रविवार, 13 मई 2012

बचपन मेरा किसने छीना




तन था नाजुक कोमल मन था,
काँटों ने तब आके घेरा,
अपनों ने ही जख्म दिए,
ख़ामोशी ने आके यूँ घेरा,

अपनी, अपनी हवास के खातिर,
नन्हे तन को सबने खाया,
मन पर ऐसा घाव दिया जो,
जीवन भर भी न भर पाया,

अपनी ओछी हवस के खातिर.
बचपन मेरा किसने छीना,
करूँ भरोसा किस पर अब मैं,
सबने है विश्वास यूँ तोड़ा,

मृत शरीर नहीं छोड़ते,
नर पिशाच वो बन कर आते,
रिश्तों की परदे में छुपकर,
मेरा शोषण वो कर जाते,

चुप थी ममता, पिता भी चुप थे,
किसी ने मेरा दर्द न जाना,
एक बच्चे के कोमल मन पर,
कैसा था आघात वो आया,

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