सोमवार, 9 दिसंबर 2013

"आप" के उदय के मायने !


कल का दिन (८। १२। २०१३) स्वतंत्रता उपरांत भारतीय प्रजातंत्र के लिए सबसे महत्वपूर्ण दिन था।  कुछ लोग इसे जयप्रकश आंदोलन से कम आंकते हैं, परन्तु मेरे नजर में ये उससे ज्यादा है, क्योंकि जय प्रकाश आंदोलन में कांग्रेस से पीड़ित लगभग सभी पार्टियां साथ आगईं थी और कांग्रेस को सबक सिखाया। परन्तु कल एक ऐसे शिशु ने अपना पराक्रम सिखाया है जिसकी उत्पत्ति दशकों से राजनीति द्वारा उपेच्छित, और पीड़ित आम आदमी की कोख से हुई है।  अब कल के परिणामों के लघु-और दीर्घगामी परिणामों कि बात करें तो, यह भारतीय राजनीति में आमूल परिवर्तन कि शुरुआत है।  अभी तक देश की  दो बड़ी पार्टियां एक -एक समुदाय को झूठा समर्थन देकर,उन्हें लड़ाकर अपनी अपनी राजनीतिक रोटी सकती रही हैं।  एक तरफ कांग्रेस ने मुस्लिम भाइयों/बहनो को हिंदुओ का डर दिखा कर सत्ता तक पहुँचती  रही, दूसरी  तरफ बीजेपी ने हिन्दू भाइयों/बहनो का मुसलमानो का डर दिखाकर उनका मसीहा बनने की कोशिश करती रही। परन्तु वास्तव में इन दोनों को किसी की  कोई परवाह नहीं थी, ये सिर्फ अंग्रेजों कि फूट डालो और शासन करो कि नीति को ही आगे बढाती रहीं हैं ।  इसी तर्ज में कुछ और क्षेत्रितय दलों का उद्भव हुआ जिनमे राष्ट्रीय जनतादल, समाजवादी पार्टी, और बसपा प्रमुख हैं, इन्होंने जाति के आधार पर समाज को आपस में लड़ाना शुरू किया, और इसका उन्हें लाभ भी हुआ।  इस बात ये उत्साहित होकर लगभग सभी दल सिर्फ संप्रदाय और जाति को बात कर, आपस में द्वेष फैला कर  ही अपनी राजनीती करने लगे।  बाकी, आम जनता के और देश के मुद्दे  पीछे होते गए।  यहाँ तक कि राजनीति के पंडित, और समाज शास्त्री  भी इस बिखराव को भारत का अभिन्न अंग बताकर इसका पोषण और संवर्धन करने लगे।  

अब चुनाओं में आम आदमी के भले का कम और जाति और संप्रदाय कि गणित ज्यादा चलने लगा।  देश में कई बार तो लोगों के खून कि होलियाँ खेली गई, लोगों को मरवाया गया, साम्प्रदाइक और जातिगत दंगे फैलायेगए, जो सिर्फ इन राजनीतिक दलों द्वारा प्रायोजित थीं।  सामान्य नागरिक तो असहाय था, उसे राजनीति से अरुचि होगई, उसने अपने आपको खुद तक सीमित कर लिया।  इससे हालत और बदतर हुई, राजनीतिक दल सिर्फ अपनी झोली भरने के बारे में सोचने लगे, उन्हें आम आदमी और देश से कोई सारोकार नहीं रहा, यहाँ तक कि विदेशी ताकतों और पडोसी देशों के सामने देश हित से समझौता किया गया । अब शुरू हुआ घोटालों का दौर, व्यापारिक घरानो  और राजनेताओं का अद्भुत संगम इस देश और आम आदमी को घुन कि तरह खाने लगा। अपनी उच्च आकान्क्षाओ के लिए इन दलों ने समय - समय पर देश कि सम्प्रभुता और अखंडता को भी खतरे में डाला।  लोगों ने राजनीति के बारे सोचना, बात करना बंद कर दिया, कुछ लोग जो सोचते, करना चाहते वो सिर्फ लेखों, कविताओं के माध्यम से ही अपनी भड़ास निकाल पाते, पर खुद को असहाय  पाते।  इस भ्रस्ट व्यवस्था और राजनीति को देश का भविष्य मान कर या तो, निराश हो गए, या फिर खुद को उसी व्यवस्था के अनुरूप ढालने  लगे।  तभी भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के रूप में कुछ साहसी लोग सामने आये और आम आदमी का दबा गुस्सा फूट कर बाहर आगया, आंदोलन को अपार जन समर्थन मिला। लोग घरों  से निकल कर सड़कों में आने लगे, एक आशा दिखी कि कुछ तो बदलेगा, परन्तु ये राजनेता जो इस भ्रष्ट व्यवस्था की  पूँजी खा रहे थे, वो कैसे हार मानते।  अतः उस आंदोलन को चुनौती देने लगे, उसे कुचलने कि कोशिश कि, आशय लोगों पर बल प्रयोग भी हुआ और उसे विस्फ़ोट से उससे उत्पन्न हुई आम आदमी पार्टी।  

आम आदमी पार्टी जैसा कि नाम है, आम लोगों को मिला कर बनी, वो लोग जो इस भ्रष्ट व्यवस्था से पीड़ित थे, असहाय थे, परन्तु विकल्प न होने के कारन शांत थे, गुम थे,  इस पार्टी को हांथों - हाँथ लिया।  चूँकि यह पार्टी जाति और संप्रदाय पर आधारित नहीं थी, इस पर भ्रष्टाचार के लिए कोई गुंजाइश  नहीं थी, अतः आम आदमी का अभूतपूर्व समर्थन मिला।  अब, जब इस पार्टी को पहली और उत्तम सफलता मिली है, परिणामत भारत का राजनीतिक परिदृश्य बदलने कि प्रबल सम्भावना दिखने लगी है।  ये जीत यह स्थापित करती है, कि भारत का आम आदमी भ्रष्ट नहीं है, उसे विवश किया गया है इस भ्रष्टाचार को अपनाने के लिए।  यह जीत यह भी सिद्ध करती है, कि भारत का आम नागरिक इस संप्रदाय और जातिगत द्वेषों से ऊब चुका है, अभी तक विकल्प न होने के कारन मजबूरी में  दोनों बड़ी साम्प्रदाइक पार्टियों में से एक को चुनता आरहा है। परन्तु उसे जैसे ही एक छोटा ही सही पर साफ -सुथरा विकल्प मिला उसने उसका हाथ थमने में जरा भी संकोच नहीं किया।  ये जीत यह भी बताती है कि आम आदमी सबकुछ देखता है, सब समझता है, उसे अब बेबकूफ बना कर आप देश में ज्यादा दिनों तक सत्ता नहीं कर सकते। ये जीत यह भी स्थापित करती है कि हम  भारतीय, खुशहाल, और शांतिपूर्ण जीवन जीना चाहते हैं।  इस नफरत कि राजनीती को हम  पूरी तरह से नकारने के लिए तैयार हैं।  ये जीत अबतक स्थापित इस बात को कि "चुनाव बिना काले धन और बल के नहीं जीते जा सकते हैं" इसे भी नकारती है।  और यह स्थापित करती है कि चुनाव कम पैसों और साफ़-सुथरी राजनीति से जीते जा सकते हैं।  आज देश का समाज जाग रहा है, उसे पता है उसके लिए, देश के लिए क्या अच्छा है, क्या बुरा, और वह अपना मत भी दे रहा है, भाग भी ले रहा है।  यह जीत स्थापित पार्टियों को यह भी सोचने के लिए जरूर विवश करेगी, कि अगर उन्होंने आम आदमी कि परवाह करना अब भी शुरू नहीं किया तो वो नेस्तनाबूद हो जायेगी।  यह जीत भारतीय समाज में खास आदमी कि परिकल्पना को भी कमजोर करेगी।  अंततः ये जीत सही मायनो में सत्ता की बागडोर जनता के हांथों में सौंप कर उसे को शासक होने का एहसास कराएगी।  

आज भारत कि राजनीति करवट बदल रही है, भारत बदलने कि कोशिश कर रहा है, एक रौशनी जो प्राची से दिख रही है, उसके सूरज बनने का समय आरहा है।  आइये हमसब मिलकर, एक जुट होकर इस बदलाव के भागीदार बने।  अपने समाज को खुशहाल, समृद्ध और  देश को महान बनाने में अपना योगदान दें।  

वन्देमातरम ! जय हिन्द ! 

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