मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012

बापू का जन्मोत्सव (व्यंग)




मेरे प्यारे दोस्तों हम हरसाल बापू का जन्म दिन मानते हैं, स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस मानते हैं, और प्रतिमा में फूल चड़ने के बाद सब भूल जाते हैं, हमें अपने जीवन में ये याद नहीं रहता की इन सब पर्वों के मनाने का असल उद्देश्य क्या है, हम इन महान व्यक्तियों द्वारा स्थापित आदर्शों को जरा भी अनुसरित करने का प्रयास नहीं करते उसी पर एक कटाक्ष्य है मेरी ये कविता!!


आओ आज मनायेबापू का जन्मोत्सव फिर एक बार,
सिद्धांतों की बलि चढाएंसंस्कारों का हो बलिदान,

सत्यअहिंसाभोग लगायेंपूरी हो अपनी दरकार,
अनाचार का दीप जलाये, लोभ का बने केक हर बार 

कभी किसी का भला  सोचें ही करें अतिथि सत्कार,
उत्तरदाइत्त्यों से मुह मोडेंभरती रहे जेब हर बार,

बापू को दें श्रद्धांजलिकपटद्वेषघूसखोरी की,
जन्म दिवस पर देन कुछ तोहफाअर्थी उनकी बातों की,

आओ आज मनायेबापू का जन्मोत्सव फिर एक बार...
सिद्धांतों की बलि चढाएंसंस्कारों का हो बलिदान....

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