शुक्रवार, 1 जून 2012

कुछ पल ठहर तो ले मुसाफिर





कुछ  पल  ठहर तो ले मुसाफिर,
मुड़ के पीछे देख तो ले,
कर ले हिसाब इस  सफ़र का,
तेरे खजाने में क्या है मुसाफिर,

किसी के जिगर पे कदम तो नहीं,
किसी के जख्म  कुरेंदे  तो नहीं,
इस अंधी दौड़ में, बढ़ने की होड़ में,
किसी को रोका तो नहीं, 

अपने रास्ते को साफ़ करना था तुझे,
औरों को रास्ते से हटाया तो नहीं,
मंजिल पाना तेरा मुक़द्दर था,
किसी को सीढियां बनाई तो नहीं,

देख ले एक -एक निवाला फिर से,
किसी और का हक  खाया तो नहीं,
तेरे इस सुकून के खातिर,
किसी और ने अपना चैन खोया तो नहीं,

गर हर तरफ  है,  नहीं, बिलकुल नहीं,
बढ़ता चल आगे, और उड़ता चल,
अगर सुनाई दे चीख, दिखाई दे आंसू,
रुक जा, देख किसकी चीख है, कैसी टीस है,

बदल दे वो रस्ता, जो कलेजे से गुजरता है,
छोड़ दे वो हसरत, जो किसी को आंसू देती है,
तोड़ दे वो खंज़र, जो किसी का लहू पीता है,
तोड़ दे वो ख्वाब, जो किसी की रोटी छीनता हो,

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