रविवार, 8 मई 2016

पानी !

कौन कहता है पानी नहीं है,
ज़रा आँखें तो खोलो मेरे यार,
हर तरफ पानी ही पानी है,                      
                   


सागर के नाम में पानी है,
बादल के राग में पानी है,
दूध के साथ में पानी है,
धधकती आग में पानी है,
            फिर तुम क्यों कहते हो पानी नहीं है....

रिश्तों के मान में पानी है,
बेटी की आँख में पानी है,
माँ के अंचल में पानी है,
बच्चे के भाग्य में पानी है,
           फिर तुम क्यों कहते हो पानी नहीं है....

प्यार और विश्वास में पानी है,
दुल्हन के अरमान में पानी है,
बंद घर की चौखट में पानी है,
खपरैल की छत में पानी है,
          फिर तुम क्यों कहते हो पानी नहीं है ....

राम और रहीम में पानी है,
गीता और कुरान में पानी है,
कोयल की कूक में पानी है,
गरीब की चींख में पानी है,
        फिर तुम क्यों कहते हो पानी नहीं है ....

जवान के होश में पानी है,
यौवन के जोश में पानी है,
नशों का खून भी पानी है,
नेताओं के होंठ में पानी है,

ऐ दोस्त देखो ज़रा हर तरफ पानी - ही - पानी है,

सिर्फ एक गिलास ही खाली है.......

यह कविता मूल रूप से "कविता अनवरत"  अयन प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हो चुकी है !


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