राष्ट्रीय चिन्ह का अपमान: असली देश द्रोही कौन!!



असीम त्रिवेदी को राष्ट्रीय चिन्ह के अपमान करने के आरोप में देशद्रोही बना दिया गया. असीम त्रिवेदी की गलती क्या है? उन्होंने राष्ट्रीय चिन्ह पर सत्यमेव जयते की जगह "भ्रष्टमेव जयते" लिख दिया. मेरी समझ में असीम त्रिवेदी ने कुछ गलत नहीं क्या, उन्होंने इन नेताओं को सिर्फ आइना ही दिखाया है, जो ये नेता हमेशा करते आरहे हैं उसी कटु सत्य को त्रिवेदी जी ने कार्टून में दिखा दिया तो वो देश द्रोही हो गए.!! असली दोषी कौन है ये देखने के लिए हमें इस वाक्य के इतिहास और गरिमा पर जाना होगा.
सत्यमेव जयते भारत का राष्ट्रीय आदर्श वाक्य है, जिसका अर्थ है " सत्य की ही विजय होती है"  यह वाक्य मुंडकोपनिषद त्रतीय के श्लोक छः से लिया गया है:-

सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पंथा विततो देवयानः।
येनाक्रमन्त्यृषयो ह्याप्तकामा यत्र सत्सत्यस्य परमं निधानम्॥

अर्थात सत्य की ही विजय होती है, झूठ की नहीं। सत्य से ही देवयान मार्ग परिपूर्ण है। इसके द्वारा ही कामना रहित ऋषिगण उसे (परमपद को) प्राप्त करते हैं, जहां सत्य के श्रेष्ठ भण्डार-रूप परमात्मा का निवास है।

इस वाक्य " सत्यमेव जयते"  को जब भारत के महान सम्राट अशोक ने अपनाया तो उनके मन में जो लालसा जनित क्रूरता थी वो चली गई और उन्होंने शांति का रास्ता अनुसरित किया.  
भारत के इतिहास में एक समय फिर आया जब लम्बे संघर्ष और अनगिनत बलिदानों के फलस्वरूप हमे आजादी मिली, आजादी के समय के जो भारतीय विचारक थे उन्होंने इस वाक्य " सत्यमेव जयते" को एक ऐसे मार्गदर्शक के रूप में देखा जिससे सदियों से प्रताड़ित भारतीय जनों को सुख और शांति मिल सके,  इस वाक्य  "सत्यमेव जयते" को राष्ट्रीय आदर्श वाक्य बनाया गया और इसके पीछे मंशा ये थी कि भारत के नागरिक सत् मार्ग पर चलेंगे और सुखी रहेंगे, इससे भी बढ़कर देश के शासक वर्ग को ये वाक्य स्मरण  रहेगा कि उनके दायित्व क्या है, " सत्यमेव जयते" के वृहद् विश्लेषण पर मैं नहीं जाना चाहूँगा परन्तु ये अवश्य कहूँगा इस वाक्य में संपूर्ण मानवता का ज्ञान और मानव  का कल्याण का आधार निहित है, किसी भी देश के संविधान का आधार भी यही वाक्य होता है, इसमें थोडा और प्रकाश डालूँ तो "सत्यम शिवम् सुन्दरम"  जैसे दूसरे वाक्य को देखना चाहिए जिसका अर्थ है "सत्य ही कल्याणकारी है, या शुभ है , और  सत्य ही प्रिय है, या सुन्दर है, और किसी भी राष्ट्र का संविधान उस राष्ट्र के लोगों को सुख, शांति प्रदान करने के लिए होता है, अतः ये स्पष्ट है की संविधान का आधार इसी वाक्य में निहित है. 

अब यदि आज के परिप्रेक्ष्य में इस वाक्य " सत्यमेव जयते" को देखता हूँ तो ऐसा लगता है कि इसका अस्तित्व सिर्फ अशोक स्तम्भ तक ही सीमित रह गया है, एक सामान्य व्यक्ति से लेकर, चपरासी, लिपिक, पोलिस - प्रशासन तक इस वाक्य का अनुशरण करने के लिए कोई तैयार नहीं है, और सबसे ज्यादा इस आदर्श वाक्य कि अवहेलना आज के राजनेताओं ने की है, असल में यह सिर्फ एक वाक्य नहीं है एक आदर्श है, एक मार्ग है, एक जीवन शैली है , एक परंपरा है जिसमे " सर्वे भवन्तु सुखिनः की भावना निहित है".  मैं मानता हूँ की राजा के लिए किसी भी नियम, आदर्श का पालन अधिक अनिवार्य होता है क्योंकि उनके पास शक्तियां होती हैं और उनके आचरण का प्रभाव कही अधिक व्यापक और दीर्घकालीन होता है, 
आज मैं जब किसी  नेता भाषण या वक्तव्य सुनता हूँ और उसकी कार्य शैली पर गौर करता हूँ तो मुझे कई विपरीत व्यक्तित्वा वाले व्यक्ति दिखाई देते हैं, आज देश जिन कठिनाइयों से जूझ रहा है चाहे वो, बेरोजगारी हो, भुखमरी हो, गरीबी हो, महगाई हो,  अशिक्षा हो, पर्यावरण की समस्या हो, या सांप्रदायिक दंगे हों, नक्सलवाद हो, कश्मीर समस्या हो, आतंकवाद हो या, फिर अभी हाल में असाम की घटना हो, इन सबके पीछे एक ही कारण है, नेताओं द्वारा कुटिल नीतियाँ बनाना और अपने सत्ता प्राप्ति के लिए असामाजिक तत्वों का पोषण ही नहीं संवर्धन करना है,  आज भ्रष्टाचार जो भस्मासुर की तरह विकराल हो चुका है ये इन स्वार्थी नेताओं की सोची- समझी देन है, ये सत्ता हथियाने या उसमे बने रहने के लिए कुछ भी कर सकते हैं इसके कुछ दृश्य मैं  आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ, इनसे स्वार्थ के कुछ परिणाम अग्र लिखित हैं: भारत का बटवारा, कश्मीर समस्या, दिल्ली का सिख विरोधी दंगा, मुंबई और गुजरात के सम्प्रदाइक दंगे,  पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर में बंगलादेशियों की घुस पैठ, उत्तर प्रदेश और बिहार की जातिगत राजनीति, घोटालों की राजनीति, राष्ट्र विरोधी समझौते, पैसे से सत्ता और सत्ते से पैसा कि राजनीति, भ्रष्टाचारियों और अपराधियों का पोषण. ये सभी समस्याए या तो सरकार द्वारा पोषित है,  या सरकार जानबूझकर निष्क्रिय बनी हुई है, 

सबसे दुखद बात ये है की उपर्युक्त सभी मामलों में सत्य क्या है सबको पता है परन्तु सत्य को बोलना और उसे स्वीकार करना कोई नहीं चाहता. अब इन सब बातों को देखने के बाद ये बात कहा तक सही है की हमारे राजनेता हमारे राष्ट्र के  'राष्ट्रीय आदर्श वाक्य'  "सत्यमेव जयते"   सम्मान  करते हैं, इस संकल्पना के साथ अपने दायित्वा निभाते हैं. इन नेताओं के आचरण और कार्यकलापों को देखकर तो यही लगता है की, यह वाक्य सिर्फ रुपये में छापने के लिए हैं, इसका कोई अस्तित्व आजके जीवन में नहीं है.  विडंबना ये है की कोई भी नेता या प्रशासक सत्य बोलने की हिम्मत नहीं करता, और सत्य लगातार हार रहा है. 

मेरी समझ में जो इस वाक्य  "सत्यमेव जयते" की मूल भावना में रहकर अपने कर्तव्यों का निर्वाह नहीं करता वो इसका अपमान करता है और जो   'राष्ट्रीय आदर्श वाक्य' का अपमान करता है वो राष्ट्र का अपमान करता है, न की वो जो इन आताताइयों को आइना दिखने का काम करता है, असीम जी की भावना कही भी राष्ट्र को क्षति पहुँचाने की नहीं थी,  राष्ट्र का अपमान राष्ट्र द्रोह है, और राष्ट्र द्रोह की सजा आप सब जानते हैं क्या होनी चाहिए.....और भारतीय संविधान के अनुसार है भी!! उपर्युक्त विवेचना से स्पष्ट है कि असली देशद्रोही असीम त्रिवेदी जी नहीं ये भ्रष्ट राजनेता हैं, राजद्रोह का मुकदमा इन भ्रष्ट और निरंकुश राजनेताओं पर लगना चाहिए.असीम पर नहीं, वो तो सच्चा देशभक्त है!! 

जय हिंद! जय भारत! जय भारत- जन! 

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