शनिवार, 19 जुलाई 2014

पूरी रात सिर्फ एक मच्छर को ढूढ़ता रहा !


कल रात की बात है, मैं निद्रा माँ को गोंद में विश्राम कर रहा था, और मेरा मन स्वप्नलोक में कुलांचे भर रहा था।  तभी एक मधुर ध्वनि मेरे कर्ण  पटल को भेदती हुई, सहस्रों तंत्रिकाओं के सहारे मस्तिष्क तक पहुंची।  

सुयश ! एक मच्छर बहुत परेशान कर रहा है।  ये मधुर ध्वनि मेरी धर्म पत्नी की थी (आप अन्यथा न लें इसलिए ये बताना जरूरी है कि पत्नी मुझे प्यार से यही बुलातीं हैं !..... ……… "मच्छर" ! ….... नहीं....... "सुयश"…… हा … हा …)

मैं - उसी क्षण अपना स्वप्न विहार छोड़ कर वापस आगया ।  क्या हुआ? बहुत परेशान कर रहा है क्या? 
पत्नी - एक मच्छर बहुत परेशान कर रहा है।
मैं एक रक्षक पति की तरह उठा और बोला - अभी मारता हूँ इसे, तुम परेशान न हो !  यहाँ ये बताना भी जरूरी है की उस समय रात  के करीब २ बजे थे। 
मैंने एक हाथ में मच्छर मारने वाला रैकेट लिया, और दुसरे हाँथ में मोबाइल (प्रकाश के लिए)। लाइट नहीं जल सकता था नहीं तो बिटिया रानी जाग जातीं।  

अब मैं एक मच्छर की खोज में लग गया, मोबाइल और इलेक्ट्रिक रैकेट के सहारे। अब इतने अँधेरे में एक मच्छर को ढूढ़ना कोई आसान काम तो होता नहीं।  कुछ देर बाद थक कर लेट गया।  
तभी आवाज आई - सुयश ! (मैं समझ गया मच्छर फिर से मेरी पत्नी को परेशान कर रहा है) 

मैं चौकन्ने पति की तरह उठा, और लग गया मच्छर ढूढ़ने में।  

एक बार फिर असफल होकर लेट गया।  

कुछ देर बाद फिर वही आवाज - सुयश !

मैं फिर सजग होकर उठा, एक हाथ में इलेक्ट्रिक रॉकेट, दूसरे में मोबाइल ले मच्छर की तलाश में लग गया।  मैंने सोचा अब जब तक इस  मच्छर को नहीं मार लूँगा लेटूंगा नही ।  

फिर क्या था जब सूर्यदेव की रोशनी झरोखे से आई और मेरी पत्नी की नींद लेकर चली गई।  तब तक मैं मच्छर की तलाश में बैठा रहा।  

पत्नी के जागने के बाद मुझे पता चला कि  वो तो स्वप्न देख रहीं थी, और सपने में कुछ बड़बड़ा रहीं थी  !

आप लोग हंस रहे होंगे! ……कोई बात नहीं ! ....... मुझे इस बात की संतुष्टि है, कि एक स्वप्नीले-मच्छर के द्वारा ही सही, एक रक्षक पति के रूप में मैंने खुद को स्थापित कर लिया।  ……वो भी अपने मन में !  

अब पत्नी ने मेरे बारे में क्या सोचा ये तो मैं आपको नहीं बता सकता।  क्योंकि इतने परिश्रम के बाद भी अगर आपकी पत्नी आपको बेबकूफ कहे तो अच्छा थोड़ी लगता है।   

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