गुरुवार, 18 अक्तूबर 2012

नासमझ !!



देश की ताज़ा परिस्थितयों में आज के नेताओं को एक सुझाव और चेतावनी।।।।।।


तेरी नासमझी का ये आलम।
न मैं समझूँ न मेरी ये कलम।।
कैसा है शोर, क्यूँ  है ये मातम।
कैसे बन गया तू इतना निर्मम।।

मिथ्याभिमान की बेड़ियों में।
निज स्वार्थ के इस भेड़िये में।।
कब तक बंधक बना रहेगा।
कब तक यूँ ही जकड़ा रहेगा।।

खोल दे बेड़ियाँ, नहीं टूट जायेगा।
तेरा अभिमान यूँ ही बिखर जायेगा।।
अपनी बंद आखें तो खोल।
अपने अन्दर झांक और टटोल।।

लोगों के भविष्य से ऐसे न खेल।
अपने कर्म से यूँ मुह न मोड़।।
समय की आहट को तो पहचान।
पास आती आफत से हो सावधान।।

देदे उनका दाना, उनका हक।
नहीं तो तू यूँ ही मिट जाएगा।।
अहंकार से भरा तेरा ये सर।
यूँ ही एक दिन कट जायेगा।।

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