तू चले चल, बस बढे चल, लौ को कर तीक्ष्ण,
एक दिए की तरहा, तू जले चल, बस बढ़े चल,
अब हौंसला न टूटे, चाहे कोई भी अब रूठे,
आग को दिल में जला, तू चले चल, बस बढ़े चल,
राह कठिन, है कंटीली, दुर्गम है, पथरीली,
समय को कर परास्त, तू लड़े चल, बस बढ़े चल,
दिए को बना मशाल, स्वराज को लक्ष्य बना,
शिखर हो या समंदर, तू चढ़े चल, बस बढ़े चल,
ये आंधी जरा थमी है, अपनों ने जो छली है,
बन कर बबंडर, तू उड़े चल, बस बढ़े चल,
ये कारवां न रुके, न भटके, सजग हो, सबल हो,
एक नदी की तरहा, तू बहे चल, बस बढे चल,
-डॉ. सुधीर कुमार शुक्ल "तेजस्वी"
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