चाँद की रौशनी में, रात को जलते देखा है,
सूरज की तपन को भी, शीतल होते देखा है,
कभी दिये को तूफ़ान से जीतते देखा है,
कश्ती को भॅवर में दम तोड़ते देखा है,
कभी सिंह तो तिनका चुनते देखा है ,
गधे को सिंघासन में बैठे देखा है,
बुरे वक्त पे तो खुदा भी साथ नहीं देता,
कर्मो का बहाना लगा वो भी छोड़ देता है,
ये समय का खेल है, और कुछ नहीं,
हमने तो, अपनी सांस से घुट के मरते देखा है,
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