गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

बड़े बेआबरू होकर तेरे पहलू से हम निकले





बड़े बेआबरू होकर, तेरे पहलू से हम निकले,
मिटे ना दाग दामन से, कहो कैसे कसक निकले, 

बड़ी मन्नत करी हमने, तेरे रुखसार के खातिर,
ना जाने वही किनारा था, या फिर वो बेवफा निकले 

तेरे एक अक्स को छूने, चले थे हम मेरे मालिक,
न जाने कब गली बदली, न जाने कब समां बदला,

किये थे पार कितने ही, पहाड़ों और समंदर को,
मिलन की जब घड़ी आई, तो वो ही बेरहम निकले,

तेरे एक नूर के खातिर, खड़े थे दर पे तेरे हम,
न तुम निकले, न हम निकले, बख्त ही बेवफा निकले,

ठिकाना बन गई साँसें, मेरी इस बेकरारी का,
मुझे अब ये बता मौला, के कैसे दम से दम निकले,

                              - सुधीर कुमार शुक्ल " तेजस्वी"





9 टिप्‍पणियां:

  1. Wah Sudheer Ji bahut khoobsurat gazal likhi hai aapne... Great, specially.. ye panktiyan

    Thikana ban gai sanse, Meri is bekarari ka.
    Mujhe ab ye bata maula, Ke kaise dam se dam nikle..

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  2. Really good pen... I suggest you concentrate more n more on Urdu shayari... Mature!

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