एक लड़का था दीवाना सा, एक लड़की पे वो मरता था,
सबसे छुपाके, ग़मखाके, तिल- तिल कर वो घुटता था,
घुट- घुट के, मर- मर के उसकी यादों को वो बुनता था,
खून से स्याही चुराकर, सपनो में रंग भरता था,
सुन ना ले आहट कोई, न जाने क्यों वो डरता था,
अपनी धड़कन को भी वो, चोरी- चोरी सुनता था,
रोता था अंदर से, पर, बहार से वो हँसता था,
अपने प्यार को खोकर वो, घुट-घुट कर वो जीता था,
जब भी मिलता था मुझसे, हंसके पुछा करता था,
ये प्यार क्यों होता है, आखिर ये होता क्यों है,
-डॉ. सुधीर कुमार शुक्ल " तेजस्वी"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें