धन्नो कोईला क देखि..देखि...हिनहिनात...रहि गय..

प्रिय मित्रो!!
मेरी यह हास्य- व्यंग लघु  कथा बघेली बोली ( सतना- रीवा, मध्य प्रदेश क्षेत्र में बोली जानेवाली) में हैं, जल्दी ही मैं इसका हिंदी  रूपांतरण  आपलोगों कि सेवा में प्रस्तुत करूंगा. ये लघु -कथा आपको गुदगुदाने के साथ-साथ मौजूदा राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में एक कटाक्ष्य है . 

हार्दिक धन्यवाद्!!  

मौसी घामे से तप कै आई, थक कै चूर, हंफत, गिरत- परत चिल्लय के कहैं लागीं बसंती पानी ता दैदे एक लोटिया नटाई सुखाय गई,  कट्टाही गर्मी बहुत ही, बसंती: पानी नहि आय, वीरुवा लें नहि अवा, कहत ही एतने दूर से न ले आउब एत्ती गर्मी ही, अब हम ता जाए नहि सकी, वहां सभवा नंगा नाचत है, जो बरजै ता कहत है  अब नंगे रहे बिना गुजर नहि आय, जो जेतना बड़ा नंगा व ओतनय बड़ा आदमी. मौसी एक बात बताव हम सुनत हैं, जाइय दिल्ली जाएँ का कहत है, कहत है वह बहुत खाएं का मिळत है, ता यहाँ रुखा सूखा न खाब, मौसी बेनमा से हवा करत कहैं लागी, हम सुनत हैं सहर मा बड़े मनाई सब कुछ खात हैं, पाहिले चारा खाइन, खाद  खाइन , पैसा  खाइन ,तोप- गोला  खाइन, गाड़ी -मोटर  खाइन   और ता और अब कहत हैं इतना खोज होई गई है की नेता नेताड़ा कोइला तक  खाएं लाग, बसंती या बताव, वोही का कहत हैं जौने से दूरी से बात होई जात ही, बसंती: दूरी से मतलब? अरे जैसा हम रामपुर मा हयान ता दिल्ली मा बात कर लेई, ...बसंती: दिल्ली..दिल्ली ..दिल्ली मा ता बात सिर्फ पैसा से होथि, मौसी: अरे नहि व कान मा कुछ लगावत हे बेलना कस और हल्ल.. हल्ल करत हैं....बसंती..अच्छा..अच्छा...तैं मोबाइल कै बात करती हा...मौसी: हाँ वही कट्टहा मोबिआयिल..कहत हे दुई मोबाइल के बीच मा जौन तार जात है, बात करैं का.....एक नेता सत्यानाशी ओहू का खाय लिहिस. बसंती: हाँ कहत ता यहै हे...मौसी: कट्टाहे  कईसा  मनाई होइहैं जो कुछु नहि छोडें, हमारे गरे से ता  कट्टाही   झूर रोटी नहि उतरै, ..बसंती: अरे ऊँ बड़े मनाई आएँ उन के बराबर हम- तैं थोड़ी कर सकी थैं.  उन ता राजा आयं कुछु कै सकत हैं, मौसी : कहत ता हैं की राजा गब्बरबा बनिगा है!...तबाही खान चाचा अबत जात है और कहत हैं...अरे दाढ़ी राखे से कोऊ गब्ब्बरबा नहि बन जाये..ई ता नाव का गब्बरवा है..एक हमरे खाला के ज़माने मा गब्बरबा रहा उं कहत रहीं की ओखे  दहाड़े से पचास कोस तक गाँव मा बच्चा रोबत नहि रहा..और एक या गब्बरबा है..एखे भुनभुनाने से ता मछिऊ नहि उड़ए. तबहिन मौसी बात काट कै बोलीं  हम ता सुनित है कि एक फिरंगी बहुरिया आई रही अब उ सबकी अम्मा बनिगय है, ओखे आंगे गब्बरबा-सब्बरबा कै कुछु नहि चलाई, व सबकै अंचरा मा बांधे घूमति है,  हम ता यहाँ तक सुन्यन है कि उ मइके जाएं वाली ही और  कहत ही की सब बेच भांज के चले जाब..एतना कहत मौसी भूख प्यास से थरथराई की गिर गईं.
ओही समय बीरू हंफत घबरात अबत है, मौसी ..मौसी गजब होइगा..गजब होइगा...बसंती: कहे का गोहार मार रहे हा, मौसी का चक्कर आयगा है..बीरू: अरे रामू काका उपास मा बैठ रहें न आज दस दिन होइगे गब्बरबा उनकर बात नहीं मानय..कहत है रामू काका जब तक ठाकुर साहब का सौचाउब न बंद करिहैं तब तक हम गद्दी न छोड़ब. बसंती तमतमाइके: अरे उ गब्बरबा आंधर है का ओही देखाय नहीं की जब ठाकुर के बेचारू के हाँथइ नहीं आय ता कईसा के सौचए, दुनाहूँ हाँथ ता ओहिन का काट के दै दिहिन हैं की व राज करै, अ व कट्टाहा है की राज पउतै  डाकू बनिगा, लूटैं- खस्वाटऐं मा लगा है. खान चाचा: अरे बिटिया तैं कहेका हलाखान होती है..ठाकुर साहब ता बड़े दानी रहे. साठ-बासठ साल होइगे..हर पांच साल मा एक-एक  अंगूरी काट के इन सब नेता- नेताड़ा का द्यात  गे कि इ सब  हम सब का भला करिहै, रोटी  द्याहैं, पै का बताऊँ बिटिया..जेहिन का अपन उंगरी काट के दिहिन वहै गब्बरबा बनिगा, और यहै करत-करत  आपन दुनाहूँ हाँथ कटाई लिहिन बिचारु, अब ता गोड़े के दुईठे उंगरी कटी गई हैं..बिचारु न उठे पामैं न अपने से कुछु काम करे पामैं..बीरू: ठकुरौ जी मूरुख रहे हैं लगत है, इतने साल तक कईसा आपन हाथ काटिकै इन सत्यानासिन का दैदिहिन. खान चाचा: तुम सही कह्त्या है बेटा, अब पछितात है.का करैं.अब ता रामू  के भरोसे है सब कुछ उनकर इज्जताऊ और हमरौ सबके पेट, नहीं ता इ  गब्बरवा हरे कह का नहीं छोडिन, अ दिन -दिन और मोटात जाथें.  
तबहिन जोर जोर से चिल्लायं के आवाज आवत ही,  सब उठिकै देखैं लगत हैं, कालिया रिक्शा मा बैठे  चिल्लत है..सरकार के तरफ से मुफ्त मा मोबाइल दीन जात है..अब कोऊ  गरीब न रही..सब के पास मोबाइल रही....सब गाँव के वहां झुकुर लगा लेत हैं, बहुत झपटा -झपटी के बाद बसन्तिउ एक मोबाइल पाय जाति है..सब बड़े प्रसन्न हैं, चला सरकार का हमार कुछ सुधि ता आई, खाएं-पियें का न सही बतियाए का ता मिली, तबहिन खान चाचा अपने यहाँ से पानी लाय के दुई चुरुआ मौसी के मुहे मा डारत हैं, गरे के भीतर जो पानी जात है  मौसी जमुहाई ल्यात उठि बैठीं. मोबाइल देखितय चिल्लय लागी, इ गाब्बरबा नीकिन के आंधर है का, यहाँ हमरे खाएं का लाले बड़े हैं, अ व बोलियात है, या बेलना भेजवाईस ही, या नहीं आय की दुई जून के रोटी दैदेय सब भूखें मारत हैं, या कट्टहा मोबिआइल का अथान धरिहैं का.  दूसरी कई जय पिठाहें मा कोइया के एक बोरिया लादे पसीना से लथपथ अबत है, मौसी..मौसी...या ले आयन या कोइला!! क का करब, याखा? मैसी खिसिआय कई बोलीं. जय: अरे वहां सहर मा सब एहिन कै लूट पड़ी हैं ता हम सोच्यन लगे हाथ हमहूँ लाये जई कुछ कामै  देई, साइत धन्नो खाय लेय बहुत दिन से चारा नहीं पाइस, यहै कहत धन्नो के आंगे बोरिया उलिद द्यात है, तबहिन धड़ाम के आवाज सुनाई देथि, सब दौड़ के भीतर जात हैं, बसंती जमीन मा बिछान परी ही चारिउ कई, धुआं छावा है, लागत है बसंती जादा दिमाग लगाई दिहिस, जब नेता मोबाइल के तार खाई लेत हैं ता हम मोबाइल क कूट-पीस के कहे नहीं खाय सकित, और मोबाइल लोढ्वा से कुटितय फूटि गा और बसंती क मुह कोइला से कला पडिगा कुछ जरिउगा है....बीरू दौड़ात अबत है...और बसंती क उठाई कई बैद जी के यहाँ लैजात है...दुआरे मा धन्नो कोईला क देखि..देखि...हिनहिनात...रहि गय....पै कोइला कै एक थे धेला नहीं खाईस .......पशु - ढोर आय  एतना जानत ही की का खा चाही का नहीं!! . 

6 टिप्‍पणियां:

  1. nice one. mai chahuga ki ham mil kar apni regional boli/bhasha me desh ka har sandesh aur har jankari logo tak pahuchane ka prytna kare taki jamin ka aadmi bhi sachhai ko samjh sake ki stithi kay hai.

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  2. are sir ji ya apana bahut accha likhen hain. Ham panche apane rewa ke boli bhoolat jait hain aur apana bilayat ma rahi ke apne boli ma kavya likhit he jaun ki bahute nikha aye.

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  3. Sir, Aap ke batch me Rajneesh sir the unse mulakat hui thi university me wo aap ko yaad karte hai, aur bataya ki aap log bahut acche dost hai. Accha lagta hai purane logo se milkar.

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