मंगलवार, 17 अप्रैल 2012

एक थी गदही और नेता जी : हास्य व्यंग




एक गदहा थाथी एक गदही,
दोनों ने थी टोपी पहनी,
टोपी पे लटकी थी कलगी,
कलगी में मक्खी बैठी थी,

मक्खी उड़ी और हुआ शोर,
गदहा तब भगा लगा के जोर,
गदही ने और किया शोर,
बंदर भी पंहुचा, सुना शोर,

बंदर ने तब उछल कूद की,
और कुत्ता भी गुर्राया था
घोड़े ने भी भरी चौकड़ी,
पहुंचे वो जहा बैठा शेर,

राजा ने बुलवाई बैठक,
बिलकुल उसने करी  देर,
भालू बना था वहां संतरी,
गीदड़ था वहां मंत्री नेक,
  

ये कैसी है विपदा आई,
क्यों है ये गदही घबराई,
सबने सोचा कुछ है करना,
गदही के है प्राण बचाना,

गीदड़ ने एक बात सुझाई,
क्यों  करें जमीन खुदाई,
जो भी होगा मिलेगा भाई,
ऐसी है तरकीब लगाई,

तब चूहे को था बुलवाया,
सर्च वारंट दे जमीन खुदवाया,
एक था तहखाना तब मिला,
नेता का जमघट जहा लगा,

तब भालू ने पूछ तांछ की,
नेता जी की हुई पिटाई,
नेता जी ने कुछ  बोला,
तब गीदड़ ने सूअर को भेजा,


नेता जी की बड़ी नाक में 
सूअर ने नाक लगा के खीचा,
निकली मक्खियाँ घबराई,
भूखी थीं और थीं वो सताई,

एक मक्खी ने हिम्मत करके,
बड़े काम की बात बताई,
हैं नेता जी बड़े लालची,
हैं कायर और आतताई,

सब जनता का माल खा गए,
देश हमारा बेच खा गए,
जब  बचा कुछ भी भाई,
मैले पे है नजर गड़ाई,

अब मक्खी भी मरेगी भूखी,
इस पर मक्खी है घबराई,
तब कौए ने किया परीक्षण,
नेता जी से बदबू आई,

मक्खी की ये बातें सुनकर,
सबके कान खड़े हो गए,
भौहे थी सबकी तर्राई,
गीदड़ ने तब पूछ हिलाई,

मक्खी की फ़रियाद सुनी जब,
शेर ने है मधुमक्खी भेजी,
मधुमक्खी ने लालच देकर,
नेता जी पे अंडे दे गई,

नेता जी का किया बंद मुहं,
मक्खी का हक उसे दे गई,
नेता जी पर छत्ता दे कर,
नेता जी को सजा दे गई,
-   डॉ. सुधीर कुमार शुक्ल " तेजस्वी" 

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