दिग्भ्रमित हो चुके हैं अन्ना!!



कल की बैठक में अन्ना ने अरविन्द केजरीवाल को पार्टी बनाने के लिए समर्थन देने से मना कर दिया. उस बैठक में पूर्व टीम अन्ना के ४५ लोग मौजूद थे जिनमे से सिर्फ ८ लोगों ने पार्टी बनाने का विरोध किया और बाकियों ने समर्थन, टीम अन्ना द्वारा कि गई रायशुमारी में ७५% लोगों ने पार्टी बनाने के पक्षमे मत दिया,  अन्ना ने यह कहते हुए समर्थन देने से मना किया कि मेरे लिए सभी राजनैतिक दल एक जैसे  हैं, और सर्वेक्षण कि विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाये, ये बात अलग है, कि कुछ दिनों पहले विभिन्न टी. वी. चैनलों द्वारा कराये गए सर्वेक्षणों में बहुत मात्र में लोगों ने पार्टी बनाने का समर्थन किया था,   अब सवाल ये उठता है की अन्ना का ये फैसला क्या बुद्धिमता पूर्ण या राष्ट्रहित में कहा जा सकता है, या इसे एक ऐतिहासिक भ्रमित और अदूरदर्शी फैसला कहा जासकता है, जिसके परिणाम को देश की जनता को बहुत दिनों तक भुगतना पड़ेगा, मैं ये बिलकुल नहीं मानता कि  अरविन्द केजरीवाल के पार्टी बनाने से सबकुछ ठीक हो जायेगा, परन्तु जिस उद्देश्य से इस आन्दोलन का जन्म हुआ था और पार्टी बनाने के पीछे जो मंशा है, इसके साथ साथ आजकी राजनैतिक पार्टियों की जो हालत है भ्रष्टाचार और जनता के हित में जुड़े फैसलों के परिप्रेक्ष्य में, ऐसे में हमे अरविंद केजरीवाल और उसकी मंशा के प्रति थोडा विश्वास करना चाहिए था, अगर अन्ना ये मानते हैं कि जो भी पार्टी बनाने के बारे में सोचेगा वो गलत है इसका मतलब या तो अन्ना को भारतीय संविधान में अब विश्वास नहीं रहा या, वो सभी को एक ही रंग में पोतना चाहते हैं, मुझे कुछ महीनो पहले का वाकिया याद हैं जब अन्ना लोकपाल की माग करते- करते भ्रष्ट पार्टियों को वोट न देने का ऐलान किया था, तब लोगों ने ये प्रश्न किया था की चूँकि आज सभी दल भ्रष्ट हैं तो हम किसे चुने, तबसे राजनीतिक विकल्प देने का संकल्पना का जन्म हुआ, अन्ना और देश के लोगों को ये समझना होगा की राजनीति या दूसरे शब्दों में देश सेवा, या जन सेवा बुरी बात नहीं है, परन्तु आज जिसतरह राजनीतिक अपराधीकरण हुआ है, उससे समाज में छुपे भेड़िये इस पवित्र संस्था में प्रवेश कर गए हैं और इसे दूषित कर रहे हैं,  ऐसे में अन्ना की टीम का कोई सदस्य जिसे अन्ना  जानते है, यदि स्वच्छ राजनीतिक विकल्प देने की कोशिश कर रहा है तो कौनसा अपराध या पाप कर रहा है, ऐसी कौन सी विडंबना है जिससे अन्ना को  ये लगता है की अगर अरविन्द ने पार्टी बनाई तो अन्ना के सफ़ेद चेहरे पर कालिख लग जाएगी, मेरा अन्ना से ये सवाल है, जब आपको यही करना था तो जंतर- मंतर पर अनशन समाप्ति की घोषणा करते समय जनता की माग पर राजनीतिक विकल्प देने की घोषणा क्यों की थी? करोड़ों भारतियों को संभावित स्वच्छ राजनीति के सपने क्यों दिखाए थे? 
मुझे अन्ना के इस निर्णय के पीछे कोई सही कारण समझ नहीं आते, पर लगता हैं की टीम अन्ना में कुछ ऐसे लोग हैं जो निजी स्वार्थों की वजह से इसके साथ हैं जिनमे से एक हैं किरण बेदी, ऐसे लोगों ने अपने स्वार्थों के लिए अन्ना पर दवाव बनाया होगा, या राजनीतिक दलों ने परोक्ष रूप से अन्ना का "ब्रेन वाश" किया होगा. क्योंकि अगर अरविन्द कि काल्पनिक पार्टी बनती तो इन्हें भी जेल कि चक्की पीसना पड़ सकता है, अन्ना के इस निर्णय के कई तात्कालिक और दूरगामी परिणाम होंगे,

१. करोड़ों भारतियों की उम्मीदों की हत्या: अन्ना के आन्दोलन से करोड़ों भारतीयों को भ्रष्टाचार मुक्त और सम्रध भारत की एक छोटी सी उम्मीद जगी थी अन्ना ने खुद उसकी हत्या करदी.
२. राजनीतिक दलों की निरंकुशता बढ़ेगी: टीम अन्ना और उसे आन्दोलन का जो हस्र उसी के मुखिया द्वारा हुआ है, उससे आज के अभी भ्रष्ट राजनीतिक दल और निरंकुश हो जायेंगे और कभी भी कोई भी छोटा या बड़ा आन्दोलन उठेगा तो ये लोग उसे इतिहास का यही पन्ना खोल कर दिखायेंगे.
३. अन्ना और उनके आन्दोलन से लोगोंका विश्वास घटेगा: पिछले कुछ दिनों से अन्ना के विचारों और बातों में जो अनिश्चितता आई है, उसकी वजह से लोगों का विश्वास अन्ना पर से उठता जा रहा है, और भविष्य में अन्ना के द्वारा किये गए आन्दोलनों को जन समर्थन मिलने में संशय है, 
४. जनांदोलनो का भविष्य: भविष्य में जनांदोलनो पर भी प्रश्न चिन्ह लग गया है, अगर कोई व्यक्ति अपना सारा काम -काज छोड़ कर किसी जन नेता के पीछे आता है तो वो कुछ उम्मीदों से आता है, और अगर उनकी उम्मीदों का गला उसी जननेता द्वारा घोटा जाये तो कोई क्यों ऐसे लोगों पर विश्वास करेगा.

मेरी समझ में अन्ना को केजरीवाल की मंशा पर थोड़ा विश्वास करना चाहिए था, अन्ना की एक बात मुझे बहुत हास्यास्पद लगती है, की कल की चर्चा के बाद अन्ना ने कहा कि  पार्टी बनाने का निर्णय केजरीवाल ने अन्ना के सहमति के बिना लिया था, मैं अन्ना से पूछना चाहता हूँ कि जब  जंतर -मंतर में अनशन के दौरान आपने सब के सामने पार्टी बनाने कि घोषणा की थी तो वो केजरीवाल के शब्द थे या आपके ?  क्या केजरीवाल इतना बड़ा या ताकतवर होगया कि वो आपको एक पुलिस वाले कीतरह डंडा मारकर कुछ भी बयान दिलवा सकता  है? एक और बात बहुत हास्यास्पद लगी अन्ना  ने कहा कि  केजरीवाल अन्ना की तस्वीर या उनके नाम का इस्तेमाल नहीं करेगा. मुझे ऐसा लगता है की इस बुढ़ापे में अन्ना  को भी "सेलिब्रिटी स्टेटस " का रोग लग गया है, उनको लगता है की अन्ना बहुत बड़ी चीज है, हलाकि मैं उनके समाज हित में किये गए कार्यों की बहुत क़द्र करता हूँ, परन्तु अन्ना को ये याद रखना चाहिए की वो "अन्ना" अपने जन कल्याणकारी कार्यों से बने हैं न की अपने नाम से, और जब जनता को ये लगने लगेगा की अन्ना की विचारधारा अब जनहित के अनुकूल नहीं है, जनता उन्हें स्वीकार नहीं करेगी, 

निवेदन: मेरा सभी जागरूक देशभक्त नागरिकों से ये हार्दिक निवेदन है की, आजकी भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था को देखते हुई, जो उम्मीद की किरण टीम अन्ना ने दिखाई थी, उसके एक मशाल धारक अरविन्द केजरीवाल पर एक बार भरोसा करें, अगर आप पिछले ६५ सालों से इन भेड़ियों को आजमा रहे हैं, तो उसकी भी बातों को सुने, समझे, और सोचे, और एक मौका उसे दें, वो उनकी उम्मीदों के विपरीत काम करता हैं तो उसे नकारने का अवसर हमेशा हमारे पास रहेगा,

जय हिंद!! जय भारत जन!!  

2 टिप्‍पणियां:

  1. केजरीवाल के चमचो को अन्न हज़ारे को गाली नही देना चाहिए॥केवल इस बात पर की वो केजरीवाल और उनके चमचो के मन से नही चल रहे है

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    1. Devsachin Ji!! aaapne abhadra bhasha ka upyog kiya hai mere liye..main kisi ka chamcha nahi hun,aur anna ki bahut ijjat karta hun, shayad aapko aana se bahut lagav hoga isliye ye baate aapko buri lagi...maine to anna ke is nirnaya ka aur uske desh par padnewale prabhaw ke baare me charcha ki hai...aur anna apne bayan jis tarah kuchh samay se badal rahe hain usse logon ka vishwas anna par kam hoga...dhanyawad

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