सोमवार, 25 अगस्त 2014

मेरे हुज़ूर



उनकी यादों के बिछौने पे, रात गुजरी है,
हम तो तनहा नहीं, साँसों से सांस गुज़री है,

क्या गम है, गर उन्होंने रुसवा हमे किया,
मेरे धड़कन पे तो आज भी वो बसती हैं , 

मेरी हर -एक आरजू उनका दीदार करे,
मेरे मेहबूब की ये भी सरपरस्ती है, 

मेरे हुज़ूर के जलवे का कोई क्या कहे,
उनके आने पे ही तो रोज शाम ढलती है, 

उनके आने पे तो महताब डरा है यारो,
तभी तो फलक की गोद में छुपा बैठा है,

उनके तसब्बुर से हिलाल रुसवा है यारो,
तब क्या होगा जब अब्र से वो देखेंगी,

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