कल शाम को मेरी धर्मपत्नी मेरा रुमाल धो रहीं थी। रुमाल में कुछ काले रंग जैसा लगा था।
पत्नी - ये क्या लगा है रुमाल में?
मैं - काजल
पत्नी - क्या !!!!!!! अब तुम ये भी करने लगे, किसकी आँखों का काजल है ?
मैं - ( बीच में रोकने की कोशश करते हुए) सुनो तो।
पत्नी - ( कंटीन्यूअस मोड में ) अब सुनने को क्या रह गया है। तुमने अपनी रुमाल में किसी और लड़की की आँख का काजल पोछा। मुझे तुमसे ये उम्मीद नहीं थी। ऑफिस में यही करते रहते हो। कौन है वो कोरियन, या इंडियन या कोई और गोरी ?
मैं - अरे सुनो तो !
पत्नी - मुझे कुछ नहीं सुनना। तुम्हारी हिम्मत कैसे हो गई ये सब करने की ? मैं तो तुम्हे चरित्रवान समझती थी। अब मुझसे कभी बात नहीं करना। मैं घर जा रही हूँ।
मैं - अरे सुनो तो।
पत्नी - अरे मैं अब तुम्हारी एक भी बात नहीं सुनूंगी मेरा कल का टिकट बुक करो। मैं पापा से बात करने जारही हुँ। अभी मजा चखती हों तुम्हे। अब तुम्हे पता चलेगा काजल पोछने का अंजाम क्या होता है। जब खुद खाना पकाओगे तब समझ में आएगा। जाओ बोलो उसी काजल वाली से खाना दे तुम्हे।
मैं - अरे वो अभी काम से काम १५ साल तक नहीं दे सकती।
पत्नी - अच्छा !!! १५ साल के बाद मुझे छोड़ोगे, फिर उसके साथ रहोगे ? हे भगवान ! क्या होगा मेरा। तुम इतने धोकेबाज़ निकलोगे मैंने सपने में भी नहीं सोचा था।
मैं - ( हालत और बिगड़ते हुए देख, एक ही सांस में ) मैंने "श्री" ( हमारी बेटी) की आँखों से काजल पोछा था ! ....... ( फिर आराम से) हम घूमने गए थे और तुमने उसकी आँखों में काजल लगाने की जगह भर दिया था। उसकी आँखों से आंसू आरहे थे। याद है न ? तब मैंने अपनी रूमाल से पोछा था। … पूरी बात सुन तो लिया करो।
पत्नी - ओह् ! …हाँ ! …याद आया ! …सॉरी बाबू ! …मैं तो बिलकुल पागल हूँ।
मैं - (मन ही मन) चलो तुमने स्वीकार तो किया।
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