गुरुवार, 12 दिसंबर 2013

राम लला हम आयेंगे ....तुम्हे झुनझुना पकड़ा जायेगे .... !


झुनझुना का जीवन में महत्व है, बच्चों को बहलाने के लिए अक्सर झुनझुना का उपयोग किया जाता है।  बच्चा रोये, झुनझुना पड़ा दो।   जिद करे झुनझुना पकड़ा दो।  यहाँ तक तो अच्छा है, पर हमारी राजनीति  में भी झुनझुना का प्रयोग बहुत  पहले से होने लगा था।  कमोवेश सभी पार्टियां, आम आदमी को अभी तक सिर्फ झुनझुना ही पकड़ती रही हैं, कभी कुर्सी तक पहुचने के लिए तो कभी, कुर्सी बचाने के लिए।  इस झुनझुने का इतना असर हुआ कि ६५ सालों से भूखी, गरीब जनता, कभी चूँ -चाँ तक नहीं करती, रोने की तो बात ही नहीं है।  कभी इसका झुनझुना पकड़ती  है कभी उसका।  सबसे पहले कांग्रेस ने झुनझुना पकड़ाया, अल्पसंख्यक वर्ग को और पिछड़ी जातियों को, एक की सुरक्षा का, दुसरे को आरक्षण का, दोनों बहुत खुश हुए बदले में कांग्रेस कि कुर्सी सुरक्षित हो गई , ये अलग बात है कि न तो इस झुनझुने से अल्पसंख्यकों का कुछ हुआ, न पिछड़ों का।  अगर ये झुनझुना नहीं होता तो, इस ६५ साल में इनकी हालत सुधर गई होती । फिर आई बीजेपी उसे लगा हमें भी सत्ता कि कुर्सी तक जाना है, अब अल्पसंख्यक और पिछड़ी जातियां तो पहले से कांग्रेस के झुनझुने से खेल रही थी, तो उन्हें हिंदुओं और अगड़ों का साथ चाहिए था।  बीजेपी ने सोचा हम इंसानो से बात क्यों करें सीधे भगवान  से बात करते हैं।  बीजेपी ने कहा। … राम लाला हम आयेंगे … झुनझुना तुम्हे दे जायेंगे (मंदिर वहीं बनाएंगे) ! अब क्या था, भगवान् के भक्त खुश, भक्त की  ख़ुशी में ही भगवन की ख़ुशी थी।  बीजेपी को कुर्सी में बैठाया ….... फिर क्या भगवन झुनझुने से खुश और ये सत्ता से। … अगर इन्हे सही में राम मन्दिर के लिए कुछ करना होता तो ६ सालों के शासन  में कुछ तो करते !…पर नहीं वो उस झुनझुने को बना कर रखना चाहते हैं.… अभी आगे भी तो चुनाव  लड़ना है …  !! फिर या करेंगे !

अब क्या था , बीएसपी ने भी पिछड़ी जाति के लोगों को झुनझुने का पिटारा खोल दिया, और माया जी कुर्सी तक उछाल मारी, गिरने ही वाली थी, कि उनके एक सिपहसलार ने अगड़ों कि तरफ भी एक छोटा सा झुनझुना फेक दिया, और वो कुर्सी कर जैम गई।  ये बात अलग है कि माया जी पार्क में अपनी मूर्तियां लगवाने के अलावा पिछड़ी  जातियों के लिए कुछ नहीं किया।  समाजवादी पार्टी ने तो अल्पसंख्यकों से साथ- साथ, बच्चों को लैपटॉप और साइकल का  झुनझुना दिया और अपने निकम्मे बेटे को सीएम बनाया। अब हालत ये है कि गुंडे सीएम साहब कि छाती में उड़द दर रहे हैं, और वो अपने झुनझुने (कुर्सी) को देखकर खुश है।  लगभग सभी दलों का यही हाल है।     झुनझुने की ये कहानी तो बहुत लम्बी है .... परन्तु आपलोगों को  बोर न करते हुए मैं आगे बढ़ना चाहता हूँ।  अब  आम आदमी पार्टी के इस झुनझुनागिरी को ख़तम करने कि कोशिश कर रही है।  …अब देखते हैं आगे क्या होता है।  अगर देश कि जनता बड़ी हो गई होगी तो, इस झुनझुने का किस्सा यही ख़तम हो जायेगा, और अगर जनता अभी भी बच्ची ही होगी तो इसी तरह झुनझुने से खेलती रहेगी, और ये नेता आम आदमी कि जिंदगी और देश का झुनझुना बनाते रहेंगे। 

वन्देमातरम  !

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें