सोमवार, 13 मई 2013

माया, मुलायम और नव- मनुवाद



भारत में तथाकथित मनुवाद को जाति व्यवस्था का द्योतक मन जाता है, और ख़ास कर पिछड़ी जातियां  मनु को घृणा की दृष्टि से देखती हैं। उन्हें लगता है या बताया गया है की उनके शोषण का एक मात्र उत्तरदाई मनु है। स्वतंत्रता के पहले से लेकर अबतक कई महापुरुषों ने अपने तरीके से सभी जातियों में समानता लाने का प्रयत्न किया, उदाहरनार्थ राजाराम मोहन राय, स्वामी दयानंद सरस्वती,  गुरु घासीदास, महात्मा ज्योतिराव फुले, महात्मा गाँधी  और डॉ अम्बेडकर इत्यादि ने महत्वपूर्ण योगदान दिए। अभी उस असमानता को मिटाने की तथाकथित लड़ाई चल रही थी की अचानक आज के दलित समाज के दो मसीहों (माया-मुलायम) ने एक नई- पिछड़ी जाति की पहचान की, और वो है " ब्राह्मण"।  कल भारत की जाति व्यवस्था के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण दिन था।  कल भारत से संसदीय चुनावों ले लिहाज से सबसे महत्वपूर्ण राज्य "उत्तर प्रदेश" में दो जगहों पर एक साथ " ब्राह्मण सम्मलेन" आयोजित किये गए। एक समाजवादी पार्टी के द्वारा दूसरा, बहुजन समाज पार्टी के द्वारा। दोनों पार्टियों ने ब्राम्हणों को उनका तथाकथित अधिकार दिलाने के वादे लिए, और इस बात पर भी जोर दिया की उनके अलावा ब्राम्हण समुदाय का कोई हितैसी नहीं है, और यह भी माना की स्वतंत्रता के बाद से ब्राम्हण समाज की उपेक्षा की गई है ।  ये समाचार सुनते ही मुझे एक नारा याद आया लगभग एक दशक पहले बहुजन समाज पार्टी ने दिया था "तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार" अर्थात ब्राम्हणों, वैश्यों और क्षत्रियों को जूते मारो। उस समय ये सुनकर एक ब्राम्हण परिवार से होने के नाते  मुझे बहुत बुरा लगा था।  मुझे ये नहीं पता था की ये सिर्फ सत्ता पाने के लिए किया जा रहा है। इस नारे का बहुत असर हुआ और बहुजन समाज पार्टी एक मजबूत पार्टी के रूप में उभरी, मायाजी को एक-दो बार मुख्यमंत्री की कुर्सी छूने  का अवसर भी मिला, परन्तु सत्ता के पूर्ण सुख से अभी वो वंचित थी, तभी सतीशचंद्र मिश्र जैसे उनसे सेवक ने ब्राम्हणों को मूर्ख बना कर उनका वोट हथियाने की योजना बनाई और माया जी को पांच वर्ष तक सत्ता का सुख भी प्राप्त हुआ। दूसरी तरफ मुलायम जो सत्ता में अपने सुपुत्र को पहुचाने के लिए लालायित थे, और इसके सिर्फ अल्पसंख्यक वोट पर्याप्त नहीं थे, उन्होंने पदोन्नति में आरक्षण के विरोध का ढोंग किया और ब्राम्हणों और अन्य उच्च वर्ग का मत प्राप्त किया। अब दोनों नेताओं की नजर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर है। और उत्तरप्रदेश की ८० संसदीय सीटों में ब्राम्हण मतदाता १६ % हैं जो की कम से कम २५ सीटों पर सीधे तौर पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं। ऐसे में जातीय समानता की बात (आदर्श) किसे याद रहती है। दोनों नेताओं को दलितों और अल्पसंखयकों के बाद ब्राम्हण शोषित नजर आने लगे और दोनों में उनका उद्धार करने की होड़ लग गई है। अब इन लोगों से कौन पूछे की अचानक जूतों की जगह शंख की ध्वनि क्यों गूँज रही है? ब्राम्हणों और अन्य उच्च जातियों को जूते मारने वाले लोगों को उनका सम्मान करने की क्यों पड़ी है ? बाबा आंबेडकर के अनुयाइयों को परशुराम जी की जयंती इतनी महत्वपूर्ण क्यों लगने लगी है? इसका ईमानदार उत्तर वो नहीं दे सकते मैं देता हूँ।

मैं ये मानता हूँ की इस जाति-भेद का जन्मदाता कोई एक  नहीं, बल्कि ऐसे सभी लोग हैं जो विभिन्न वर्गों को आपस में लड़ाकर सत्ता पाना चाहते हैं या सत्ता में बने रहना चाहते हैं, और हम लोग भी हैं जो सब बातें भूल कर सिर्फ जाति और धर्म के आधार पर अपना वोट देते हैं।  ये नेता कभी-किसी काम को ईमानदारी से नहीं करते सिर्फ चुनावी गणित के आधार पर अपना रंग बदलने के अलावा। इनके सांख्यकी विशेषज्ञ ने जैसे ही ये बताया की इस समूह, जाती या संप्रदाय, का प्रभाव उनकी सत्ता पर पड़ सकता है, उसे अपना बाप बनाने का ढोंग करने लगते हैं। और नए समाज में वोट कोई स्वतंत्र और ईमानदार निर्णय नहीं होता बल्कि "वोट बैंक " होता है। अब आप खुद समझ सकते हैं की अगर आप "वोट बैक" हैं तो फिर आप एक सजीव नहीं बल्कि एक वास्तु हैं, और वो भी नेताओं के उपभोग की, जिसे वो जब चाहें, जैसे चाहें  अपनी मर्जी से उपभोग कर सकते हैं। 

इन्हें न पिछड़ों की चिंता है, न अगड़ों की, इन्हें अगर कुछ चिंता है तो अपनी कुर्सी की। न ये आंबेडकर का सम्मान करते न परशुराम का ये सिर्फ सत्ता लोभी है। जिस जातीय असमानता की दीवार मिटाने के तथाकथित  उद्देश्य से इन्होने पार्टी बनायीं, अपनी सत्ता के लिए आज असमानता की और गहरी खाई खोद रहे हैं, और हमें आपस में  लड़ाकर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं। अगर हम सतर्क नहीं रहे और इनके पीछे भेड़ों की तरह चलते रहे तो यह नव-मनुवाद (मुलायम और माया) तथाकथित मनुवाद से ज्यादा खतरनाक होगा और ये सत्ता लोभी हमें आपस में शांति और सौहार्द्य से रहने नहीं देंगे। 

अतः हमें चाहिए की हम अतीत को भुलाकर, जाति और संप्रदाय को सत्ता की सीढियां बनाने वाली और सत्ता पाने के बाद भ्रष्टाचार से आमजनता का शोषण करने वाली इन पार्टियों और नेताओं  के मुह में ऐसा चांटा मारें की ये दुबारा हमें लड़ाने और शोषण करने के बारे में सोच भी न सकें। 

जय हिन्द !!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें