उन्होंने मेरे दिल को जनाजा ही समझा,
प्यार को कब्र, मुझे कब्रगाह ही समझा,
मेरे लफ्जों में उनकी जो इबादत थी,
उस इबादत को क़यामत ही समझा,
उनके आने पे धड़का जो दिल मेरा,
धडकनों को उसने शोला ही समझा,
आँखों में मेरी उन्हें दिखता है धोका,
मेरी साँसों को उसने बबंडर ही समझा,
उनकी याद में भरी थी जो आँहें,
आहों को उसने फ़साना ही समझा..
- सुधीर कुमार शुक्ल " तेजस्वी"
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