बुधवार, 22 अगस्त 2012

कश्ती को डुबोते देखा है



किनारों से टकराकर,
लहरों को बिखरते देखा है,
रेत में डूब कर यूँ ही, 
उनको मिटते देखा है,

हवा के पागल झोके,
जब मौत बनकर मंडराते हैं,
इस तिनके को क्या कहूं,
बरगद को भी उखाड़ते देखा है,

जीवन की इस नदिया में,
कठिन धार जब आती है,
उस भंवर को मैं क्या कहूं 
कश्ती को ही डुबोते देखा है, 

उनके ईमान को मैं क्या कहूं, 
गैरत का हाल मैं क्या कहूं,
मैंने खून को बनते पानी, 
उस पानी को भी सड़ते देखा है 

जिन्दगी की रफ़्तार में,
सैलाब जब आता है कामयाबी का,
इस जमीन को मैं क्या कहूं, 
दिलों को भी फटते देखा है, 

इस  दुनिया के छलावे में,
अपने और गैरों के भुलावे में,  
इस बदलती जुबान का क्या,
मैंने बाप भी बदलते देखा है,

शुक्रवार, 10 अगस्त 2012

हे गोपाल, हे नटवर





हे गोपाल, हे नटवर, 
राधा के मोहन, 
तुम  हो पधारे आज,
भक्तन सुखकारी,

यशुदा के लाला तुम,
नन्द के कन्हाई,
देवकी के लाडले तुम,
वासुदेव  प्राण प्यारे,

मधुसूदन, नारायण,
श्याम तुम कहलाते,
रणछोर बने तुम,
जगन्नाथ कहलाते,

तुम तो हो परंतप,
तुम हो अविकारी,
धर्म की धुरी हो तुम,
तुम हो अविनाशी,

गोपियों को मान दिया,
माखन चुराके,
सखियों को धन्य किया,
महारास रचा के,

बंसी की मधुर धुन पे,
जग सारा नाचे,
तुमतो हमारे नाथ,
सब को  तुम तारो,

यमुना को तार दिया,
चरण छुआ के,
कालिया को तार दिया,
नाच नचा के,

गोकुल का वही माखन
मथुरा के पेंडे,
ब्रन्दावन के मधुर गीत,
तुमको पुकारें,

आजाओ मेरे नाथ,
मन में विराजो,
इस पापी जन को,
बांसुरी सुना दो,

गुरुवार, 2 अगस्त 2012

युद्द नाद



आग का दरिया जो दिल में है
उसे हिमालय की ओर तो जाने दो,
उनके  सिंघासन  बहुत उचाई पर हैं,
धारा उलटी तो आज बहाने दो,

न रोको आज उबल रहा है जो लावा,
धरा को फाड़ कर उसे बाहर तो आने दो,
सब्र का बान तोड़ दो आज,
बाढ़ आती है आज तो आजाने दो,

कब से इन्तजार है अपने हक का,
अपने हिस्से के दो टुकड़ों, खुशियों का,
साल जाते रहे, दशक भी गुजर गए,
आह को सीने में दबाकर यूँ ही बैठे रहे,

आज बहा दो आंसू की धार दिल से,
सैलाब आता है आज तो आजाने दो,
अपना हक तुम्हे है छीनना अपनोसे,
घबराओ नहीं बस डट कर संग्राम करो,

दिखा दो इन शोषकों को अपनी शक्ती,
अहिंसा की तलवार से ऐसा घाव करो,
अटल रहो अंगद के एक पांव की तरह,
इनके कुकर्मो का सारा हिसाब करो,

कटा दो सर अपना गर जरूरत हो,
भारत - जन पर जीवन कुर्बान करो,
भगत, गाँधी की रूह भी हँस पड़े,
अबकी ऐसा ही कोई युद्द नाद करो, 


जय हिंद! जय भारत-जन!

बुधवार, 1 अगस्त 2012

शंखनाद है संपूर्ण क्रांति का



वहां तुम जलाओ यहाँ हम जलाये,
मिलकर सब दिये मशाल बने,
एक साथ थाम कर इस मशाल को,
सच्चे गणतंत्र का सपना साकार करें, 

सब के दिलों में जो धधकती आग है,
वो बाहर निकल आज हवन कुण्ड बने,
राष्ट्र-यज्ञ मागता है फिर से बलिदान,
इस वेदी में खुद को बलिदान करें,

एक - एक से मिलकर बनता है कारवां,
घर से निकाल कर इसे और सशक्त करें,
मूक दर्शक नहीं बनना है अब हमे,
आओ सब मिलकर युद्ध घोष करें,

शंखनाद है ये संपूर्ण क्रांति का,
आओ हम सब इसके गवाह बने,
भारत- जन के हित के खातिर,
आओ हम भी अपने हिस्से का बलिदान करें,


जय हिंद !! जय भारत!! जय भारतीय गणराज्य !!