रोज की तरह आज भी वेबसाइट में समाचारों को टटोल रहा था। अचानक आसाराम बापू से संभंधित समाचार पर निगाह पड़ी। मैंने सोचा, देखते हैं आसाराम बापू के यहाँ चल क्या रहा है। मैंने गूगल महाराज की मदद ली और पहुँच गया बापू के आश्रम में। वेबसाइट में दाहिनी तरफ लिखा था "पूज्य बापूजी के मंगलमय दर्शन और सन्देश" 18 दिसम्बर 2014। मैंने सोचा बापू जी तो अभी जेल मैं हैं, वो दर्शन कैसे दे सकते है। मैंने लिंक खोली और देखा सचमुच बापू जी दर्शन दे रहे थे। ये तो किसी चमत्कार से काम नहीं था। लोहे का दरवाजा खुलता है, काले कोट में एक व्यक्ति दाहिनी ओर, सफ़ेद कपड़ों में बाईं ओर सुशोभित हो रहा है। पीछे - पीछे कुछ लोग खाकी वर्दी में शोभित है। पीछे दंगा नियंत्रण यान दिख रहा था, मानो दिव्या कलयुगी रथ हो, ये झाकी बहुत ही मोहक थी। श्वेत वस्त्र, ललाट पर तिलक, गंभीर या कहें तो दुखी मुद्रा, निश्तेज आँखें, सचमुच बहुत ही अनुपम दृश्य था। मैंने अभी तक ऐसे ईश्वर की कल्पना नहीं की थी। बापू जी के आशिर्वचन थे" हमारा ऐसा कोई समर्थ नहीं हो सकता , सब साजिश है , सब मीडिया का किया धरा है, हिन्दू धर्म को नीचे दिखने की कोशिश है"
कुछ अजीब था, पर दर्शन तो था, उन लाखों भक्तों के लिए जो बलात्कार के आरोप में जेल में बंद अपने बापू के दर्शन के लिए लालायित थे। प्रवचन भी कुछ नेताओं जैसा लग रहा था, जो हमलोग अक्सर सुनते रहते हैं।
मैं सोचने लगा अगर शबरी या मीरा के भगवान ऐसे होते तो क्या वो उसी तरह दर्शन करतीं? क्या उसी तरह भाव- विभोर होकर रोतीं ? क्या
सुधबुध भूल कर जूठे बेर खिलाती या जहर का प्याला प्रसाद मान कर पी लेती ? इन सबका उत्तर तो मेरे पास नहीं था क्योंकि न तो मैं सबरी हूँ, न मीरा। पर इतना जरूर कह सकता हूँ की मैं अपने भगवान का यह
दृश्य कभी नहीं देखना चाहूंगा। ऐसे भगवन जो बलात्कार के आरोप में जेल मैं हैं। तो मैं क्या करता ? क्या अपने भगवान् पर से भरोसा तोड़ देता ? क्या उन्हें छोड़ देता ?
असल में समस्या यह है की आजकल के वैज्ञानिक युग में जहाँ हाइब्रिड का जमाना है, और बेरोजगारी बहुत बढ़ रही है, तो ऐसे हज़ारों भगवान पैदा होते हैं, चाहे वो सत्यसाईं हो, नित्यानंद हों, रामपाल हों, या आसाराम हों । यह भी नहीं है कि ऐसे भगवान एक ही धर्म में हैं, सभी धर्मों
में ऐसे भगवान मिल जाएंगे।
मुझे उत्तर नहीं मिल पा रहा था की अगर शबरी और मीरा के भगवान ऐसे होते तो वो क्या करती ! या की अगर मेरे भगवान ऐसे होते तो मैं क्या करता !
मैंने सोचा क्यों न मैं अपने पिता जी से ये बात पूछूं, मैंने अपने घर फ़ोन किया, पिता जी को अपनी विडंबना बताई। पिता जी ने कहा इसका उत्तर तो तुलसीदास जी ने ६००- ७०० साल पहले दे दिया था। फिर उन्होंने कुछ चौपईया और दोहे कहे:-
मारग सोइ जा कहुँ जोइ भावा। पंडित सोइ जो गाल बजावा।
मिथ्यारंभ दंभ रत जोई। ता कहु संत कहइ सब कोई।।
सोइ सयान जो परधन हारी। जो कर दंभ सो बड़ आचारी।
जो कह झूँठ मसखरी जाना। कलियुजु सोई गुनवंत बखाना।।
निराचार जो श्रुति पथ त्यागी। कलिजुग सोइ ग्यानी सो बिरागी।
जाकें नख अरु जटा बिसाला। सोइ तापस प्रस कलिकाला।।
असुभ बेष भूषन धरें भच्छाभच्छ जे खाहिं।
तेइ जोगी तेइ सिद्ध नर पूज्य ते कलिजुग माहिं।।
मैंने पुछा, जब तुलसीदास जी ने ये बात इतने साल पहले कही थी तो, लोगों को याद क्यों नहीं। पिता जी ने कहा , बेटा मनुष्य की याददाश्त बहुत छोटी होती है, इसी लिए हमे अच्छी बातें, हमेशा दोहराती रहनी चाहिए,
ताकि वो हमे याद रहे। फिर थोड़ा रुक कर, वैसे तुम्हे भी तो भूल गयीं थी!
मेरी शंका का समाधान तो मिल गया, और यह विश्वास भी हो गया की जिसदिन ये बात सबको समझ में आजायेगी, उसदिन बलात्कारी भगवान नहीं होंगे। उससे आगे यह भी समझ में आगया
की धर्म को (इस लेख के परप्रेक्ष्य में हिन्दू धर्म को) कैसे लोगों से
सबसे ज्यादा संकट है।
आपलोगों को भी समझ में आ जाये तो जरूर बताईयेगा ।
ॐ शांतिः !