बुधवार, 27 जनवरी 2016

तू चले चल, बस बढे चल !



तू चले चल, बस बढे चल, लौ को कर तीक्ष्ण, 
एक दिए की तरहा, तू जले चल, बस बढ़े चल,

अब हौंसला न टूटे, चाहे कोई भी अब रूठे,
आग को दिल में जला, तू चले चल, बस बढ़े चल,

राह कठिन, है कंटीली, दुर्गम है, पथरीली, 
समय को कर परास्त, तू लड़े चल, बस बढ़े चल,

दिए को बना मशाल, स्वराज को लक्ष्य बना, 
शिखर हो या समंदर, तू चढ़े चल, बस बढ़े चल,

ये आंधी जरा थमी है, अपनों ने जो छली है,
बन कर बबंडर, तू उड़े चल, बस बढ़े चल, 

ये कारवां न रुके, न भटके, सजग हो, सबल हो,
एक नदी की तरहा, तू बहे चल, बस बढे चल, 

                                             -डॉ. सुधीर कुमार शुक्ल "तेजस्वी" 

एक लड़का था दीवाना सा !



एक लड़का था दीवाना सा, एक लड़की पे वो मरता था,
सबसे छुपाके, ग़मखाके, तिल- तिल कर वो घुटता था,

घुट- घुट के, मर- मर के उसकी यादों को वो बुनता था, 
खून से स्याही चुराकर, सपनो में रंग भरता था, 


सुन ना ले आहट कोई, न जाने क्यों वो डरता था,
अपनी धड़कन को भी वो, चोरी- चोरी सुनता था,

रोता था अंदर से, पर, बहार से वो हँसता था,
अपने प्यार को खोकर वो, घुट-घुट कर वो जीता था, 

जब भी मिलता था मुझसे, हंसके पुछा करता था, 
ये प्यार क्यों होता है, आखिर ये होता क्यों है, 

                                         -डॉ. सुधीर कुमार शुक्ल " तेजस्वी"