी का प्यार बिका, बहना का काजल,
खुद का जमीर बिका, और मन की शान्ति,
इस नुमाइश की दुनिया में, रहा न कुछ बाकी,

खड़ा हूँ, इस दोराहे पर, जिंदगी पुकारती,
दूसरी तरफ चमचमाती दौलत ललचाती,
चुनना था एक रस्ता, करना था फैसला,
जमीर को था पुकारा, वो तो था बिकचुका,


इस नुमाइश की दौड़ में, मैंने सब खोया,
खुद से ही रिश्ता तोड़ा, खुदा से मुह मोड़ लिया,
ऐ, जिंदगी तू ही बता, अब क्या है बाकी,
मरना भी चाहूं अगर, मौत को भी बेंच दिया,

- सुधीर कुमार शुक्ल " तेजस्वी"

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