खिली है धूप आँगन में, आज फिर आईने जैसी,
बरसती आग है लेकिन, झडी पावस सरीखे की,
चलने फिर लगी जैसे, हवांए आज आंधी सी,
पलटने वो लगी पन्ने, किताबे-
ऐ-कहानी की,
कहीं खुशियों
की बारिस है, कहीं ग़म के किनारे भी,
कहीं अपने पराये हैं, कही गैरों के साए भी,
कही चलने की जल्दी है, कहीं रुकने की मस्ती है,
कहीं खुशबू है यादों में, कहीं कांटे फ़िजाओं में,
कहीं उड़ता हवाओं में, कहीं गिरता शिलाओं में,
कहीं ममता का मरहम है, कहीं यादें जफाओं में,
कहीं जन्नत की चाहत है, कहीं ख्वाहिश
जहन्नुम की,
कहीं है सामने दरिया, कहीं दीखता किनारा भी,
कहीं धुधली सी यादें हैं, कहीं चुभती कटारें भी,
कहीं दिलबर की बाहें हैं, कहीं फ़ुरकत सदायें भी,
कहीं मिलने की जल्दी है, कहीं जल्दी बिछड़ने
की,
कहीं पाने की ख्वाहिश
है, कहीं खोने की मर्जी भी,
कहीं पे जख्म दमन पे, कहीं पे दाग़ मन में भी,
कहीं गैरों के अहसान हैं, कहीं नाखून अपने भी,
कहीं अफ़सोस राहों पर, कहीं हसरत किनारों
पे,
कहीं खुद पे ही गुस्सा है, कहीं खालिश खुदाई पे,
पलटती है हवा पन्ने, किताब- ए -आफ़साने की,
फटे पन्नो में है, सिमटी, कहानी इस दीवाने की,
कुछ रचनाए सिर्फ सराहनीय होती है ..
जवाब देंहटाएंजिनके बारे मैं हम अज्ञानी कोई टिपण्णी नहीं दे सकते ...
बहुत हि अच्छा प्रयोग है ...साधुवाद ..कभी रुबाई तो कही गजल ...
कभी दोहा याद आता है तो कभी शेर...मुक्तक का नया संकलन है शायद ...बधाई मित्र निःसंदेह मन को स्पर्श करता है
Bahut bahut aabhar Vipul bhai utsaahwardhan ke liye...
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