शुक्रवार, 1 मई 2015

सुगबुगाहट !


पता नहीं कब उनकी सुगबुगाहट,
खर्राटे में बदल गई,
मेरी सिसकियाँ,
नींद पर भारी पड़ गई,

अब तो आँखे भी पथरा गई हैं, 
जागने का इंतज़ार करके,
नेताओं को कुम्भकर्ण क्यों  कहते हैं, 
प्रमेय फिर से सिद्ध हो गई,

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