शनिवार, 9 अगस्त 2014

सखा !



उर की पीर उरही मा राखे,
भेद कहे तो जगहुँहिं जाने,

बूझे सखा, असखा न बूझे,
दोनोहुँ जन को ईशहिं राखे,

चूड़ामणि, मुद्रिका दिखाई ,
रामसिया की सुधि बतलाई,

मित्र सुदामा जी के तंदुल,
या सबरी के बेर हो भाई,

सखा कि पीर सखा के हिरदय,
सबहीं ने तुरतहिं पहुंचाई,

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