शनिवार, 20 अक्तूबर 2012

अशोक का शोक या देश का शोक !



वरिष्ठ आइ ए  एस  अधिकारी डॉ अशोक खेमका का जिसतरह हरियाणा सरकार ने उच्च न्यायालय के निर्णय और कानून की धज्जियाँ उड़ाते हुए ट्रान्सफर किया है, उससे राजनीती का एक फूहड़ और डरावना चेहरा सामने आता है, एक ईमानदार अफसर का 19 साल में 43 बार ट्रान्सफर होता है, ये अपने आप में एक बहुत बड़ी कहानी कहता है, डॉ खेमका ने ज्यों ही राबर्ट और डी एल ऍफ़ डील की जांच शुरू की, कंप्यूटर  सर्वैर से डाटा रोक दिया गया और उसी रात को 10 बजे उन्हें ट्रान्सफर आर्डर थमा दिया गया। ये हालत पूरे भारत की है कही, भी कोई ईमानदार व्यक्ति काम नहीं कर सकता, अगर कोशिश भी करेगा तो रस्ते से हटा दिया जायेगा। ये माफिया तंत्र और सरकारों का जाल इतना व्यापक है की एक बार मकड़ी के जाल में फस कर कोई बेचारा कीड़ा बच सकता है, परन्तु इस भ्रस्त तंत्र में कोई इमानदार नहीं रह सकता। आज जितने घोटाले सामने आरहे हैं और देश के बड़े राजनीतिक घराने उन्हें पोषित करते पाए गए हैं, इससे देश के लोक तंत्र पर प्रश्न चिन्ह खड़ा होता है। मुझे ऐसा लगता है की आज देश यदि खड़ा है तो खेमका जी जैसे चंद  अफसरों की वजह से। भारत के जबाबदार नागरिक होने के नाते हमारा ये फर्ज है की ऐसे ईमानदार लोगों के साथ हम अपनी एकजुटता प्रदर्शित करें, ताकि और ईमानदार लोग सरकार के भ्रस्ताचार के खिलाफ आवाज उठाने का सहस कर सकें। उससे भी आंगे जन- जन को जागरूक करना चाहिए ताकि सरकार को घुटने टेकने के लिए मजबूर होना पड़े, और इस भ्रष्टाचार रूपी विषैले नाग से आम जनता की रक्षा हो सके ।  जिस दिन ये आवाज पूरी तरह बंद हो गई उस दिन इस देश को "बनाना रिपब्लिक" बनने  में जरा भी देर नहीं लगेगी।  

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