बुधवार, 24 सितंबर 2014

तुम हो बड़े लाज़वाब !



जो भी हो, तुम हो बड़े लाज़वाब,
तुम देते हो हर सवाल का समुचित जवाब,

केदारनाथ का सैलाब हो या, कश्मीर की बाढ़,
भुज का भूडोल हो या, शहरों की आग,

तुम्हे खूब आता है, सबक सिखाना,
बिगाड़ा हुआ बैलेंस बनाना, और फिर बनाना, 

नदियों का सत्यानाश, हो या जंगलों की कटाई,
हम सबने की तुम्हारी बहुत धुलाई,

पहाड़ों का छरण हो, या पत्थरों की जंगल,
हमने किया तुम्हारा उत्पीड़न, और सिर्फ उत्पीड़न,

माना  तुम गंभीर हो, धीर हो, पर बड़े वीर हो,
उधर सब्र टूटा, इधर साँसे, फिर निकलीं हज़ारों आहें,

जब इतना भयंकर है, रुदन ये तेरा,
जाने तब क्या होगा जब क्रुद्ध तू होगा,

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