सोमवार, 31 दिसंबर 2012

अब किसी को ऐसे रुखसत न करना !


मैं तो जीना चाहती थी,
तूने मुझे मार दिया,
मेरी साँसें रुकी नहीं,
तूने उन्हें छीन लिया,

मेरे भी कुछ सपने थे,
छोटे थे पर अपने थे,
उनको सवारना चाहती थी,
माँ के साथ रहना चाहती थी,

मेरी क्या खता थी,
यही की मैं लड़की थी,
मैंने तेरा क्या बिगाड़ा था,
मैं तो एक अजनवी थी,

तूने मेरा ग्रास किया,
मन और दामन को घाव दिया,
पशु भी इतने क्रूर नहीं होते हैं,
वो भी बलात्कार नहीं करते हैं,

तू इतना क्यों गिरगया,
मानव से दानव क्यों बन गया,
तुझसा तो भाई मेरा था,
फिर तू राक्षस क्यों बन गया,

मैंने तो चार्टर विमान नहीं मागा था,
बस जिंदगी का सुकून चाहा था,
तू एक सुरक्षित बस भी न दे सका,
एक सुरक्षित घर भी न दे सका,

ये बिदा की तो घडी नहीं थी,
डोली भी अभी सजी नहीं थी,
माँ से गले भी मिली नहीं थी,
मेरी देहरी भी सजी नहीं थी,

फिर भी मैं जारही हूँ,
मैं तो बहुत दूर जा रही हूँ ,
अब कभी न आ सकूंगी,
माँ से गले न मिल सकूंगी,

बिना बिदा किये जा रही हूँ, 
तुम सबके कारन जा रही हूँ,
जख्मो को सहकर जा रही हूँ,
साँसों को चीर कर जा रही हूँ,

बस एक ख्वाहिस है मेरी,
मेरी बहनों का ख्याल रखना,
सबकी बेटी को अपनी बेटी समझना,
अब किसी को ऐसे न रुखसत करना,

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